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पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय को बनाया जा सकता है आदर्श शिक्षा केंद्र
II सुरेंद्र किशोर II राजनीतिक विश्लेषक बिहार के नव गठित पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में एक आदर्श शिक्षा केंद्र बनने की संभावना मौजूद है. यदि आदर्श न भी बन सके तो इसे राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों से बेहतर तो बनाया ही जा सकता है. हाल में मगध विश्वविद्यालय से काट कर गठित इस विश्वविद्यालय ने जिस तरह […]
II सुरेंद्र किशोर II
राजनीतिक विश्लेषक
बिहार के नव गठित पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में एक आदर्श शिक्षा केंद्र बनने की संभावना मौजूद है. यदि आदर्श न भी बन सके तो इसे राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों से बेहतर तो बनाया ही जा सकता है. हाल में मगध विश्वविद्यालय से काट कर गठित इस विश्वविद्यालय ने जिस तरह अपनी शुरुआत की है, उससे एक उम्मीद बंधती है. इसके नाम से जुड़ा पाटलिपुत्र शब्द भी शायद इसे अलग ढंग से सोचने का अवसर दे.
रिटायर्ड कर्नल कामेश कुमार की रजिस्ट्रार पद पर तैनाती भी उम्मीद जगाती है. याद रहे कि बिहार के विश्वविद्यालयों की स्थिति सुधारने की लंबे समय से जरूरत महसूस की जाती रही है. मौजूदा कुलाधिपति की इच्छानुसार पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के वीसी डाॅ गुलाबचंद राम जायसवाल ने पटना और नालंदा जिलों के बीएड काॅलेजों के प्राचार्यों की बैठक बुलायी थी. कुलाधिपति ने बीएड शिक्षण में सुधार की जरूरत पर विशेष बल दिया है. कुलपति डाॅ जायसवाल ने एक सप्ताह में बीएड काॅलेजों की स्थिति को सुधारने का निर्देश दिया है.
एक सप्ताह में तो सुधार संभव नहीं है, किंतु अब तक जैसे-तैसे चल रहे बीएड कॉलेजों की कार्यशैली बदलने के लिए ऐसा त्वरित आदेश जरूरी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि बीएड से शुरू कर अन्य विभागों में भी सुधार होगा. याद रहे कि पटना और नालंदा जिलों में पड़ने वाले अविभाजित मगध विश्वविद्यालय के काॅलेजों को नये पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में शामिल किया गया है.
खबर आ रही है कि दाखिले के लिए भी परीक्षा ली जानी है. यदि कदाचारमुक्त दाखिला परीक्षा हो सकी तो काॅलेजों को पढ़ने वाले छात्र मिलेंगे. उससे शैक्षणिक माहौल बनेगा. शिक्षकों और विद्यार्थियों को आधार कार्ड से लैस करना है. विश्वविद्यालय की सामान्य आर्थिक स्थिति सुधारने की भी कोशिश है.
कुल मिलाकर इस नये विश्वविद्यालय में शैक्षणिक व वित्तीय अनुशासन आने की उम्मीद तो की ही जा सकती है. किसी नयी संस्था को नये लोग सुधारने के काम में लगें तो सफलता की अधिक गुंजाइश रहती ही है.
आखिर कौन करे घर की रखवाली! : आये दिन अखबारों में यह खबर छपती रहती है कि फलां व्यक्ति अपना घर या फ्लैट बंद कर पटना से बाहर गया था और उसकी अनुपस्थिति में उस घर या फ्लैट से सारा सामान चोर ले गये. फिर भी शादी, विवाह, त्योहार, इलाज के लिए अपने घर को असुरक्षित छोड़ कर लोग बाहर चले ही जाते हैं. मजबूरी है.
क्या करें? दरअसल इन दिनों आम तौर पर लोग दोस्त के रहते हुए दोस्त विहीन और रिश्तेदार के रहते हुए भी अकेला होते जा रहे हैं. एक को दूसरे से दूर करने के काम में इन दिनों स्मार्ट फोन भी लग गया है. सामूहिक परिवार टूट रहे हैं.
यह इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि गांव से शहर में आकर नौकरी कर रहे अधिकतर लोग अपने किसी परिजन को साथ रखकर पढ़ाना -लिखाना या फिर शहर में लाकर इलाज करवाना नहीं चाहते. फिर उनकी अनुपस्थिति में उनके खाली घर की रखवाली करने कौन आयेंगे?
सामूहिक परिवार का प्रचलन जारी रहता तो पटना का आवास छोड़कर कहीं जाने से पहले गांव से चाचा-भतीजा को बुला लिया जा सकता था. सामूहिक परिवार टूटने का एक घाटा यह भी है. हालांकि सबसे अधिक अकेलापन तो छोट-छोटे बच्चों को खलता है. उन्हें दादा-दादी नहीं मिलते. इन दिनों स्कूलों में हो रहे दादा-दादी मिलन में एक चौथाई बच्चों के ही दादा-दादी देखे जाते हैं.
घुसपैठ रोकने को तैयार है शांतिप्रिय उल्फा : असम के पृथकतावादी संगठन उल्फा के जो लोग अब विद्रोह के पक्ष में नहीं हैं, उन्होंने भारत सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा है. ऐसे लोगों की संख्या करीब दो हजार है.
उनका प्रस्ताव है कि उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठियों को रोकने के काम में लगाया जाये. क्योंकि बीएसएफ के अधिकतर सुरक्षाकर्मी अब भी रिश्वत लेकर घुसपैठियों को इस देश में पनाह दे रहे हैं. शांतिप्रिय उल्फा जमात चाहती है कि उनको लेकर हथियार रहित बटालियन बनाया जाये. वे द्वितीय रक्षा पंक्ति की भूमिका निभायेंगे. क्योंकि, बीएसएफ के अधिकतर जवान असम से बाहर के हैं.
उन्हें असम की धरती से कोई खास प्रेम नहीं है. इस प्रस्ताव के साथ शांतिप्रिय उल्फा नेताओं ने हाल में केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से बातचीत भी की है. सरकार क्या करती है, यह तो बाद में पता चलेगा, पर यह शर्मनाक स्थिति है कि नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के बावजूद घुसपैठ नहीं रुक रही है.
उपचुनावों का एक और दौर : इसी 28 मई को देश के चार लोकसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं. इसके साथ ही, इसी दिन 11 विधानसभा क्षेत्रों में भी उपचुनाव होंगे. महाराष्ट्र के पाल घर और भंडारा लोकसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं.
उत्तर प्रदेश के कैराना और नगालैंड में भी लोकसभा के चुनाव होंगे. बिहार के जोकीहाट सहित उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मेघालय, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में भी विधानसभा के उपचुनाव होंगे. ये चुनाव क्षेत्र पूरे देश में फैले हुए हैं. इन चुनाव नतीजों के जरिये लोगों को एक बार फिर देश के राजनीतिक मिजाज का हल्का अंदाज मिलेगा.
एक भूली-बिसरी याद : चर्चित चारा घोटाले से संबंधित अधिकतर मुकदमों में आरोपितों को सजा होती जा रही है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सीबीआई ने मजबूत केस तैयार किया था. ठोस सबूत खोजे गये थे. जान पर खेल कर यह सब करने वाले सीबीआई अफसर डाॅ यूएन विश्वास को एक बार फिर याद करना मौजूं होगा.
जब केस का अनुसंधान चल रहा था तो हम लोग संवाददाता के रूप में अक्सर विश्वास से मिलते रहते थे. विश्वास बहुत विश्वास पूर्वक कहा करते थे कि हम ऐसा पक्का केस तैयार कर रहे हैं कि अदालत सजा देगी ही. इन दिनों रांची की विशेष अदालतें वही काम कर रही हैं.
लातिनी अमरीकी विद्रोही चे. ग्वेवारा को अपना आदर्श मानने वाले सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक विश्वास को इन सजाओं की खबरों से भारी संतोष मिल रहा होगा. हालांकि इस संबंध में उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने से इन्कार कर दिया है.
उन दिनों की परिस्थितियां देखते हुए अनेक लोग यह कहते थे कि जांच का भार यदि डाॅ विश्वास जैसे ईमानदार और निडर अफसर को नहीं मिला होता तो इस महा घोटाले की जांच के काम को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाया नहीं जा सकता था. सीबीआई का कोई भी अन्य अधिकारी बाहरी और भीतरी दबावों के बीच वह काम नहीं कर पाता जिसे उपेन विश्वास ने बखूबी अंजाम दिया.
हालांकि, यह बात भी विश्वास के पक्ष में रही कि पटना हाईकोर्ट ने विश्वास की भरपूर मदद की. विश्वास ने पटना में पत्रकारों के एक छोटे समूह को बताया था कि मैं कलकत्ता छोड़ते समय हर बार अपनी पत्नी को यह कह कर आता हूं कि ‘शायद मैं इस बार नहीं लौट पाऊंगा.’ उनकी यह बात कोई बनावटी नहीं थी. जांच के दौरान उन्हें पटना में तरह-तरह के प्रलोभन और धमकियां मिल रहे थे.
और अंत में : विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रपट के अनुसार दुनिया के 15 सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में से 14 नगर भारत के हैं. यदि ऐसी रपट किसी अन्य देश के बारे में आयी होती तो लोक स्वास्थ्य को लेकर वहां आपातकाल घोषित कर दिया गया होता. क्या भारत में ऐसी कोई चिंता नजर आ रही है?
बिल्कुल नहीं. दिल्ली आईआईटी ने एक एनजीओ के साथ मिलकर हाल में उत्तर भारत के 11 नगरों का सर्वे किया था. उसने अपनी रिपोर्ट में बताया कि लोगों की असामयिक मौत का एक कारण वायु गुणवत्ता का लगातार खराब होना भी है.
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