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बिहार : संकट में बालू का भंडार, अध्ययन के लिए टास्क फोर्स का गठन

पटना : बालू के भंडार पर संकट मंडराने लगा है. प्रतिदिन बड़ी मात्रा में बालू का खनन तो हो रहा है लेकिन उसके अनुपात में नदियों में बालू का जमाव नहीं हो रहा. इसका कारण यह है कि बाढ़ के साथ आने वाली बालू की मात्रा कम हो गयी है. यदि यही हाल रहा तो […]

पटना : बालू के भंडार पर संकट मंडराने लगा है. प्रतिदिन बड़ी मात्रा में बालू का खनन तो हो रहा है लेकिन उसके अनुपात में नदियों में बालू का जमाव नहीं हो रहा. इसका कारण यह है कि बाढ़ के साथ आने वाली बालू की मात्रा कम हो गयी है.
यदि यही हाल रहा तो आने वाले करीब आठ-दस साल बाद नदियों में बालू भंडार खत्म हो जायेगा. सरकार ने इस मसले पर अध्ययन के लिए पांच सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया है और इनसे एक महीने में रिपोर्ट मांगी है. खान एवं भूतत्व विभाग के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि बालू के जमाव और उठाव के अध्ययन को लेकर विभाग के उपनिदेशक आनंद प्रकाश सिन्हा की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया है. इसमें विभाग के सहायक निदेशक (मु) संजय कुमार, सारण के खनिज विकास पदाधिकारी राजीव कुमार भारती, मेसर्स टीफोरयू के प्रतिनिधि, सारण जिले के बालू घाटों के बंदोबस्तधारी के प्रतिनिधि शामिल हैं.
-क्या है पूरा मामला
खान एवं भूतत्व विभाग ने सर्वेक्षण के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक निर्देश का हवाला दिया है. मंत्रालय के साल 2016 में बालू खनन प्रबंधन संबंधी गाइडलाइन में हर साल बारिश के पहले और इसके बाद राज्य की सभी नदियों में बालू के जमाव का अध्ययन आवश्यक है. विभाग के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि विभिन्न विकास व निर्माण कार्यों के कारण बालू की मांग बढ़ती जा रही है.
बढ़ रही नदियों की गहराई
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि निर्माण कार्यों में काम आने वाले लाल या पीला बालू अधिकतर सोन, कियूल आदि नदियों से निकाले जाते हैं. इन नदियों में अब पहले जैसा बाढ़ और उसके साथ आने वाला बालू नहीं आता.
इस कारण नदियों के रिचार्ज (बालू जमाव) की मात्रा में कमी आयी है. कियूल नदी में तो बालू का भंडार लगभग खत्म हो गया है. नदियों की गहरायी बढ़ने से उस इलाके का भूजल स्तर भी नीचे जा रहा है.
यही हाल कोइलवर के पास सोन नदी का भी है. यहां भूजल कभी 40 फीट की खुदायी में ही मिल जाया करता था अब यह अधिकांश जगहों पर 100 फीट नीचे मिलता है. सारण जिले में गंगा नदी का भी यही हाल है.
गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी 2012 को एक आदेश पारित किया था. इसमें पर्यावरण संरक्षण और वैज्ञानिक ढंग से खनन के लिए दिशा-निर्देश दिये गये थे. इसके तहत खनन से पहले पर्यावरणीय स्वीकृति लेना अनिवार्य है. माइनिंग प्लान बनाना और विभाग से पास कराना अनिवार्य है. खनन पट्टा का न्यूनतम क्षेत्रफल पांच हेक्टेयर होना चाहिए.

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