प्लास्टिक सजर्री विभाग में भरती मरीजों के परिजनों से डॉक्टर बाहर से दवा मंगवाते हैं और ड्रेसर पैसा लेकर हर दो दिनों पर ड्रेसिंग करते हैं. विभाग में भरती मरीजों को नाश्ते के अलावा कुछ नहीं दिया जाता है और दवा के नाम पर एक या दो इंजेक्शन.
सीनियर डॉक्टर सुबह में राउंड लेते हैं व शाम में गायब हो जाते हैं, लेकिन जूनियर शाम में भी पहुंच जाते हैं. परिसर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हैं, जहां वह अपने कपड़े को सूखने के लिए डाल सकें. मरीज या उनके परिजन कैंपस में जहां-तहां कपड़े फैला देते हैं. यही नहीं, वार्ड में पंखा तक नहीं है. कहीं-कहीं लगे हुए हैं, तो वे काम के नहीं हैं.
पटना: पीएमसीएच के प्लास्टिक सजर्री विभाग की स्थापना वर्ष 1964 में हुई थी. उस वक्त पूरे देश में महज पांच जगहों पर प्लास्टिक सजर्री के लिए सुपर स्पेशियलिटी की व्यवस्था थी. 49 वर्षो बाद भी इस विभाग की प्रगति नहीं हुई है. इसके स्वीकृत पदों को अब तक नहीं भरा गया है.
बर्न मरीजों के लिए बेड नहीं रहने के कारण उन्हें जमीन पर लेटना पड़ता है. इस कमी को दूर करने के लिए विभागाध्यक्ष ने अस्पताल अधीक्षक को पत्र सौंपा है, जिस पर अंतिम निर्णय ले लिया गया है और बहुत जल्द प्लास्टिक सजर्री विभाग में 100 बेड का स्पेशल बर्न वार्ड बनाया जायेगा. साथ ही कई नयी मशीनों की व्यवस्था भी की जायेगी.
सरकार का निर्देश बेअसर
सरकार इंडोर मरीजों के लिए दवा मुहैया कराती है. इसके बाद भी मरीजों को दवा बाहर से लानी पड़ती है. अस्पताल पहुंचनेवाले लगभग मरीज आर्थिक रूप से गरीब होते हैं और वे बेहतर इलाज व सरकार की योजनाओं का लाभ लेने पहुंचते हैं. लेकिन, भरती होने के बाद उनको लगता है कि इससे अच्छा किसी निजी अस्पताल में चले जाते. स्वास्थ्य विभाग का सख्त निर्देश है कि डॉक्टर बाहर की दवा नहीं लिखे, किंतु इसका पालन नहीं किया जाता है. सरकार की ओर से भरती मरीजों को खाना दिया जाता है, पर इसमें भी अस्पताल प्रशासन का खेल चलता रहता है और खाना भी मरीजों को नहीं मिलता है. ड्रेसर ड्रेसिंग के लिए पैसा मांगता है और जब इसकी शिकायत मरीज करते हैं, तो उसकी शिकायत सुनने के बदले उसकी ड्रेसिंग बंद हो जाती है. ऐसे में बस मरीज भगवान भरोसे पीएमसीएच में अपना इलाज करा रहे हैं.
क्या कहते हैं मरीज
डॉक्टर साहब सुबह में समय से आते हैं, लेकिन शाम में किसी-किसी दिन ही दिखते हैं. इस वार्ड में काम करनेवाली नर्स बिना बुलाये आकर दवा दे देती है. बस डॉक्टर साहब जितनी दवा लिखते हैं, उनको बाहर से खरीद कर लाना पड़ता हैं. यहां लिखी हुई दवाएं नहीं मिलती हैं. ड्रेसर एक दिन बीच कर ड्रेसिंग के लिए आता है और ड्रेसिंग करने के एवज में पैसा लेता हैं.
वीरेंद्र सिंह (औरंगाबाद)
मेरा इलाज एनएमसीएच में चल रहा था. पांच दिन पहले पीएमसीएच में आये हैं. ड्रेसर ड्रेसिंग के लिए पैसा लेता है. 20 रुपये देने पर नहीं मानता है, तो पचास रुपये तक देना पड़ता है. हर दिन लगभग 1000 की दवाएं बाहर से लानी पड़ रही हैं. हां, नर्स समय से बिना बुलाये आ जाती है. डॉक्टर साहब शाम में कभी-कभी ही आते हैं. खाना यहां से नहीं मिलता है. सुबह में नाश्ता के नाम पर ब्रेड दिया जाता है.
सुबोध कुमार (हिलसा)
ड्रेसिंग के लिए पैसा देना पड़ता है. खाना नहीं मिलता है. सुबह में ब्रेड, सेब व केला दिये जाते हैं. अभी तक डॉक्टर साहब जो भी दवाएं लिखे हैं, उन्हें बाहर से ही लाना पड़ा है. पांच हजार की दवाएं ला चुका हूं.
रंजीत कुमार (मुजफ्फरपुर)