पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भूमि अधिग्रहण विधेयक को बिहार में किसी भी हाल में लागू नहीं होने देने का एलान किया है. उन्होंने दो टूक कहा कि इस बिल को अगर केंद्र सरकार पारित कर भी देती है तो उसे बिहार में लागू नहीं करने देंगे. भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ शनिवार को जदयू के राज्यव्यापी उपवास पर बैठे मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार का नया भूमि अधिग्रहण बिल किसानों के हित पर प्रहार करने वाला है. किसानों के जीवन को और दूभर करने वाला है और उनके लिए काला कानून है.
सरकार किसानों पर कुठाराघात कर चंद अमीरों को खुश करना चाहती है. केंद्र सरकार के विकास का यह मॉडल सही नहीं है. जब तक न्याय और समावेशी विकास नहीं होगा, तब तक इसका लाभ लोगों को नहीं मिलेगा. 24 घंटे के उपवास पर बैठे नीतीश रविवार की सुबह अपना उपवास तोड़ेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि भले ही उनकी पार्टी छोटी है, लेकिन हमारा दृष्टिकोण और नजरिया राष्ट्रीय है. वह पूरे देश में खुशहाली में विश्वास करते हैं, चंद आदमियों की खुशहाली में नहीं. बिहार खुशहाल होगा तभी देश खुशहाल होगा. उन्होंने 2013 में यूपीए सरकार द्बारा पारित भूमि अधिग्रहण कानून को लागू करने की केंद्र सरकार से मांग की.
जदयू के राज्य मुख्यालय में आयोजित उपवास कार्यक्रम में नीतीश ने कहा कि भूमि अधिग्रहण का एक कानून 1894 का था. उसमें सरकार जब चाहती किसानों से जमीन ले सकती थी. पूरा अधिकार सरकार के पास था, लेकिन किसानों की कठिनाइयों व अनुभव के आधार पर 2013 में इस कानून में संशोधन किया गया. इस कानून को बनने में दो साल का समय लगा. शासन यूपीए का था लेकिन सहयोग सभी दलों ने किया. भूमि अधिग्रहण में जो सारा अधिकार सरकार के पास था उसे खत्म कर दिया गया और अधिकार किसानों को दे दिया गया. इससे जमीन लेने में किसान की सहमति आवश्यक थी. मुआवजा भी सोशल इंपेक्ट असेस्मेंट के आधार पर तय कर दिया गया. सीएम ने कहा कि इस कानून को बनाने में भाजपा का भी साथ था. कानून बनने के बाद वे इसका श्रेय भी ले रहे थे, लेकिन अचानक एक साल में ऐसा क्या हो गया कि इस कानून में संशोधन ले आये. भाजपा जो इस कानून में बदलाव कर रही है उससे 2013 के इस कानून की आत्मा निकाल देना चाहती है.
यह कानून मृतप्राय के समान हो जायेगा. किसान की जगह फिर से मालिक सरकार हो जायेगी. लोकसभा में केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण बिल, 2015 में जो संशोधन कर रही है उससे काम नहीं चलेगा. केंद्र को इस कानून को वापस लेना होगा. 2013 के कानून को पहले लागू करते और अगर उससे कोई कठिनाई होती तब उसमें बदलाव की कोई बात हो सकती थी, लेकिन कानून बनने के एक साल में उसे बदला जा रहा है. यह किसके लिए कमिटमेंट हैं? नये बिल में कंपल्सेशन की जो बात कर रहे हैं यह धोखा है. किसानों की जमीन लेने का संपूर्ण अधिकार जो सरकार ने अपने पास रख लिया है उसका वह विरोध करते हैं.
अब संशोधन करके दिखाया जा रहा है,लेकिन किसानों को उससे संतोष नहीं होगा. जनता की सरकार बनाती है इसलिए यह अधिकार जनता के पास रहने वोट लिया किसानों से, काम कर रहे अमीरों के लिए मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में वोट लिया किसानों से, गांव में रहने वालों से, लेकिन काम उनके लिए नहीं कररही है. कुछ खास चुनिंदा धनी लोगों के लिए काम हो रहा है. केंद्र सरकार एक तरफ किसानों के कल्याण की बात करती है और नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश और फिर बिल ला कर एक साल पुराने बिल को बदल रही है. लोकसभा चुनाव के समय भाजपा के घोषणा पत्र में था कि सरकार बनने के बाद किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की लागत से डेढ़ गुणा दिया जायेगा, लेकिन चुनाव के बाद कालाधन लाने के वादे की तरह इसे भी भूल गये.
उन्होंने कहा कि केंद्र में 31 फीसदी वोट पर सरकार बनी है. बहुमत है तो हम सम्मान करते हैं, लेकिन इसका कतई मतलब नहीं कि जिसका वोट लेकर आये उसे ही भूल गये. इस बिल से कृषि को चौपट करने का प्रयास हो रहा है. लोकसभा चुनाव के समय रोजगार देने की बात हुई. युवाओं ने बढ़ चढ़ कर भाजपा को वोट किया. रोजगार मिलना तो दूर उल्टे उसके अवसर सिमट रहे हैं. जिसके लिए (कुछ अरबपतियों) अच्छे दिन आने थे वह आ गये.
जिद्द छोड़े, सम्मान का प्रश्न नहीं बनाये भाजपा
सीएम ने कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल, 2015 का केंद्र सरकार का सहयोगी दल शिवसेना ही विरोध कर रही है. बहुमत के आधार पर लोकसभा में इसे पारित करवा दिया गया, लेकिन अभी भी समय है, भाजपा को इसे सम्मान का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए. भाजपा इस पूरे मामले पर लगभग अकेले है. भाजपा समय रहते चेत जाये नहीं तो जनता सब देख रही है. इस कानून से देश को नुकसान होने वाला है. नीतीश ने कहा कि वह पूरे संकल्प के साथ 24 घंटे के उपवास में बैठे हैं. किसी भी तरह ये यह कानून बरदास्त नहीं होगा. देश में लोगों और पार्टियों को जोड़ कर आंदोलन करेंगे. उपवास कर संकल्प लिया है, अब चुप नहीं बैठेंगे. निरंतर अभियान चलायेंगे और लोगों के बीच जायेंगे.
शहर बसाना है तो लोगों के सहयोग से बसाएं
नीतीश ने कहा कि केंद्र सरकार इंडस्ट्रियल कॉरीडोर बनाना चाहती है. यह सही है, लेकिन किसकी कीमत पर? किसान की वैसी जमीन जा रही है, जो खेती के लिए और उपजाऊ है. साल में तीन फसल उसमें उपजायी जा रही है. इसके लिए सरकार को कम उपजाऊ वाली और बंजर जमीन लेनी चाहिए. शहर बसाना चाहिए, लेकिन किसी की कीमत पर नहीं. शहर बसाना चाहते हैं तो लोगों के सहयोग से बनाएं. इसके लिए लोगों को इसमें शामिल करें. मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें लगता है कि शहर ही क्यों गांवों का भी विकास होना चाहिए. शहरों के साथ-साथ गांवों में भी रोजगार के अवसर खुलें.
मेक इन बिहार, मेक इन विलेज भी हो
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र मेक इन इंडिया का स्लोगन दे रही है. यह सही है, लेकिन मेक इन बिहार, मेक इन विलेज भी हो. मेक इन इंडिया का मतलब यह नहीं कि किसानों को उजाड़ दिया जाये और कुछ खास लोगों को बसा दिया जाये. केंद्र सरकार स्वच्छता अभियान चला रही है. यह कोई नया नहीं है. बिहार में हम पहले से ही संकल्प लेते थे कि घर में शौचालय बनायेंगे. राम मनोहर लोहिया ने इसकी शुरुआत की थी. बिहार में लोहिया स्वच्छता अभियान चलाया गया.
उपवास में मुख्यमंत्री के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, सरकार में मंत्री विजय कुमार चौधरी, श्याम रजक, ललन सिंह, पीके याही, सांसद अली अनवर, हरिवंश, मौलाना गुलाम रसुल बलियावी, विधान पार्षद संजय सिंह, प्रो रणवीर नंदन, नीरज कुमार, डा उपेंद्र प्रसाद, पूर्व विधान पार्षद संजय झा, राज्य नागरिक पर्षद के महासचिव कन्हैया भेलारी, छोटू सिंह, पूर्व विधायक सतिश कुमार व महिला आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा भी उपस्थित थी.
दो सरकारों के भूमि बिल में आकाश-पाताल का अंतर
यूपीए
गांव की जमीन के अधिग्रहण के लिए 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी
अधिगृहीत भूमि पर अगर पांच साल में कोई विकास या काम नहीं हुआ तो वह भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की व्यवस्था
खेती योग्य उपजाऊ भूमि का सीधे अधिग्रहण नहीं. सिर्फ बंजर भूमि का ही अधिग्रहण.
सिंचित व उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण की स्थिति में इसके मालिकों व आश्रितों के लिए विस्तृत पुनर्वास पैकेज देने की व्यवस्था.
आजीविका खोने वाले किसानों को 12 महीने के लिए तीन हजार प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता
50 हजार रुपये तक पुनस्र्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर जमीन पर बना बनाया मकान देने का प्रावधान.
एनडीए
राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना, कॉरीडोर, पीपीपी आदि के लिए बिना सहमति के भी सिंचित व उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण. किसानों की सहमति जरूरी नहीं
पांच साल का प्रावधान खत्म. इसे बढ़ा कर परियोजना पूरी करने तक कर दिया गया
एक बार सरकार ने जमीन अधिगृहीत कर ली, तो इसे वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं.
कानून के उल्लंघन के अपराध में कोई कोर्ट संज्ञान नहीं ले सकता है. यानी किसान कोर्ट नहीं जा सकते हैं.
अधिग्रहण से पड़ने वाले असर के सर्वे का प्रावधान खत्म