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पटना : सरकार की प्राथमिकता में हो बाढ़ नियंत्रण : दिनेश मिश्र
बाढ़ और सुखाड़ पर विशेषज्ञों ने रखे विचार पटना : सन् 1984 में नौहट्टा में बांध टूटा था, तबसे नदियों से मेरा संपर्क है. यह बात प्रसिद्ध बाढ़ विशेषज्ञ डॉक्टर दिनेश कुमार मिश्र ने गुरुवार को विकास प्रबंधन संस्थान, बिहार सरकार और एक्शन मीडिया के संयुक्त तत्वावधान में बिहार डायलॉग के आयोजन में अपने संबोधन […]
बाढ़ और सुखाड़ पर विशेषज्ञों ने रखे विचार
पटना : सन् 1984 में नौहट्टा में बांध टूटा था, तबसे नदियों से मेरा संपर्क है. यह बात प्रसिद्ध बाढ़ विशेषज्ञ डॉक्टर दिनेश कुमार मिश्र ने गुरुवार को विकास प्रबंधन संस्थान, बिहार सरकार और एक्शन मीडिया के संयुक्त तत्वावधान में बिहार डायलॉग के आयोजन में अपने संबोधन के दौरान कही. इस मौके पर समाजसेवी नारायणजी चौधरी व मॉडरेटर के रूप में संस्थान के प्रोफेसर सूर्य भूषण के अलावा कई और लोग उपस्थित थे.
इससे पहले आयोजन की विधिवत शुरुआत में संस्थान के निदेशक एच राव ने अपने संबोधन में कहा कि इस कार्यक्रम का आयोजन बहुत अहम बात है. यह एेसे विषय पर आयोजित है, जिससे हजारो लोग सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं.
जहां तक डीएमआई की बात है तो यह ऐसे ही विषयों से सरोकार रखता है और यह हाई परफॉर्मिंग संस्थान है. मॉडरेटर प्रो सूर्य भूषण ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार में एक तरफ पानी है तो दूसरी तरफ सुखाड है. तालाब खत्म हो रहे हैं और कॉमन जमीन की कमी हो रही है. यह परेशानी हर जगह है. सरकार इसे मैनेज नहीं कर सकती है, क्योंकि इसमें कई तरह की परेशानियां हैं.
योजनाओं को अमली जामा पहनाने की जरूरत डॉक्टर मिश्र ने कहा कि बिहार में बाढ़ कि समस्या से निजात पाने के लिए नेपाल से सन् 1937 से बात चल रही है जो हमारे प्राथमिकता को दर्शाता है. बांध बनाने की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता है. कोसी बराज बनने वाला था नेपाल में, लेकिन बना भारत में. यह बात आज तक समझ नहीं आती है कि ऐसा क्यों हुआ. ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2060 तक गंगा नदी घाटी में पीने के पानी की समस्या शुरू हो जायेगी. हम आज अर्ली वार्निंग सिस्टम की बात कर रहे हैं उसपर 1966 में सबसे पहले महावीर रावत ने विधान सभा में पूछा था.
हम अब तक इसे नहीं विकसित कर पाये हैं. बांध टूटने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि कई बार तटबंधों का कटाव लोग स्वयं करते हैं, ताकि बाढ़ की विभीषिका और उसके द्वारा होने वाले जान और माल का नुकसान कम हो सके. उन्होंने कहा कि जरूरत अपनी बुद्धि से अपने जमीन पर समाधान को निकालने की है.
हम योजना बनाने में तो सबसे अव्वल हैं, लेकिन उनको जमीन पर उतरने में काफी नीचे के स्तर पर हैं. जरूरत योजनाओं को अमली जमा पहनने की हैं. तालाबों के संरक्षण में लगे नारायणजी चौधरी ने कहा कि तालाबों का संबंध हमारे जीवन, हमारी संस्कृति से है.
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