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पटना : राजकोषीय घाटा 5.37%, बिना उपयोग वाली राशि करें सरेंडर

पटना : चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान राजकोषीय घाटा बढ़ कर 5.37 प्रतिशत पहुंच गया है. इसका प्रमुख कारण विभागों के स्तर पर जरूरत से ज्यादा राशि निकाल कर अपने बैंक खातों या अलग-अलग योजनाओं के खातों में जमा करना है. ऐसे में राज्य की वित्तीय सेहत को तंदरुस्त बनाये रखने के लिए इसे […]

पटना : चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान राजकोषीय घाटा बढ़ कर 5.37 प्रतिशत पहुंच गया है. इसका प्रमुख कारण विभागों के स्तर पर जरूरत से ज्यादा राशि निकाल कर अपने बैंक खातों या अलग-अलग योजनाओं के खातों में जमा करना है. ऐसे में राज्य की वित्तीय सेहत को तंदरुस्त बनाये रखने के लिए इसे नियंत्रित करना बेहद आवश्यक है.
इसके मद्देनजर वित्त विभाग ने सभी विभागों को पत्र जारी किया है कि वे चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आगामी तीन महीने में जितने रुपये खर्च होने का अनुमान है. इसके आधार पर राशि का आकलन करके शेष राशि को जल्द से जल्द सरकारी खजाने में जमा करा दें. इससे राजकोषीय घाटा को कम किया जा सके. खजाने से ज्यादा पैसे निकलने के कारण फिलहाल राजकोषीय घाटा इतना ज्यादा बढ़ गया है.
अगर इस पैसे को विभाग वित्तीय वर्ष के अंत में सरेंडर करेंगे, तब तक नये वित्तीय वर्ष 2019-20 का बजट तैयार हो जायेगा और राजकोषीय घाटा को कम करना संभव नहीं हो पायेगा. हालांकि यह शुरुआती स्थिति है, जब अंतिम रूप से बजट पेश होगा, तो इसके घट कर तीन फीसदी के अंदर आने की संभावना है. एफआरबीएम अधिनियम 2003 के अनुसार, किसी राज्य का राजकोषीय घाटा उसके सकल घरेलू उत्पाद से तीन फीसदी के अंदर होना चाहिए. बिहार पिछले पांच-छह साल से इस नियम का पालन सख्ती से करता आ रहा है.
उसका राजकोषीय घाटा तीन फीसदी से कम ही रहा है. बीते वित्तीय वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा ढाई प्रतिशत के आसपास ही रहा था. इस बार भी वित्त विभाग इसे तीन फीसदी के अंदर लाने का हर प्रयास कर रहा है, जिसके तहत यह प्रयास किया जा रहा है. पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान भी कुछ समय के लिए राजकोषीय घाटा छह प्रतिशत के आसपास हो गया था, लेकिन जब बजट पेश हुआ तो यह घटकर 2.93 प्रतिशत हो गया.
यह है एफआरबीएम एक्ट का उद्देश्य
एफआरबीएम अधिनियम का मुख्य उदे्श्य वित्तीय घाटे को कम करना, वित्तीय अनुशासन को संस्थागत रूप देना और माइक्रो इकोनॉमी मैनेजमेंट को बढ़ावा देने के अलावा बैलेंस और पेमेंट को व्यवस्थित करना है. इससे किसी राज्य की आर्थिक स्थिति दुरुस्त बनी रहेगी और उसे अनचाहे वित्तीय समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा.
राजकोषीय घाटा बढ़ने का मतलब : राजकोषीय घाटा बढ़ने का मतलब होता है, आमदनी से अधिक खर्च. यानी राज्य को जितना राजस्व प्राप्त हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा खर्च का भार पड़ गया है. राज्य की वर्तमान स्थिति विभागों के खजाने से जरूरत से ज्यादा रुपये की निकासी करने और अतिरिक्त रुपये को सरेंडर नहीं करने के कारण बनी है. इससे बचने के लिए ही पिछले कुछ वित्तीय वर्षों में राज्य सरकार अंतिम कुछ महीने के दौरान खजाने से निकासी पर रोक लगा दी जाती थी.
राजकोषीय घाटा को कम करके निर्धारित मानक तीन फीसदी के अंदर लाना बेहद जरूरी है. अगर वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर भी यह तीन फीसदी से कम नहीं हुआ, तो राज्य कई अहम सुविधाओं का लाभ लेने में महरूम रह जायेगा. केंद्र से मिलने वाली कई राहत में कटौती हो जायेगी. राज्य की रैंकिंग भी कम हो जायेगा. वित्त विभाग ने अगर इसे कम करने के लिए जो भी प्रयास किया है, वह बेहद सराहनीय है. विभागीय आदेश का पालन सभी विभागों को सख्त से करना चाहिए. राजकोषीय घाटा कम करने के लिए ठोस प्रयास करना बेहद जरूरी है.
शैबाल गुप्ता (अर्थशास्त्री, आद्री के सदस्य सचिव)

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