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खेती-किसानी में आधी आबादी की बढ़ेगी हिस्सेदारी, भोजपुरी में प्रशिक्षण

पटना : पृथ्वी का लगातार बढ़ता तापमान विशेषज्ञों के साथ ही सरकारों के भी कान खड़े करने लगा है. तापमान का सीधा प्रभाव जलवायु परिवर्तन के तौर पर देखने को मिलता है. हालात यही रहे तो अगले कुछ सालों में कृषि की समस्या विकराल हो सकती है. जाहिर है यह हाल पूरे विश्व का है. […]

पटना : पृथ्वी का लगातार बढ़ता तापमान विशेषज्ञों के साथ ही सरकारों के भी कान खड़े करने लगा है. तापमान का सीधा प्रभाव जलवायु परिवर्तन के तौर पर देखने को मिलता है. हालात यही रहे तो अगले कुछ सालों में कृषि की समस्या विकराल हो सकती है. जाहिर है यह हाल पूरे विश्व का है. इसलिए इससे बिहार अछूता कैसे रह सकता है. इसलिए बिहार में कृषि के लिये चुनौतियां कम नहीं हैं.

प्रदेश की दो तिहाई आबादी कृषि पर और कृषि की प्रकृति पर निर्भरता से जुड़ी समस्याएं पहले से ही मुंह बाये खड़ी हैं. इसलिए जलवायु परिवर्तन को लेकर किसानों को सचेत करते रहने का सिलसिला जारी रखना होगा. चूंकि समय बदला है, अब पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी बड़े पैमाने पर खेती-किसानी में हाथ आजमा रही हैं, इसलिए उनको भी जलवायु परिवर्तन को लेकर जागरूक करना जरूरी है. इसी क्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र में आरा से आयीं करीब 35 महिलाओं को जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षण दिया गया. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के डॉ राकेश कुमार, केके राव आदि वैज्ञानिकों के नेतृत्व में यह प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ.

राज्य के जिलों में औसत वर्षा के मामले में काफी अंतर है. कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो कुछ जिलों में ज्यादा बारिश हुई तो कुछ में न के बराबर हुई. यह स्थिति करीब-करीब हर दो साल पर आती रही है. वर्षा में जिलों के बीच की यह असमानता बड़ी चुनौती है.

भोजपुरी में प्रशिक्षण
खेती पर निर्भर आबादी के लिए जीविका के वैकल्पिक साधन की जरूरत है. भूमि उपयोग के पैटर्न में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं है, जबकि कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता गया है. आबादी के अनुपात में कृषि भूमि नहीं बढ़ सकती, लेकिन कृषि भूमि पर निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है, इसकी बड़ी जरूरत है. राज्य के 90 फीसदी ऐसे किसान हैं, जिनके पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है. इन्हीं किसानों के पास राज्य की 50 फीसदी कृषि भूमि है. राज्‍य में 30 फीसदी कृषि भूमि संयुक्त है. ऐसे में लघु और सीमांत किसानों के लिए जीविका के वैकल्पिक साधन जुटाने की चुनौती है. यह वैकल्पिक साधन कृषि आधार ही हो, यह भी जरूरी है, ताकि कृषि में उनकी निरंतरता बनी रहे.

एक स्वयंसेवी संस्था की मदद से आरा के कुछ गांवों से करीब 35 महिलाओं को यहां लाया गया. तापमान बढ़ने, फसलों की उत्पादकता बढ़ाने आदि बिंदुओं पर उनको प्रशिक्षण दिया गया. खास बात यह रही कि इन महिलाओं को भोजपुरी में प्रशिक्षण दिया गया. चूंकि जलवायु परिवर्तन का अगर ख्याल रखकर खेती की जाये तो ज्यादा हानि होने की गुंजाइश नहीं रहती है.

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