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बिहार : फूलों की खेती से किसानों के जीवन में फैली खुशबू

संजय कुमार दानापुर दियारे के बभनगांवा बंगलापर में बड़े पैमाने पर हो रही गेंदे के फूल की खेती दानापुर : संसाधनों और सिंचाई के अभाव के बाद भी दियारे के किसान अपनी मेहनत की बदौलत सफलता की नयी कहानी लिखने के साथ-साथ प्रदेश के किसानों के लिए नजीर बन गये हैं. गेंदे के फूलों की […]

संजय कुमार
दानापुर दियारे के बभनगांवा बंगलापर में बड़े पैमाने पर हो रही गेंदे के फूल की खेती
दानापुर : संसाधनों और सिंचाई के अभाव के बाद भी दियारे के किसान अपनी मेहनत की बदौलत सफलता की नयी कहानी लिखने के साथ-साथ प्रदेश के किसानों के लिए नजीर बन गये हैं. गेंदे के फूलों की खेती ने दियारा क्षेत्र में भी किसानों को रोजगार का अवसर दिया है.
40 एकड़ जमीन पर की जा रही है गेंदे की खेती : दियारे की अकिलपुर पंचायत के बभनगांवा बंगला पर गांव में करीब 40 एकड़ भूमि पर गेंदे की खेती होती है.
गांव में पीसीसी सड़क के दोनों किनारे गेंदे के फूलों की खेती मनमोहक दृश्य उपस्थित करती है. अकिलपुर पंचायत का बंगलापर गांव किसी परिचय का मुहताज नहीं है. संसाधन विहीन और सरकारी सहयोग के बिना इस गांव के किसान अपनी मेहनत की बदौलत बड़ी मात्रा में गेंदा के फूलों की खेती करते हैं.
इस कारण इस गांव की गिनती सर्वश्रेष्ठ फूल उत्पादक में की जाती है. यहां आज तक सिंचाई का साधन नहीं है. किसान पंपिंग सेट से खेत में पटवन करते हैं.
पट्टे पर जमीन लेकर करते हैं खेती : गांव में करीब 20 परिवार माली समुदाय के हैं. वैसे परिवार के लोग बड़े भूस्वामियों से साल भर के लिए एक बीघा जमीन सात से दस हजार रुपये सालाना की दर से पट्टे पर लेते हैं.
फिर इसी जमीन पर गेंदे के फूलों की खेती करते हैं.
साल भर की जाती फूल की खेती : किसान खेतों में साल भर गेंदे के पौधे लगाते जाते हैं. पौधे को तैयार होने में 70 से 75 दिनों का वक्त लगता है. पौधा तैयार हो जाने के बाद करीब दो महीने तक फूल खिलते हैं. किसानों ने बताया कि पहले फरवरी व अगस्त माह में गेंदे की फूल की खेती की जाती थी. अब साल भर गेंदे की खेती करते हैं.
30 साल से फूलों की खेती
किसानों ने बताया कि गांव में गेंदे के फूलों की खेती करीब तीस वर्ष पूर्व से हो रही है. पहले करीब एक-दो बीघा में इसकी शुरुआत की गयी थी. अब इसने व्यापक रूप ले लिया है. आज करीब 40 एकड़ जमीन पर यहां गेंदों के फूल की खेती होती है. इससे सैकड़ों लोगों जीवीकोपार्जन होता है.
क्या कहते हैं किसान
फूल उत्पादक किसान अशोक भगत, रामू भगत, विनोद भगत, प्रमोद भगत, राम बहादुर भगत, वीर बहादुर भगत, राम सजन भगत, कामेश्वर भगत, वीरेंद्र भगत और बहादुर भगत आदि ने बताया कि फूल की खेती के लिए प्रखंड या जिले द्वारा कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता है.
उन्होंने कहा कि सरकारी स्तर पर यदि अनुदान मिले, तो वे फूलों की अच्छी पैदावार कर सकते हैं. किसानों ने बताया कि इस बार लगन कम रहने के कारण खेतों में फूल पड़े हुए हैं. हर साल बाढ़ के कारण फूलों की खेती बर्बाद हो जाती है. इससे काफी नुकसान उठना पड़ता है.
किसान अपनी लागत से खेती करते हैं. जिसकी आर्थिक स्थिति जितनी बेहतर होती है वह उतने बड़े भू-भाग पर फूल की खेती करता है. साथ ही यातायात के उचित संसाधनों के अभाव में फूलों के समय पर बाजार में नहीं पहुंचने पर उचित दाम नहीं मिल पाते हैं. फिर भी वे अपनी मेहनत के दम पर अपनी तकदीर बदलने में लगे हुए हैं.
कई जिलों तक पहुंचता है फूल
गांव से उत्पादित गेंदे के फूलों को किसान पहले तोड़ते हैं. फिर उनके परिजन रात भर जाग कर फूलों की माला बना कर तैयार कर पैक करते हैं. इसे पटना, वैशाली, सारण, सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर व समस्तीपुर समेत कई जिलों तक भेजा जाता है. इससे किसानों को अच्छी-खासी आमदनी होती है.
कोलकाता से लाते हैं फूलों के पौधे
किसानों की मानें तो वे लोग कोलकाता से विभिन्न दरों पर गेंदे के छोटे-छोटे पौधे लाते हैं. किसानों ने बताया कि तीन से पांच सौ रुपये प्रति हजार की दर से गेंदे के पौधा लाते हैं. किसानों ने बताया कि सबसे पहले मिट्टी तैयार की जाती है. फिर उसमें विभिन्न रासायनिक व जैविक खादों को मिलाने के बाद क्यारियां बनाते हुए पौधों को रोपा जाता है. फूल के फलने तक कई प्रक्रियाओं को पूरा करना पड़ता है.

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