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मरीज की स्क्रीनिंग कर जड़ी-बूटी से होगा इलाज
पटना सिटी : आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के तहत जड़ी- बूटी से बनी दवाओं का इस्तेमाल कर जीवाणु जनित बीमारी का उपचार होगा. खासतौर पर पेट व उदर से जुड़ी पानी जनित बीमारियों पर उपचार आरंभ होगा. इसके लिए उपकरण व दवाओं का इंतजार है. उम्मीद की जा रही है कि इस प्रोजेक्ट पर मार्च तक […]
पटना सिटी : आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के तहत जड़ी- बूटी से बनी दवाओं का इस्तेमाल कर जीवाणु जनित बीमारी का उपचार होगा. खासतौर पर पेट व उदर से जुड़ी पानी जनित बीमारियों पर उपचार आरंभ होगा.
इसके लिए उपकरण व दवाओं का इंतजार है. उम्मीद की जा रही है कि इस प्रोजेक्ट पर मार्च तक कार्य आरंभ हो जायेगा क्योंकि विभाग की ओर से इसके लिए फंड का आवंटन किया गया है. साथ ही दूषित पानी से होने वाली संक्रामक बीमारियों को भी ठीक किया जायेगा. केंद्रीय आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद ने इसके लिए अगमकुआं में स्थित क्षेत्रीय आयुर्वेदीय संक्रामक रोग अनुसंधान संस्थान को चयनित किया है.
संस्थान के प्रभारी सहायक निदेशक डॉ सतीश कुमार तिवारी व डॉ सुभाष चौधरी ने बताया कि संस्थान में पेट की बैक्टीरिया जनित बीमारी का उपचार के लिए आरंभ होने वाले प्रोजेक्ट पर कार्य के दरम्यान मरीज की स्क्रीनिंग व ब्रेथ एनालाइजर से जांच की जायेगी. इसके बाद चयनित मरीज का उपचार होगा. संस्थान के चिकित्सक डॉ चौधरी की मानें, तो संस्थान में फाइलेरिया, मलेरिया, पेचिस, पेट की बीमारी व इंनफ्यूलजा पर अनुसंधान होगा और मरीजों का उपचार. इतना ही नहीं संस्थान में इस बात पर भी अनुसंधान की योजना बनायी गयी है कि आयुर्वेद दवाओं का दुष्प्रभाव तो मरीजों पर नहीं पड़ रहा है. प्रभारी सहायक निदेशक की मानें, तो 90 फीसदी लोग बिहार में पेट से संबंधित बीमारी से पीड़ित हैं.
अगमकुआं स्थित राजेंद्र स्मारक चिकित्सा अनुसंधान इकाई के परिसर में संचालित संस्थान में मरीजों को पंचक्रम की सुविधा मुहैया करायी जा रही है. डॉ सुभाष चौधरी ने बताया कि जोड़ों के दर्द व गठिया जैसी बीमारियों के मरीजों का पंचकर्म 14 से 21 दिनों के कोर्स में किया जा रहा है.
हालांकि, पंचकर्म कराने आये मरीजों को भर्ती नहीं किया जाता है क्योंकि संस्थान में उपलब्ध संसाधन में पंचक्रम की क्रिया करायी जाती है. 25 शैय्या वाले संस्थान में मरीजों को भर्ती नहीं किया जाता क्योंकि संस्थान का अपना भवन व जमीन नहीं है.
इस परिस्थिति में अब संस्थान को संक्रामक बीमारियों पर अनुसंधान व उपचार की व्यवस्था करनी है, तो बीमारी की चपेट में आये मरीजों को भर्ती कर उपचार किया जायेगा. ऐसे में बेड की आवश्यकता होगी. साथ ही औषधीय पौधाें के लिए गार्डन की आवश्यकता होगी. हालांकि, राज्य सरकार की ओर से राज्य सरकार से संस्थान को नालंदा में जमीन मुहैया कराने की दिशा में कार्य कराया जा रहा है.
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