जन नायक कर्पूरी ठाकुर की कल यानी 24 जनवरी को जयंती है. बिहार की राजनीति को दिल से जीने वाले और समाजवादी विचारधारा के साथ संवेदनशील राजनीति के सशक्त हस्ताक्षर, पूर्व राज्यसभा सांसद और वर्तमान राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कर्पूरी जयंती को लेकर होने वाली राजनीति पर अपने विचार व्यक्त किये हैं. उन्होंने कर्पूरी जयंती के बहाने होने वाली राजनीति के आईने में जातिगत समीकरण के सियासत को साधने की बातों को रखा है. आइए पढ़ें शिवानंद तिवारी ने कर्पूरी जयंती की स्मृति में क्या संजोकर रखा है :
कर्पूरी जी की जयंती पर भारी मारामारी है. हर रंग की राजनीति के बीच हम ही कर्पूरी जी की राजनीति के असली वारिस हैं यह साबित करने के लिए घमसान मचा हुआ है. मुख्यधारा की तमाम पार्टियां उनकी जयंती मनाकर उनको अपना साबित करने की कोशिश कर रही हैं. इस मारामारी और घमसान के पीछे एक ही मकसद है. कमजोर जातियों को अपनी ओर आकर्षित कर अपने पीछे उनको गोलबंद करना. दूसरी ओर इन तमाम धूम-धड़ाकों से दूर छोटी-छोटी और कमजोर जातियों के लोग भी जहां-तहां इकट्ठा होकर कर्पूरी जी के चित्र पर फूल-माला अर्पित कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित करेंगे. यह जमात कर्पूरी जी की राजनीति की विरासत की दावेदारी के लिए उनकी जयंती नहीं मनाती है.
कर्पूरी जी उनके लिए वोट हासिल करने के माध्यम नहीं हैं. ये कर्पूरी जी पर गर्व करने वाले लोग हैं. उनको इस बात का फख्र होता है कि उंगली पर गिनी जा सकने वाली जाति में पैदा होने वाला नाटे कद का यह विलक्षण आदमी कैसे राजनीति के शीर्ष पर पहुंच गया! उनका दिल कचोटता है. हम जो कर्पूरी जी की जैसी छोटी और कमजोर जाति में पैदा होने वाले लोग हैं, आज की राजनीति में कहां है.
यह एक मौजूं सवाल है. हमारे सामने आज जो राजनीतिक परिदृश्य है उसके देखते हुए क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जैसी जाति में पैदा होने वाला व्यक्ति उनकी या उनके आस-पास की उंचाई तक पहुंच सकता है! फिर यह सवाल उठता है कि कर्पूरीजी ने कैसे वह मुकाम हासिल कर लिया! इस सवाल का जवाब हमें उनके राजनीतिक जीवन के सफ़र में तलाश करने की कोशिश करनी होगी.
कर्पूरी जी का जन्म गुलाम भारत में 24 जनवरी 1924 को हुआ था. जब वे जवान हो रहे थे उस समय आजादी की लड़ाई परवान पर थी. संवेदनशील और युवा कर्पूरी इस लड़ाई से अपने आपको अलग नहीं रख पाये. पढ़ाई छोड़कर आजादी के उस संग्राम में शामिल हो गये. फलस्वरूप जेल यात्रा करनी पड़ी. जेल के भीतर भी चुपचाप जेल नहीं काटा. बल्कि वहां के भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध लंबा उपवास किया. इसी दरम्यान वे कांग्रेस के भीतर समाजवादियों के साथ जुड़ गये. आजादी के बाद कर्पूरी जी कांग्रेस के साथ नहीं गये. बल्कि समाजवादियों के ही साथ रहे. समतावादी समाज की स्थापना का सपना देखने वाले उस जमात में सिर्फ पिछड़े ही नहीं थे. बल्कि समाज के नवनिर्माण का साझा सपना देखने वालों की उस जमात में अगड़े-पिछड़े सब शामिल थे. शीर्ष पर तो अगड़ों की तादाद ही ज्यादा थी.
आजादी के बाद दो-तीन दशक तक समाजवादियों की गाथा संघर्ष की गाथा है. मार खाना, जेल जाना, उपवास करना प्राय: उस समय का नियम था. मजदूर संगठनों से भी कर्पूरी जी का जुड़ाव था. डाक-तार विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल में जेल गये. गोमिया ऑर्डिनेन्स फ़ैक्टरी(गिरिडीह)में हड़ताल करवाया. वहां भूख हड़ताल किया. 1965 में गांधी मैदान में मेरे सामने कर्पूरी जी, तिवारी जी, कम्युनिस्ट पार्टी के चन्द्रशेखर सिंह, रामअवतार शास्त्री सहित कई नेताओं को गांधी मैदान में बुरी तरह पुलिस से पिटवाया गया. कर्पूरी जी की हाथ की हड्डी दो जगहों पर टूट गयी थी. उस समय बिहार में केबी सहाय की सरकार थी. हिंदी पट्टी में अपने संघर्ष के जरिये समाजवादियों ने समाज के शोषित और वंचित तबकों को जगाया. कर्पूरी जी उस संघर्ष के अगुआ नेता थे.
इन सबके अलावा कर्पूरी जी में विलक्षण नैसर्गिक प्रतिभा के भी धनी थे. यहां उसका दो उदाहरण मैं देना चाहूंगा. पहला उदाहरण जिसके विषय में उमेश्वर बाबू(उमेश्वर प्रसाद सिंह, बिहार सेवा के तत्कालीन पदाधिकारी जो कर्पूरी जी के आप्त सचिव हुआ करते थे) ने मुझे बताया था. कर्पूरी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में बी.आइ.टी. मेसरा, रांची में रॉकेट साइंस से जुड़े वैज्ञानिकों का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था.
8मुख्यमंत्री के तौर पर कर्पूरी जी को उसका उद्घाटन करना था. सम्मेलन में जाने के लिए पटना से चलने के पहले ब्रिटानिका इन्साक्लोपीडिया का राॅकेट साइंस वाला खंड ले लेने के लिए उमेश्वर बाबू को उन्होंने कह दिया था. सरकारी जहाज में बैठने के बाद उमेश्वर बाबू से ब्रिटानिका इन्साक्लोपीडिया का वह खंड लेकर 40-50 मिनट की उस हवाई यात्रा के दरम्यान रॉकेट साइंस के विषय में जितना जानना था उन्होंने जान लिया.
उमेश्वर बाबू ने बताया कि कर्पूरी जी जी का उस सम्मेलन में जो भाषण हुआ उसने सम्मेलन में शरीक राकेट साइंस के सभी वैज्ञानिकों को चकित कर दिया. कोई राजनेता रॉकेट साइंस जैसे दुरूह तकनीकी विषय पर इतनी जानकारी के साथ बोल सकता है इसकी कल्पना उनलोगों को नहीं थी. कर्पूरी जी की चकित करने वाली प्रतिभा की दूसरी घटना का गवाह मैं स्वयं हूं. भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनकी गहरी रुचि थी. उन दिनों पटना के दशहरा पूजा केदरमियान होने वाले संगीत समारोहों की देश भर में धूम थी. शहर में जगह-जगह देश भर के प्रतिष्ठित गायक,वादक और नर्तकों का जुटान होता था. इन समारोहों में कहीं न कहीं कर्पूरी जी संगीत का आनंद लेते बैठे जरूर दिखाई दे जाते थे. एक मर्तबा पटना कॉलेजियट स्कूल के मैदान में स्व. रामप्रसाद यादव की भारत माता मंडली द्वारा आयोजित समारोह का अंतिम कार्यक्रम हो रहा था.
उस दौरान मंच पर बिस्मिल्लाह खान साहब और उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खान साहब का संयुक्त कार्यक्रम था. अद्भुत था वह कार्यक्रम. समापन के बाद जब हमलोग चलने लगे तब मेरी नजर कर्पूरी जी पर पड़ी. वे भी चलने लगे थे. अचानक रामप्रसाद जी ने कार्यक्रम समापन पर धन्यवाद ज्ञापन के लिए कर्पूरी जी को आमंत्रित कर दिया. कर्पूरीजी ने धन्यवाद ज्ञापन भाषण में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की गंगा-जमुनी चरित्र पर चंद मिनटों में जो कुछ कहा उसकी गूंज आज तक मुझसे अलग नहीं हुई है. उसके बाद तो दोनों कलाकारों ने कर्पूरी जी को पकड़ कर एक तरह से उठा लिया! बिस्मिल्लाह खान साहब ने कहा कि मैं इतने दिनों से पटना आ रहा हूं. अब तक आप कहां छिपे थे गुदड़ी के लाल.
आज हम सब लोगों ने कर्पूरी जी को अतिपिछड़ा के चौखट पर टांग दिया है. यह ठीक है कि सबकी तरह कर्पूरी जी की भी जाति थी. ऐसी जाति जो अतिपिछड़ों में भी पिछड़ी है. लेकिन कर्पूरी जी ने जो मुकाम हासिल किया है उसका आधार उनकी जाति में देखना उनको छोटा बनाना होगा. कर्पूरी जी ने संघर्ष किया था. देश को आजाद कराने का संघर्ष. आजादी के बाद देश में समाजवादी समाज बनाने का संघर्ष. संघर्ष की आंच मे तपकर निखरे थे कर्पूरी जी. समाजवादी आंदोलन की ताकत ने उनको उस ऊंचाई पर पहुंचने का आधार प्रदान किया था, जिसके वे हकदार थे. समाजवादी आंदोलन की वह धारा आज सुख गयी है. इसलिए जब तक वह धारा पुनर्जीवित नहीं होगी. तब तक कमजोर समाज से तेजस्वी नेतृत्व उभरने की संभावना मुझे नहीं दिखाई दे रही है.
यह भी पढ़ें-
बिहार : ‘सीएम पर कोई खतरा नहीं तो क्यों मांगी जेड प्लस की सुरक्षा’ : शिवानंद तिवारी