पटना: फितरा अरबी का शब्द है. इसका अर्थ दान से है. फितरा अरबी के शब्द फातारा से मिल कर बना है. फितरा एक नीयत समय में तय की गयी राशि को दान करने का नाम है. इस बार इमारत-ए-शरिया, फुलवारीशरीफ ने एक आदमी का फितरा 35 रुपये तय किया है. मतलब हर आदमी 35 रुपये गरीब को दान करे. फिर ईदगाह की तरफ रुख करे.
क्यों दें फितरा
मुसलमानों में कई लोग ऐसे हैं, जिनकी इतनी सलाहियत नहीं है कि वह ईद के दिन ढंग के कपड़े पहन सकें. कुछ अच्छा खा सकें. रमजान के रोजे, तो उन्होंने भी रखे हैं. फिर क्या उन्हें ईद के दिन खुशी मनाने का हक नहीं है. इन्हीं सब बातों को नजर में रखते हुए इसलाम ने फितरे की रकम ईद की नमाज से पहले अदा करने का हुक्म दिया है.
खजूर खाकर जाएं ईदगाह
कुछ लोग सोचते है कि ईद की नमाज के बाद खाना अफजल है. बुखारी की वोल्युम दो किताब नंबर 13 और हदीस नंबर 953 में लिखा है कि ‘हजरत अनस बिन मलिक रजि. से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलै वसल्लम ईद उल फितर के दिन जब तक कुछ खजूर न खा लेते नमाज के लिए न जाते. वहीं, उनसे ही रिवायत है कि आप सल्लल्लाहो अलै वसल्लम ताक (ऑर्ड नंबर जैसे-3,5,7,9) खजूर खाते.’