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राजनीति में कुछ पाने की इच्छा नहीं तो खोने का सवाल कहां : नीतीश

पटना: पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि मैं राजनीति में कुछ खोने और पाने की आकांक्षा नहीं पालता. जिन लोगों को राजनीति का बुनियादी प्रशिक्षण नहीं मिला है, वही इसमें नफा-नुकसान की बात करते हैं. एक न्यूज चैनल के एक खास कार्यक्रम में शामिल होते हुए नीतीश कुमार ने कहा, छात्र जीवन से […]

पटना: पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि मैं राजनीति में कुछ खोने और पाने की आकांक्षा नहीं पालता. जिन लोगों को राजनीति का बुनियादी प्रशिक्षण नहीं मिला है, वही इसमें नफा-नुकसान की बात करते हैं. एक न्यूज चैनल के एक खास कार्यक्रम में शामिल होते हुए नीतीश कुमार ने कहा, छात्र जीवन से ही समाजवादी विचारधारा के संपर्क में रहे हैं.

छात्र आंदोलन के दौरान राजनीति और सिद्धांत पर बहुत चर्चा होती थी. बिहार में आंदोलन हुआ, तो जेपी का नेतृत्व मिला. उस समय, तो हमने यह सोचा भी नहीं था कि चुनाव लड़ेगे. क्या आप मुख्यमंत्री होंगे? जवाब में नीतीश कुमार ने बताया कि जब दलों का मर्जर होगा, तो तय करेंगे. एक नाम से पार्टी बन जायेगी, तो उस समय फर्क नजर आयेगा. जब एक पार्टी बन जायेगी, तो वह तय करेगी कि बिहार में किसी को आगे करके चुनाव लड़ना है या नहीं. मेरे लिए सवाल बुनियाद गवर्नेस का है.

करीब आधे घंटे के अपने संबोधन में नीतीश कुमार ने कहा कि राजनीति में बड़ा संकट अब कथनी और करनी में फर्क को लेकर है. जिससे वोट मिले, तो उसके लिए कुछ भी कह दो. जब करने का वक्त आया, तो मामले को डायवर्ट कर दो. यह पूछे जाने पर कि वह गीता में कृष्ण जैसा उपदेश दे रहे हैं कि ‘बीजेपी मंजूर, पर नरेंद्र मोदी मंजूर नहीं’, नीतीश कुमार ने कहा कि देश में यह दौर चला है. लोग बहुत कुछ समझने को तैयार नहीं हैं. पहले बीजेपी के साथ वर्षो तक तालमेल में सरकार बनी. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में शामिल रहे. बाद में बिहार में जवाबदेही मुङो दी गयी. अब की सरकार में दो बुनियादी फर्क है.

1996 में भाजपा के साथ तालमेल कर चुनाव लड़े. 1998 में जब अटल जी की सरकार बनी, तो 13 दिनों में चली गयी. पुन: चुनाव में यह हुआ कि उस समय के विवादित मुद्दे जैसे बाबरी मसजिद का मसला कोर्ट तय करेगा, धारा 370 और कॉमन सिविल कोड की बात नहीं होगी. उस समय का जो लीडरशिप था, उसने लोगों के विचारों को एकोमेडेट करते हुए बखूबी निभाया. अटल जी की सरकार स्वतंत्रता के मूल्यों पर आघात नहीं होता था.

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