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आसमान में कम ऊंचाई पर उड़ रहे बादलों से आफत बन कर बरस रही बिजली, जानिए वज्रपात से बचने के उपाय
राजदेव पांडेय पटना : अप्रैल से जून माह के दौरान अब तक बिहार और झारखंड में 125 से अिधक लोगों की मौत वज्रपात (ठनका) से हो चुकी है. जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों के मुताबिक बिहार और झारखंड से जुड़े क्लाइमेट जोन में गर्मी की समयावधि (हीट स्पेल) अब सामान्य से अधिक हो […]
राजदेव पांडेय
पटना : अप्रैल से जून माह के दौरान अब तक बिहार और झारखंड में 125 से अिधक लोगों की मौत वज्रपात (ठनका) से हो चुकी है. जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों के मुताबिक बिहार और झारखंड से जुड़े क्लाइमेट जोन में गर्मी की समयावधि (हीट स्पेल) अब सामान्य से अधिक हो गयी है.
क्षेत्रीय वातावरण में नमी की मात्रा दोगुना तक बढ़ गयी है. इसके चलते बिहार और झारखंड में जलवायुविक परिक्षेत्र में क्यूमिलोनिंबस क्लाउड (खास तरह के कपासी वर्षा मेघ) बन रहे हैं.
स्थानीय गर्मी और नमी की अधिकता से यह बादल इतने तेजी से बन रहे हैं कि अपरिपक्व अवस्था में न केवल बरस जाते हैं, बल्कि बिजली (ठनका या वज्रपात) भी गिराते हैं. जलवायु विज्ञानियों के मुताबिक यह खास तरह के कपासी मेघ आसमान में सामान्य तौर पर आठ से 10 किमी ऊंचाई पर उड़ते हैं. इन दिनों यह तीन से पांच किमी ऊंचाई पर हैं.
दूसरे शब्दों में, आसमान में अब यह बादल सामान्य से काफी नीचे बन रहे हैं. इसकी वजह से वज्रपात ज्यादा खतरनाक हो गया है. जिसका परिणाम अधिकतम मौत के रूप में सामने आ रहा है. सामान्य तौर पर इस तरह के बादल केवल माॅनसून और कभी-कभी मार्च में सक्रिय होते हैं.
ऐसा नहीं है कि इन खतरनाक बादल बनने की प्रवृत्ति अचानक बढ़ी है. पिछले एक दशक से बिजली गिरने की दर निरंतर बढ़ी है. अंतिम तीन-चार साल में वज्रपात की दर चरम पर पहुंच गयी है. जलवायु विज्ञानी इस बदलाव को क्लाइमेट चेंज का सबसे डरावना पहलू मान रहे हैं.
जैसे कि पता है कि दशक भर पहले तक बिहार और झारखंड में गर्मी सूखी हुआ करती थी, अब वह नमी युक्त अथवा बरसात से प्रभावित हो गयी हैं. जिसकी वजह से वातावरण में ऊमस काफी बढ़ी हुई है. गौरतलब है कि पिछले तीन-चार साल से इस खास अवधि में ठनका से होने वाली मौत की संख्या इन दोनों राज्यों में अप्रत्याशित रूप से करीब 10 गुना तक बढ़ गयी है.
वज्रपात से बचने के उपाय
1. बादल गर्जन के दौरान मोबाइल और छतरी का प्रयोग न करें.
2. आंधी-बारिश व तूफान के दौरान तत्काल बाद घर
से बाहर न निकलें. देखा गया है कि बादल गर्जन व तेज बारिश के होने के 30 मिनट बाद तक बिजली गिरती है.
3. अगर कहीं कोई तेज बारिश में फंस जाएं तो अपने हाथों को घुटनों पर और सिर को घुटनों के बीच में रखें. इससे शरीर को कम-से-कम नुकसान होगा.
4. मकानाें पर तड़ित चालक लगवाएं.
5. नंगे पैर कदापि बाहर न निकलें.
6. भयंकर बारिश के दौरान बिजली उपकरणों से दूर रहें. बिजली बंद रखें.
7. घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर पर्दा लगा देना चाहिए.
आकाशीय बिजली प्राकृतिक आपदा है न कि ‘ एक्ट ऑफ गॉड’
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार प्राकृतिक आपदा से नागरिकों को बचाने की जिम्मेदारी राज्य की है. राज्य को चाहिए कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे. अगर ऐसा संभव नहीं हो तो परिवार के किसी भी खास सदस्य की मौत होने पर पीड़ित परिवार को मुआवजा दे. इस आशय का आदेश पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में दिया है. हाईकोर्ट ने माना है कि आकाशीय बिजली को भी सुनामी और भूकंप की तरह प्राकृतिक अापदा मानना चाहिए, न कि ‘एक्ट ऑफ गॉड’.
एक्सपर्ट व्यू
क्यूमिलोनिंबस क्लाउड इन दिनों बिहार व झारखंड से जुड़े जलवायु परिक्षेत्र में तेजी से बन रहे हैं. यह खतरनाक बादल सामान्य से काफी नीचे उड़ रहे हैं. फिलहाल इस बादल से जन्म ले रहा वज्रपात खतरनाक साबित हो रहा है. इस सीजन में ऐसे बादल बनने की प्रवृत्ति अब चरम पर है. क्लाइमेट चेंज का यह प्रत्यक्ष और सबसे डरावना उदाहरण है.
—डॉ ए सत्तार, जलवायु िवज्ञानी, पूसा
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