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पटना के कंकड़बाग में 15 फुट नीचे तक फैला है प्लास्टिक कचरा

कर्पूरी ठाकुर छात्रावास बनाने के लिए हो रही खुदाई में हुआ खुलासा, रोका गया काम पटना : प्लास्टिक के कचरे पर बैठी राजधानी की नयी तस्वीर सामने आयी है. यह तस्वीर कंकड़बाग इलाके में दिखी जहां छात्रावास बनाने के लिए खुदाई शुरू हुई तो जमीन के नीचे कचरे का ढेर देख कर निर्माण एजेंसी के […]

कर्पूरी ठाकुर छात्रावास बनाने के लिए हो रही खुदाई में हुआ खुलासा, रोका गया काम
पटना : प्लास्टिक के कचरे पर बैठी राजधानी की नयी तस्वीर सामने आयी है. यह तस्वीर कंकड़बाग इलाके में दिखी जहां छात्रावास बनाने के लिए खुदाई शुरू हुई तो जमीन के नीचे कचरे का ढेर देख कर निर्माण एजेंसी के अधिकारी भी हतप्रभ हो गये. करीब 15 फुट गहराई तक खुदाई में प्लास्टिक के कचरे मिले.
कचरा निकलने के बाद पुल निर्माण निगम ने इस काम को रोक दिया. उधर, पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के अधिकारियों में काम रुकने से खलबली मच गयी. मौके पर विभाग के सचिव सहित अन्य अधिकारी पहुंचे. प्लास्टिक कचरे ने छात्रावास निर्माण पर फिलहाल ब्रेक तो लग ही गया है, अब इसके कारण बजट भी बढ़ जायेगा. कंकड़बाग की यह घटना तो नजीर भर है, जिस तरह प्लास्टिक का चलन बढ़ा है, शायद ही कोई क्षेत्र इससे अछूता हो.
3.75 करोड़ की योजना को झटका : कंकड़बाग में कर्पूरी ठाकुर छात्रावास बनाने को पुल निर्माण निगम ने इसका एस्टिमेट बनाया, जमीन चिह्नित हुई और अतिक्रमण हटाया गया. निर्माण एजेंसी ने 3.75 करोड़ का एस्टिमेट दिया. सारी प्रक्रिया पूरी करते हुए टेंडर जारी किया गया. ठेकेदार ने काम शुरू किया तो दूसरी ही तस्वीर सामने आ गयी.
निर्माण एजेंसी की लापरवाही
एस्टिमेट बनाते समय निर्माण एजेंसी ने मौका मुआयना को गंभीरता से नहीं लिया. नतीजा यह हुआ कि सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी काम में ब्रेक लग गया. कोई भी इमारत बनाने से पहले वहां की स्थिति पूरी तरह देख ली जाती है. एस्टिमेट बनाने के समय ही इन बातों का ध्यान रखा जाता तो यह नौबत नहीं आती. आनन-फानन में एस्टिमेट बनाकर पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग को दे दिया गया. काम शुरू हुआ तो प्लास्टिक कचरे से अड़ंगा लग गया.
जो छात्रावास 3.75 करोड़ में बनना तय हुआ था, अब इसका बजट बढ़ जायेगा. जमीन के अंदर प्लास्टिक कचरा है, इसके कारण वहां खुदाई के बाद पिलर को रोकना मुश्किल होगा. अगर काम कर भी दिया गया तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. इसलिए अब विकल्प के तौर पर ओपन फाउंडेशन ही बचा है. इससे पूरा स्ट्रक्चर बदल जायेगा. एस्टिमेट रिवाइज हुआ तो करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये तक खर्च होने की संभावना है.
हर माह 40 टन कचरा निकलता है पटना में
जानकारों की मानें तो हर माह 40 टन कचरा पटना में निकलता है. 40 फीसदी पैकेजिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है. बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष अशोक घोष ने बताया कि प्लास्टिक हर लिहाज से खतरनाक है. इसके उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक से खतरा है. इसके उत्पादन के दौरान एथीलीन ऑक्साइड, जायलीन, बेंजीन आदि खतरनाक गैस निकलती है. ये गैस खतरनाक बीमारियों का कारण बनती हैं. इसके अलावा नदी-नालों से लेकर समुद्र तक प्लास्टिक कचरे से संकट में हैं.

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