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पटना : अपनों ने छोड़ा तो सड़क पर भटक रहे युवा
राजदेव पांडेय बौद्धिक तौर पर कई कमजोर बच्चों को घर वाले ने बिना इलाज कराये पटना में छोड़ा पटना : सड़कों पर बेसुध या अपने ही उधेड़बुन(मानसिक रूप से बीमार) में घूमने वाले युवक-युवतियों पर नजर डालिए, ये भी कभी किसी परिवार के चिराग होंगे. इनके जन्म पर मिठाई बंटी होगी,लेकिन किसी टीस या दर्द […]
राजदेव पांडेय
बौद्धिक तौर पर कई कमजोर बच्चों को घर वाले ने बिना इलाज कराये पटना में छोड़ा
पटना : सड़कों पर बेसुध या अपने ही उधेड़बुन(मानसिक रूप से बीमार) में घूमने वाले युवक-युवतियों पर नजर डालिए, ये भी कभी किसी परिवार के चिराग होंगे. इनके जन्म पर मिठाई बंटी होगी,लेकिन किसी टीस या दर्द ने अचानक इन्हें दुनिया की मुख्यधारा से काट डाला. अब ये अपनी ही दुनिया में रमे हैं. ये मुस्कराते भी हैं. रोते हैं.
खामोशी भी ओढ़ते हैं. रूठते भी हैं. बतियाते भी हैं. प्रभात खबर ने इनके जीवन में कुछ खंगालने का प्रयास किया तो अहम तथ्य सामने आये. कई मामलों में तो यह देखने में आया कि बौद्धिक तौर पर कमजोर बच्चों को घर वालों ने बिना इलाज कराये पटना में छोड़ गये. वे लोग अब युवा हो गये हैं. रिश्तों के अपनेपन से परे इनकी जिंदगी पूरी तरह रेगिस्तान बनी हुई है.
पुरुषोत्तम : करीब 25-30 साल का यह युवक हाजीपुर में गैंगमैन था. पत्नी की बेरुखी ने उसे इस तरह झकझोरा कि वह मानसिक संतुलन खो बैठा. वह अभी कुछ दस साल पहले ही गैंग मैन बना था. पुरुषोत्तम इतिहास से स्नातक है.
अभिज्ञान : करीब दस साल पहले आनर्स का डिग्री धारी अंग्रेजी बोलने वाला,कभी कभार हिंदी) इस युवा की शादी हुई. पत्नी चल बसी तो उसकी मनोदशा बिगड़ गयी. उसके घरवालों ने उसे बेघर कर दिया. अब एयरपोर्ट रोड से लेकरहार्डिंग रोड तक घूमता देखा जा सकता है. इसकी खरीदी प्रॉपर्टी पर दूसरे काबिज हैं.
देवीप्रसाद : करीब चालीस साल का लंबा तगड़ा ये व्यक्ति कंबल या चादर ओढ़े राजा बाजार में घूमते देखा जा सकता है. बताते हैं कि दानापुर में इसकी प्रॉपर्टी थी. मानसिक रूप से बीमार होने के बाद परिजनों ने इसका इलाज नहीं कराया. ये किसी से नहीं बोलते. बस घूमते देखे जा सकते हैं.
उजबेग — करीब 25 साल का इस युवक को परिजनों ने ही पीट डाला. पेट में अंदरूनी घाव लेकर ये परेशान है. बेलीरोड स्थित केंद्रीय विद्यालय की दीवार के सहारे केवल रात में देखा जाता है. इसी तरह कई युवक हैं जो सड़क पर मानसिक दशा खराब होने से सो रहे हैं. खराब मनोदशा की वजह से सड़क पर घूमने वाली लड़कियों की व्यथा का चित्रण करना बेहद कठिन है.
इनकी है जिम्मेदारी
पुलिस की जवाबदेही- मेंटल हेल्थ केयर 2017 एक्ट के मुताबिक भटकते मानसिक रूप से बीमार या कमजोर लोगों को सहारा देना कानूनी रूप से पुलिस का दायित्व है. एक्ट के प्रावधानों में मानसिक रूप से पीड़ित लोगों के मामले में पुलिस अधिकारियों की ड्यूटी स्पष्ट रूप से परिभाषित की गयी है. इस कानून की धारा 231 (क) के तहत पुलिसकर्मी या अफसर का का दायित्व है कि वह किसी भटकते मानसिक रोगी को किसी भी शोषण से बचाए. इनके उपचार के लिए संबंधित आदेश हासिल करने के वास्ते अदालत के समक्ष पेश किये जाने का भी प्रावधान है.
प्रदेश में मनोरोगियों की संख्या : एक करोड़ काेइलवर मनोरोग संस्थान में आने वाले रोगियों की संख्या : 2012 में 14-15 हजार
2018 में ओपीडी में आने वाले रोगियों की संख्या: 66 हजार
एक्सपर्ट व्यू
मेंटल हेल्थ केयर एक्ट बिहार में लागू है. मानसिक रूप से बीमार लोगों के इलाज और उनको दूसरी सुविधाएं देने की जवाबदेही सरकार की है. ऐसे रोगों का इलाज संभव है. पहले से जागरूकता बढ़ी है. पहले की तुलना में मानसिक रोगों के इलाज के लिए कई गुना अधिक लोग आ रहे हैं. यह एक अच्छी बात है. इलाज के लिए बढ़ रही संख्या का यह मतलब नहीं है कि मानसिक रोगी बढ़ रहे हैं. अब अस्पताल अाने का साहस दिखा रहे हैं. इस दिशा में प्रदेश में सुविधाएं बढ़ाये जाने की जरूरत है.
-डॉ प्रमोद कुमार सिंह , एचओडी मनोरोग विभाग पीएसीएच एवं निदेशक बिहार स्टेट इंस्टीट्यूट आॅफ मेंटल हेल्थ एंड एलाइड साइंस
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