पटना : लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के लिए मौजूदा राजनीतिक दल के बीच विवाद का मुख्य कारण उनका जीत का इतिहास रहा है. जदयू, भाजपा, राजद कम से कम तीन प्रमुख पार्टियों ने सहयोगी दलों के साथ सीटों के बंटवारे का जो फाॅर्मूला तैयार किया वो 2004, 2009 और 2014 में मिली जीत का आधार है. सीटों के बंटवारे में 2015 में हुए बिहार विधानसभा का चुनाव है जिसमें जदयू, राजद और कांग्रेस के बीच सीटों का बटवारा 40-40-20 के फाॅर्मूले पर हुआ था. 122 विधायकों के होने के बाद भी जदयू ने सौ सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये. वहीं, 22 विधायकों वाली राजद को भी सौ सीट मिला. 2004 में राजद केंद्र की यूपीए का प्रमुख घटक दल रहा था. प्रदेश की चालीस सीटों में उसके 22 सदस्य चुनाव जीते थे.
इसी आधार पर राजद ने 2009 में सीटों में हिस्सेदारी बांटी. नजीता सिफर निकला. इसी प्रकार 2009 में सीटों के बंटवारे और जीत के आधार पर ही एनडीए के भीतर जदयू और भाजपा के बीच सीटों के बंटवारे को आधार माने जाने का तर्क दिया जाता रहा. इस साल जदयू पचीस और भाजपा 15 सीटों पर मिल कर चुनाव लड़ी थी.
2014 भाजपा के पक्ष में था, इसलिए इस बार भाजपा की चाहत अधिक सीटों की रही. 2014 के लोकसभा चुनाव में मात्र दो सीट हासिल कर पाये जदयू ने भाजपा के साथ बराबर की हिस्सेदारी की मांग और इतने पर दोनों दलों में गठबंधन भी तय हुआ. वहीं, भाजपा ने जो सीटों की दावेदारी कि उसका मुख्य आधार भी 2014 की जीत ही रही.
जदयू ने वर्ष 2014 में बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में से 38 पर भाकपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. अन्य दो सीटें बांका और बेगूसराय उसने भाकपा के लिए छोड़ी.