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पटना : किसानों के प्रति बैंक उदासीन, कृषि क्षेत्र में विकास की सबसे बड़ी बाधा

2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य पटना : राज्य में किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने और कृषि को बेहतर जीविकोपार्जन का जरिया बनाने के उद्देश्य से कृषि रोडमैप समेत अन्य कई महत्वपूर्ण सरकारी योजनाएं चलायी जा रही हैं. परंतु तमाम कोशिशों के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति समृद्ध […]

2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य
पटना : राज्य में किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने और कृषि को बेहतर जीविकोपार्जन का जरिया बनाने के उद्देश्य से कृषि रोडमैप समेत अन्य कई महत्वपूर्ण सरकारी योजनाएं चलायी जा रही हैं.
परंतु तमाम कोशिशों के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति समृद्ध या खुशहाल नहीं हो पा रही है. इसके एक बड़े कारणों में बैंकों से किसानों को किसी तरह की सहायता नहीं मिलना भी है. खेती, डेयरी, पशुपालन समेत इस तरह के अन्य किसी कृषि कार्य के लिए लोन देने में बैंक का रवैया बेहद उदासीन है
हाल में हुई एसएलबीसी (राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी) की बैठक में इससे संबंधित जो आंकड़े पेश किये गये, वह बेहद ही आश्चर्यचकित करने वाले रहे. डेयरी, मत्स्य पालन, मशीन की खरीद करने से लेकर किसानों को क्रेडिट कार्ड देने तक में बैंकों की स्थिति असंतोषजनक पायी गयी. इन सेक्टर में लोन बांटने में सबसे बड़ी समस्या बैंकों का मोरगेज मांगना है. कोई किसान जितने का लोन मांगने आता है, उसके बराबर का कोई मोरगेज के रूप में जमीन या अन्य चीजों की मांग की जाती है. इस वजह से उन्हें लोन नहीं मिल पाता है.
जबकि, राज्य सरकार किसानों को किसी तरह के कृषि कार्य के लिए दिये जाने वाले लोन की पूरी तरह से गारंटी लेती है. फिर भी बैंक लोन देने में काफी परेशान करते हैं.
पैसे जमा करने के अनुपात में नहीं देते लोन
ऐसा नहीं है कि बैंकों में जमा पूंजी या डिपॉजिट का किसी तरह की समस्या है. राज्य के बैंकों का डिपॉजिट लगातार बढ़ता जा रहा है. पिछले 10 साल के दौरान इसमें करीब साढ़े चार गुना की बढ़ोतरी हुई है. वित्तीय वर्ष 2007-08 के दौरान राज्य के सभी बैंकों में 68 हजार 244 करोड़ रुपये जमा थे, जो 2018-19 में बढ़कर तीन लाख 10 हजार 198 करोड़ पहुंच गया. जबकि लोन बांटने की रफ्तार में मंदी बनी हुई है. वित्तीय 2007-08 के दौरान बैंकों में जमा राशि की तुलना में ऋण बांटने का अनुपात 32.35 प्रतिशत था, जो 2018-19 के दौरान बढ़ कर 41.05 फीसदी हो गया.
इसमें महज 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जिस अनुपात में बैंकों में राशि जमा करने की रफ्तार बढ़ी है, उस अनुपात में बैंकों से कर्ज बांटने की रफ्तार नहीं बढ़ी है. इसका सबसे बड़ा असर कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों पर पड़ रहा है. डेयरी, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन समेत अन्य कृषि कार्यों के लिए तो बैंक लोन देने में किसी तरह की रुचि ही नहीं लेते हैं. कृषि समेत इसके अन्य क्षेत्रों में तो पिछले कई वर्षों से लोन देने की प्रगति एक समान ही बनी हुई है. यह 10 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ पायी है.
दूसरे क्षेत्रों में लोन देने की रफ्तार अच्छी
बैंक कृषि क्षेत्र छोड़कर अन्य क्षेत्रों मसलन गृह, गाड़ी, निजी, उद्योग या व्यवसाय समेत अन्य क्षेत्र में लोन देने में उदासीन नहीं हैं. गाड़ी और घर के लिए लोन देने में तो बैंक काफी सक्रिय रहते हैं.
राज्य की वार्षिक साख योजना यानी ऋण बांटने का जो लक्ष्य सभी बैंकों को दिया जाता है, उसमें बड़ी संख्या या बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्रों को छोड़ कर ही दिये हुए लोन का होता है. कृषि ऋण प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शुमार होने के बाद भी इसमें ऋण बांटने की प्रगति अच्छी नहीं है. जबकि गाड़ी, घर समेत ऐसे अन्य क्षेत्र गैर-प्राथमिक वाले होने के बाद भी इसमें ही बड़ी संख्या में लोन दिया जाता है.

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