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बिहार : खादी धागे से जीवन संवार रहीं महिलाएं, हर रोज दो-तीन सौ रुपये की होती है आमदनी
मोकामा : खादी धागे तैयार कर मोकामा के औंटा, कररा, त्रिमुहान और मोर गांवों की महिलाएं अपना जीवन संवार रही हैं. इन ग्रामीण इलाके में तकरीबन दो सौ महिलाएं इस व्यवसाय से जुड़ी हैं. महिलाओं ने स्वरोजगार से परिवार की जीविका चला कर महिला सशक्तीकरण व ग्राम स्वराज की अनूठी मिसाल पेश की है. जीविकोपार्जन […]
मोकामा : खादी धागे तैयार कर मोकामा के औंटा, कररा, त्रिमुहान और मोर गांवों की महिलाएं अपना जीवन संवार रही हैं. इन ग्रामीण इलाके में तकरीबन दो सौ महिलाएं इस व्यवसाय से जुड़ी हैं.
महिलाओं ने स्वरोजगार से परिवार की जीविका चला कर महिला सशक्तीकरण व ग्राम स्वराज की अनूठी मिसाल पेश की है. जीविकोपार्जन की मुहिम को लेकर खादी धागे से बने कपड़ों का प्रचलन बढ़ा है. महिलाओं की सकारात्मक दिशा से वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएं बन रही हैं. औंटा गांव की कुंदन देवी, मालती देवी, पुतुल देवी आदि ने बताया कि सूत निर्माण महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ है.
हम कुछ महिलाएं समूह बनाकर इस व्यवसाय से जुड़ रही हैं. इसमें सरकार की ओर से मदद भी मिल रही है. महिलाओं को प्रतिदिन तीन से चार घंटे काम के बदले तकरीबन दो सौ रुपये की आमदनी हो जाती है.
समूह में जुड़ी अधिकतर महिलाओं के पति बेरोजगार हैं. इससे पहले महिलाओं को जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ रही थी, लेकिन पिछले दो वर्षों में महिलाएं अपने काम की बदौलत परिवार चला रही हैं. टाल इलाके की कररा निवासी सुनैना देवी ने कहा कि पति की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी आ गयी थी. ऐसे में धागा निर्माण का काम उसके परिवार के लिए मददगार साबित हुआ. त्रिमुहान और मोर गांव में कई महिलाएं अपने घर पर ही परंपरागत तरीके से सूत कातती हैं, जबकि कई महिलाएं समूह बना कर त्रिपुरारी मॉडल चरखे से धागा तैयार कर रही हैं.
सरकार चला रही योजना: सरकार आधुनिक तरीके से खादी वस्त्रों के निर्माण के लिए खादी पुर्नोउद्धार योजना चला रही है. इसके तहत महिलाओं की समूह को अनुदानित दर पर त्रिपुरारी मॉडल चरखा उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे सूती खादी, पोली खादी, उलेन खादी व रेशमी खादी के धागे तैयार किये जा सकते हैं.
इस योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को जोड़ा जा रहा है. इससे महिलाओं को रोजगार का बेहतर अवसर मिल रहा है. महिलाएं जिज्ञासापूर्वक इस रोजगार से जुड़ रही हैं. मोकामा ग्राम स्वराज समिति की सचिव रजनीश सिन्हा ने जानकारी दी कि न्यू मॉडल का करघा भी लगाया गया है. आधुनिक चरखे व करघा चलाने की ट्रेनिंग के लिए जयपुर से करीगरों को बुलाया गया है. जल्द ही वस्त्र तैयार करने का भी काम शुरू कराया जायेगा. कम पढ़ी- लिखीं महिलाएं भी इससे जुड़ कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.
प्रशिक्षण के अभाव में हो रही परेशानी
महिलाओं को आधुनिक चरखे का प्रशिक्षण के अभाव में परेशानी हो रही है. त्रिपुरारी मॉडल चरखे से धागा तैयार करना काफी आसान है, लेकिन इसमें खराबी आने पर बाहर से कारीगरों को बुलाना पड़ता है.
वहीं, चरखा के उपकरण भी मिलने में दिक्कत होती है. ग्राम स्वराज समिति अध्यक्ष सुनील कुमार ने जानकारी दी कि फिलहाल हर माह दो से तीन क्विंटल सूत तैयार होता है. तकरीबन दो दर्जन महिलाएं ग्राम स्वराज समिति से जुड़ कर काम कर रही हैं, जबकि अधिकतर महिलाएं घर पर ही परंपरागत तरीके से धागा तैयार करती हैं. वहीं, भागलपुर के बुनकरों के हाथों खादी धागे बेचे जाते हैं. सरकार की खादी कपड़ा उद्योग को व्यापक बनाने की योजना है. खासकर महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में धागा व वस्त्र निर्माण कारगर साबित हुआ है.
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