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पटना :कुओं को बनाया डस्टबीन, पाट दिये तालाब

विडंबना. शहर के पुराने जलस्रोतों, कुओं और तालाबों पर कर लिया अतिक्रमण पटना : भू जल के हिसाब से ‘पानीदार’ पटना शहर के समक्ष अब बे-पानी होने का खतरा मंडरा रहा है. दरअसल एक ओर जहां भूजल के आंकड़ों के मुताबिक इस गर्मी में पिछले साल की तुलना में भूजल स्तर दस फुट और नीचे […]

विडंबना. शहर के पुराने जलस्रोतों, कुओं और तालाबों पर कर लिया अतिक्रमण
पटना : भू जल के हिसाब से ‘पानीदार’ पटना शहर के समक्ष अब बे-पानी होने का खतरा मंडरा रहा है. दरअसल एक ओर जहां भूजल के आंकड़ों के मुताबिक इस गर्मी में पिछले साल की तुलना में भूजल स्तर दस फुट और नीचे जा सकता है, वहीं पटना शहर अपने जल स्रोतों को तेजी से खोता जा रहा है.
जल स्रोतों पर न केवल भू माफिया काबिज होते जा रहे हैं, बल्कि खुद सरकारी एजेंसियां भी जलस्रोतों की जमीनों को डकारती जा रही हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण मीठापुर का जल्ला क्षेत्र है.
पटना शहर के भू-जल की ‘मास्टर चाबी’ कहे जाने वाले इस जल्लाइलाके में नेचुरल झील या ताल था, इसमें साल भर पानी रहता था. दरअसल पटना के बड़े इलाके को डूबने से बचाने वाले इस ताल पर अब सरकारी एजेंसियों ने खतरनाक ढंग से सरकारी निर्माण कर दिया है. जल्लापुर ताल पर अदूरदर्शितापूर्ण किया गया निर्माण तो महज बानगी भर है. ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं, जहां जलस्रोतों को पाट कर व्यावसायिक कंस्ट्रक्शन कर दिया गया है. अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में यह शहर जल संकट के मुहाने पर खड़ा हो सकता है तो इसके समाधान के विकल्प भी सीमित होंगे.
तालाब को भर कर बना दिया शिक्षण संस्थान
वर्तमान में मीठापुर स्थित बस स्टैंड, चाणक्य लॉ यूनिवर्सिटी से लेकर अन्य शिक्षण संस्थान बना दिये गये हैं. यह जल्ला इलाका कभी बहुत बड़ा तालाब हुआ करता था. वहां सैकड़ों एकड़ में बस पानी ही पानी का जमाव सालों भर रहता था.
गर्मी के मौसम में भी वहां का पानी सूखता था. सैकड़ों एकड़ भूमि की सिंचाई इसके द्वारा ही होती थी. बारिश में आधे से अधिक शहर का बारिश का पानी वहीं जमा होता था. इससे शहर में जलजमाव की समस्या नहीं होती थी. गर्मी में भी जल स्तर नीचे नहीं जाता था. अभी इस पर सरकार की ओर से ही अधिसंख्य निर्माण किये जा चुके हैं. तालाब को पाट दिया गया है.
लुप्त होते जा रहे पानी के ‘मंदिर’
वर्षों पहले शहर में सैकड़ों कुएं हुआ करते थे. अब तो कई कुओं के अवशेष भी नहीं बचे हैं. पटना फतुहा मार्ग पर बउली का कुआं काफी प्रसिद्ध हुआ करता था. यह कुआं भीतर भी कई तल्लों के महल जैसा बना हुआ है. गोरिया टोली में पहले कुएं से ही पानी की सप्लाई होती थी. कटरा बाजार में बड़ा कुआं की हालत खराब है. मगध महिला कॉलेज में कुषाणकालीन कुआं मिला है.
कई कुएं विलुप्त हो चुके हैं, कई विलुप्त होने के कगार पर है. कुछ जगहों पर पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित किया है. अब भू-जल रिचार्ज करने का उपाय भी कम हो गया.
केवल नाम के बचे तालाब
शहर में तालाबों की संख्या सैकड़ों में थी, लेकिन वर्तमान में इसकी संख्या काफी कम है. पटना सिटी का मंगल तालाब शहर का सबसे बड़ा तालाब है. इसके अलावा अनिसाबाद मानिकचंद तालाब भी है. गर्दनीबाग में कच्ची तालाब समेत एक-दो और तालाब ही बचे हैं. चकारम कुआं भी बंद
चकारम के बड़े कुएं के पानी आ उपयोगा चार दशक पहले तक मंदिरी के पांच किलोमीटर क्षेत्रफल में रहने वाले लोग करते थे. मौजूदा हालत बहुत ही खराब है. लोग इसमें कूड़ा-कचरा फेंक देते हैं. मीठापुर में दो बड़े कुएं हैं. एक मीठापुर सब्जी मंडी के पास, तो दूसरा पुरंदरपुर में. सब्जी मंडी वाला कुआं चालू है, पर पुरंदरपुर का नहीं. अगमकुआं के कृष्णा मंदिर प्रांगण में कुआं मौजूद है. गहरा होने के कारण इसका पानी कभी समाप्त नहीं होता. अब यह केवल आस्था का केंद्र बन गया है.
भूजल को रीचार्ज करते हैं कुएं व तालाब
कुएं व तालाब जल की पूर्ति करने के लिए बेहतर संसाधन हैं. अभी इनसे केवल पानी निकाला जाता है, वापस डालने का कोई तरीका हम नहीं अपनाते. बारिश के दिनों में कुआं व तालाब वाटर हार्वेस्टिंग का काम भी करते हैं, लेकिन वर्तमान बोरिंग से भूजल का केवल दोहन किया जा रहा है, हम लोग भूजल को रिचार्ज नहीं कर पाते हैं.

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