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पटना : प्रचार में खड़ी बोली के अतिरिक्त स्थानीय भाषा से लुभा रहे वोटरों को
रविशंकर उपाध्याय पटना : देख ल मतदाता भाई लोग, केंद्र के पार्टी तोहनी के केतना ठगलको हे, सो इस बार कांग्रेस के वोट द. मगही में कुछ इसी प्रकार कांग्रेस प्रचार कर रही है, तो भोजपुरी में बीजेपी कह रही है कि देश के आगे बढ़ावे ले मोदी जी हीं चाही, एक बार फेर चुन […]
रविशंकर उपाध्याय
पटना : देख ल मतदाता भाई लोग, केंद्र के पार्टी तोहनी के केतना ठगलको हे, सो इस बार कांग्रेस के वोट द. मगही में कुछ इसी प्रकार कांग्रेस प्रचार कर रही है, तो भोजपुरी में बीजेपी कह रही है कि देश के आगे बढ़ावे ले मोदी जी हीं चाही, एक बार फेर चुन ल मोदी सरकार. लोकसभा चुनाव में कुछ इसी प्रकार पार्टियां आम आदमी की भाषा में बात कर रही हैं.
राजधानी पटना में आप किसी भी एफएम रेडियो चैनल को ट्यून कर लीजिए या सुदूर गांव में आकाशवाणी के चैनल लगाइए. किसी क्षेत्रीय टीवी मनोरंजन या न्यूज चैनल को देखने के लिए बैठिए या फिर प्रचार गाड़ियों से आती आवाज को सुन लीजिए. कहीं मगही में, तो कहीं भोजपुरी, मैथिली और अंगिका भाषा में मतदाताओं को लुभाती आवाज सुनाई देगी.
लोकसभा चुनाव के दौरान नेताओं द्वारा किये जा रहे प्रचार प्रसार में खड़ी बोली के अतिरिक्त देशज भाषाओं का जोर कुछ ऐसा छाया है कि राज्य में हर ओर इसकी गूंज सुनाई दे रही है. इसका कारण भी स्पष्ट है. भाषा वही हो जिससे आपका श्रोता सीधे आपसे जुड़ जाये.
क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से होता है दिली कनेक्शन
जदयू के राजनीतिक सलाहकार नवल शर्मा कहते हैं कि भाषा हमेशा ही आमलोगों की भावनाओं से जुड़ा मुद्दा रही है. 1953 में राज्य आयोग भी बना था उसका आधार ही भाषा ही थी. क्षेत्रीय भावनाओं को अपनी ओर उभारने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में प्रचार पर जोर रहता है.
कांग्रेस के युवा विंग के प्रदेश उपाध्यक्ष मंजीत आनंद कहते हैं कि क्षेत्रीय भाषा के जरिये आम जन के मानस से आप सीधे जुड़ जाते हैं. यही कारण है कि जब प्रचार प्रसार के लिए सामग्री निर्माण की जा रही थी तो कंसर्न था कि हम राज्य की क्षेत्रीय भाषा के जरिये अपने मतदाताओं से संवाद स्थापित करें.
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