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दलितों को अब तक नहीं मिली बकरी-मुरगी

पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने अब तक खर्च की महज 38 फीसदी राशि विभाग में 52 योजनाएं हो रहीं संचालित पटना : राज्य में सबसे ज्यादा जन कल्याणकारी या सीधे ग्रामीण लोगों से जुड़ी योजनाएं चलानेवाले विभागों में पशु एवं मत्स्य संसाधन का नाम आता है. इस विभाग में 52 योजनाएं हैं. इसके अलावा […]

पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग ने अब तक खर्च की महज 38 फीसदी राशि
विभाग में 52 योजनाएं हो रहीं संचालित
पटना : राज्य में सबसे ज्यादा जन कल्याणकारी या सीधे ग्रामीण लोगों से जुड़ी योजनाएं चलानेवाले विभागों में पशु एवं मत्स्य संसाधन का नाम आता है. इस विभाग में 52 योजनाएं हैं. इसके अलावा इस वित्तीय वर्ष में लगभग छह-सात योजनाएं शुरू करने की घोषणा की गयी थीं. इनमें छह जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एससी-एसटी परिवारों के लिए विशेष बकरी-मुरगी पालन योजना, दुधारू पशु पालन योजना, लेयर फार्मिग समेत अन्य योजनाएं प्रमुख हैं, लेकिन आवंटित राशि खर्च करने की रफ्तार इतनी धीमी है कि नयी योजनाएं तो छोड़ दें, कई पुरानी ही पूरी तरह से काम नहीं कर रही हैं.
जानकारी के अनुसार चालू वित्तीय वर्ष खत्म होने के महज दो महीने बचे हैं और विभाग करीब 38 फीसदी राशि ही खर्च कर पाया है. इस वित्तीय वर्ष में विभाग के खर्च करने की हालत इतनी धीमी थी कि दिसंबर के शुरुआती सप्ताह तक महज सात प्रतिशत राशि ही खर्च हो पायी थी. हालांकि दिसंबर से जनवरी के दूसरे सप्ताह तक विभाग ने खर्च में तेजी से बढ़ोतरी (करीब छह गुणा) की है, लेकिन अब भी यह नाकाफी है.
इसके मद्देनजर विभाग को आवंटित कुल 600 करोड़ रुपये के बजट को घटा कर 300 करोड़ कर दिया गया. बावजूद इसके खर्च की रफ्तार अब तक इतनी नहीं हुई कि यह पचास फीसदी के आंकड़े को पार कर सके. विभाग के खाते में रुपये पड़े रहने के कारण जनवरी में होनेवाला पशु टीकाकरण कार्यक्रम अब तक नहीं हुआ है. जबकि इस वर्ष 1.90 करोड़ पशुओं के टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है. इसी तरह मुरगी पालन, बकरी पालन, गव्य विकास, मत्स्य संसाधन, मार्केटिंग आदि कई महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ पशुपालकों या किसानों को नहीं मिल पा रहा है.
घोषणा के बाद भी शुरू नहीं हुई योजना : विभाग ने एससी-एसटी परिवारों के लिए मुरगी और बकरी पालन के लिए एक खास योजना शुरू करने की घोषणा की थी. इस योजना को छह जिलों कटिहार, पूर्णिया, गया, समस्तीपुर, किशनगंज और अररिया में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू करना था.
इसके तहत सभी दलित परिवारों के बीच मुफ्त चूजा का वितरण करना था. इसके अलावा छह जिलों सीवान, गोपालगंज, सारण, वैशाली, गया और पटना में लेयर फार्मिग योजना शुरू होनी थी. दुधारू पशुओं को पालने के लिए विशेष अनुदान योजना शुरू करनी थी. इसके तहत आवेदन करने के 15 दिनों में अनुदान देने की योजना है. मछली पालन के लिए विशेष योजना भी पूरी तरह से धरातल पर नहीं उतर पायी है. इसी तरह की कई योजनाएं अब तक घोषणाओं में ही सिमटी हुई हैं.
क्यों महत्वपूर्ण हैं योजनाएं
पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की योजनाएं ग्रामीण और निर्धन लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. करीब 75 फीसदी ग्रामीण आबादी किसी-न-किसी रूप में पशु या मछली पालन से जुड़ी हुई है. इस विभाग की योजनाओं का अगर क्रियान्वयन ठीक ढंग से हुआ, तो काफी बड़ी आबादी आर्थिक रूप से सशक्त हो सकेगी. राज्य के जीडीपी में इसका 16 फीसदी योगदान है. गरीबों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए यह बेहद कारगर माध्यम है.
इस वित्तीय वर्ष में शत-प्रतिशत राशि खर्च कर दी जायेगी. जिन योजनाओं की घोषणा हुई है, उसके टेंडर की प्रक्रिया चल रही है. जल्द ही योजनाएं शुरू हो जायेंगी.
– बैद्यनाथ सहनी, मंत्री, पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग

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