राज्य महिला आयोग ने सभी स्कूलों को मोबाइल पर रोक का दिया सुझाव
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स्कूलों में नहीं बजेगी मोबाइल की घंटी
राज्य महिला आयोग ने सभी स्कूलों को मोबाइल पर रोक का दिया सुझाव अनुज कुमार शर्मा पटना : राज्य महिला आयोग के सुझाव पर अमल हुआ तो राज्य के इंटरमीडिएट तक के विद्यार्थी स्कूल में फोन नहीं रख सकेंगे. कम उम्र के बच्चों में उग्रता और यौन हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति से चिंतित राज्य महिला […]
अनुज कुमार शर्मा
पटना : राज्य महिला आयोग के सुझाव पर अमल हुआ तो राज्य के इंटरमीडिएट तक के विद्यार्थी स्कूल में फोन नहीं रख सकेंगे. कम उम्र के बच्चों में उग्रता और यौन हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति से चिंतित राज्य महिला आयोग कानून और सामाजिक बदलाव के लिये पहल करने जा रहा है.
प्रदेश के सभी विद्यालयों को महिला आयोग की तरफ से एक पत्र भेजा जा रहा है जिसमें विद्यार्थियों के लिये
फोन प्रतिबंधित करने की सलाह दी गई है. साथ ही दुराचार के मामले में आरोपी की उम्र 12 साल से अधिक होने पर कोई कानूनी रियायत न बरतने का भी प्रस्ताव केंद्र को भेजने की तैयारी चल रही है.
बदलना होगा पुराना कानून
राज्य महिला आयोग की सदस्य डा. उषा विद्यार्थी ने ‘ प्रभात खबर ‘ को बताया कि जुवेनाइल कोर्ट की स्थापना उस समय हुई थी जब टीवी, मोबाइल फोन बच्चों के हाथ में नहीं थे. परिवार भी संयुक्त थे. बच्चों पर निगाह रहती थी. अब इंटरनेट के साथ आई पोर्नोग्राफी ने हालात बदल दिये हैं.
वह मोबाइल फोन के जरिये बच्चों के स्कूल-ट्यूशन बैग तक में घुस गई है.मोबाइल में वे वह सबकुछ देख रहे हैं जो उनको नहीं देखना चाहिये. बच्चों का मैच्यूरिटी लेबल बढ़ रहा है ऐसे में पुराने कानून को पकड़कर रखेंगे तो समाज को नुकसान होगा.
डा. विद्यार्थी का कहना है कि केंद्र सरकार ने 12 साल तक की बच्ची के साथ दुराचार करने वाले के लिये फांसी की सजा का प्रावधान किया है यह स्वागत योग्य है लेकिन आयोग यह महसूस कर रहा है कि 12 साल से अधिक उम्र के बच्चे यदि यौन उत्पीड़न करते हैं तो उनके मामले जुवेनाइल कोर्ट में नहीं सामान्य अदालतों में सुने जायें. इस सुझाव पर भारत सरकार और राज्य सरकार का ध्यान खींचने के लिये हम प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से भी मिलेंगे.
यह है बाल अपराध
जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे किशोर अपराध या बाल अपराध कहते हैं. कानून की दृष्टि में बाल अपराध आठ वर्ष से अधिक 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों द्वारा किया गया हो.
यह है मौजूदा कानून
अगर जुर्म जघन्य हो यानि आईपीसी में उसकी सजा सात साल से अधिक हो तो 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग को वयस्क माना जाये.
हालांकि नाबालिग को अदालत में पेश करने के एक माह में किशोर न्याय बोर्ड तय करेगा कि उसे बच्चा माना जाये या वयस्क. यदि उसे नाबालिग माना जाता है तो उसे बाल सुधार गृह में रखा जायेगा और सामान्य अपराधी से कम सजा दी जायेगी. 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे संज्ञेय अपराध करते हैं तो उनकी सुनवाई जुवेनाइल कोर्ट में होगी. बच्चे को बाल सुधार गृह में रखा जायेगा और 18 साल की उम्र होने पर बाल सुधार गृह से छोड़ दिया जायेगा.
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