पटना: यह शायद पहला मौका होगा, जब सक्रिय राजनीतिक जीवन में आने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव से अलग-थलग रहेंगे.
महज 29 वर्ष की उम्र में संसदीय राजनीति में आने वाले लालू शायद 17वीं लोकसभा चुनाव के दौरान जनता के बीच चुनावी सभा नहीं कर सकें. कोर्ट से जमानत नहीं मिली तो न उनकी रैलियां होंगी और नहीं वह स्टार प्रचारक होंगे. 2014 के लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक रहे लालू प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जी दी है. 11 बार लोकसभा चुनावों में लालू की दमदार रही उपस्थिति इस बार समर्थकों को खलेगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में शिकस्त मिलने के बाद लालू ने अगले साल 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को आरक्षण के मुद्दे पर घेर लिया था. महागठबंधन की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी. चुनावी मौसम में लालू अपने अलग ही अंदाज में रहते हैं.
लालू प्रसाद फिलहाल रांची के जेल में बंद हैं. 10 मार्च, 1990 को शपथ लेने के बाद लालू प्रसाद सितंबर 1990 में उस समय धर्मनिरपेक्ष ताकतों के हीरो बन गये थे, जब उन्होंने समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी के राम रथ को रोक उन्हें गिरफ्तार कराया था. इवीएम का विरोध करने वाले लालू प्रसाद उस समय अपने मतदाताओं को समझाते कि कैसे एक हारमोनियम की तरह मशीन होगी. जब वोट देना तो हारमोनियम के बटन को दबाना, जब पीइइइ की आवाज निकले तो समझो वोट हो गया. लालू प्रसाद ने 1996 में एचडी देवगौड़ा और 1997 में आइके गुजराल को प्रधानमंत्री बनाने में भी अहम भूमिका निभायी थी. अगर लालू प्रसाद को जमानत नहीं मिलती है, तो राजद को पहली बार अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष की गैर मौजूदगी में ही चुनाव लड़ना पड़ेगा.
पटना : शहाबुद्दीन व प्रभुनाथ की स्थिति तड़ीपार जैसी
पटना : लोकसभा चुनाव में सारण क्षेत्र के दो बाहुबली नहीं दिखेंगे. दोनों पूर्व सांसद हैं और इस समय राज्य के बाहर जेलों में सजा काट रहे हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में इन दोनों पूर्व सांसदों की स्थिति तड़ीपार जैसी होगी. हर चुनाव में शहाबुद्दीन और प्रभुनाथ सिंह की राजनीतिक रूप से उपस्थिति का लोगों को एहसास होता था. इस बार शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में, जबकि प्रभुनाथ सिंह हजारीबाग जेल में बंद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में सीवान में शहाबुद्दीन की पत्नी और महाराजगंज में खुद प्रभुनाथ सिंह चुनाव हार गये थे.