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बिहार : इस तरह होता फ्रॉड इंपोर्ट की आड़ में कमाई का खेल, विदेशी कपड़ों पर लोकल ब्रांड का लेबल लगा कर रहे लाखों कमाई
नाॅर्थ-ईस्ट अलगाववादी संगठनों की कमाई का नया फंडा पटना : इन दिनों अचानक नाॅर्थ-ईस्ट (पूर्वोत्तर) राज्यों से सामानों की स्मगलिंग (तस्करी) या अवैध सामानों की सप्लाइ का चलन काफी बढ़ गया है. इसमें गांजा, चरस, हेरोइन समेत अन्य ड्रग्स के अलावा बड़ी संख्या में सिगरेट, गोल मिर्च, जूता, सोना और कपड़े शामिल हैं. कपड़े में […]
नाॅर्थ-ईस्ट अलगाववादी संगठनों की कमाई का नया फंडा
पटना : इन दिनों अचानक नाॅर्थ-ईस्ट (पूर्वोत्तर) राज्यों से सामानों की स्मगलिंग (तस्करी) या अवैध सामानों की सप्लाइ का चलन काफी बढ़ गया है.
इसमें गांजा, चरस, हेरोइन समेत अन्य ड्रग्स के अलावा बड़ी संख्या में सिगरेट, गोल मिर्च, जूता, सोना और कपड़े शामिल हैं. कपड़े में सबसे ज्यादा विदेशों से बिना टैक्स दिये जुगत भिड़ा कर सप्लाइ करने का चलन जोड़ों पर है. यह कमर्शियल फ्रॉड की आड़ में तस्करी का नया ट्रेंड चल रहा है. कस्टम विभाग की जांच में यह खुलासा हुआ है कि इस पूरे मामले में नाॅर्थ ईस्ट के सभी अलगाववादी या आतंकी संगठनों की भूमिका बेहद ही अहम रही है. इनके लिए टेरर फंडिंग जेनरेट करने का यह नया फंडा बन गया है. इन विदेशी कपड़ों पर लोकल या किसी देसी ब्रांड का लेबल लगा कर पूरे खेल को अंजाम दिया जाता है. नाॅर्थ-ईस्ट से सीधे नयी दिल्ली व मुंबई तक चलनेवाली ट्रेनों के पार्सल यान में इसकी बुकिंग करके सीधी सप्लाइ होती है.
जहां यह फिर से बड़े नामों पर बिकते हैं. इससे सरकार को तो कस्टम, इंपोर्ट ड्यूटी और लेवी मिला कर 30-35 फीसदी टैक्स का सीधा नुकसान होता ही है. इसके विपरीत लाखों की कमाई आतंकी संगठनों को होती है. वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान कस्टम विभाग ने गार्मेंट की तस्करी के 63 और सिर्फ इस तरह के कॉमर्शियल फ्रॉड के 204 मामले पकड़े थे.
इस तरह होता फ्रॉड इंपोर्ट की आड़ में कमाई का खेल
चीन, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मलेशिया में बड़े और नामचीन ब्रांडों का ऑउसोर्सिंग सेंटर है. जहां कपड़ों को तैयार करके इन्हें बकायदा इंपोर्ट ड्यूटी, कस्टम शुल्क समेत अन्य तमाम औपचारिकताओं को पूरी करके भारत में आयात किया जाता है. परंतु इन देशों में मौजूद ऑउटसोर्सिंग सेंटरों में मिली-भगत करके या इन कंपनियों के माल से हु-ब-हू मिलने वाले सामानों को तैयार करवा कर इन्हें पहले मायंमार लाया जाता है. फिर मायंमार से लगने वाली भारत की तीन प्रमुख बॉर्डर रूट के जरिये इन्हें सीमा तक लाया जाता है.
इसमें मणिपुर का मोरे, मिजोरम का जौ खातार और नागालैंड का दीमापुर शामिल है. इन सीमावर्ती इलाकों में इन कपड़ों को स्टोर करके इनका वास्तविक लेबल हटा कर इन पर स्थानीय या किसी देसी कंपनी का लेबल लगा दिया जाता है. कुछ बड़े ब्रांड के जूतों में भी यह धांधली देखी गयी है.
फिर इन सामानों को खराब, रद्दी या स्थानीय स्तर पर तैयार हुआ बताते हुए इन पर कस्टम विभाग से क्लियरेंस ले लिया जाता है. इस तरह इन सामानों पर कस्टम, बेस्कि इंपोर्ट ड्यूटी और लेवी टैक्स की सीधी तौर पर छूट हो जाती है. इसके बाद इन सामानों को ट्रेनों के जरिये नई दिल्ली या मुंबई भेज दिया जाता है.
अन्य सामानों के पार्सल के बीच गलत नाम और पता पर इन्हें बड़ी सावधानी से छिपा कर भेजा जाता है, ताकि यह सामान्य रूप से यह पकड़ में नहीं आये. संबंधित स्टेशन पर पहुंचते ही इनके एजेंट इसे रिसीव कर लेते हैं. फिर इन पर वास्तविक कंपनी का लेबल लगाकर इन्हें वास्तविक कीमत या इसके एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) पर बेचा जाता है. इसमें बड़ी संख्या में विदेशों में तैयार डुप्लीकेट माल भी होते हैं.
बांग्लादेशी या अन्य आतंकी संगठन से संबंध उजागर नहीं : नाॅर्थ ईस्ट के अातंकी संगठन उल्फा, मिजो, नागा लिब्रेशन फ्रंट समेत अन्य अलगाववादी या आतंकी संगठनों के संरक्षण में ही यह पूरा खेल चलता है.
अभी तक बांग्लादेशी या अन्य आतंकी संगठनों से सीधे तौर पर इसका कोई संबंध अभी तक उजागर नहीं हुआ है. खुफिया एजेंसियों का मानना है कि ड्रग्स की तस्करी में मुस्लिम आतंकी संगठनों से इनके ताल्लुकात को इन्कार नहीं किया जा सकता.
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