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बिहार : कभी चार जिलों की लाइफ लाइन तय करती थी बागमती, अब नहीं है वैसी धार
पटना : बागमती नदी बिहार के चार जिलों सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और मधुबनी की लाइफलाइन मानी जाती है. यह अपनी बेहतरीन उर्वरक क्षमता के लिए मशहूर रही है. कभी इस नदी किनारे पड़ने वाले इलाकों में सिंचाई की सुविधा के कारण फसलों की बंपर पैदावार हाेती थी. लेकिन अब गाद की समस्या से इसकी प्रवाह […]
पटना : बागमती नदी बिहार के चार जिलों सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और मधुबनी की लाइफलाइन मानी जाती है. यह अपनी बेहतरीन उर्वरक क्षमता के लिए मशहूर रही है. कभी इस नदी किनारे पड़ने वाले इलाकों में सिंचाई की सुविधा के कारण फसलों की बंपर पैदावार हाेती थी. लेकिन अब गाद की समस्या से इसकी प्रवाह क्षमता में कमी आ गयी है.
इससे फसलों की पैदावार में भी कमी आयी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिना किनारा लांघे हुए बागमती की प्रवाह क्षमता हाल के दिनों में करीब 19,700 क्यूसेक रही, जबकि 1975 जैसी बाढ़ में नदी में करीब 1,06,800 क्यूसेक और हायाघाट के पास करीब 92,150 क्यूसेक पानी बहा था. गाद की समस्या से बाढ़ के समय नदी का रुख बदलने लगता है और अनुमानित स्थान से हटकर यह कटाव शुरू कर देती है. इसलिए कभी-कभी समस्या गंभीर हो जाती है.
यही हाल साल 2017 की बाढ़ में भी दिखा. हालत यह है कि यह नदी हिमालय से निकलने के बाद नेपाल में करीब 195 किमी की यात्रा तय करती है. इसके बाद बिहार के सीतामढ़ी जिले में समस्तीपुर-नरकटियागंज रेल लाइन पर स्थित ढेंग रेलवे स्टेशन के पास बिहार में प्रवेश करती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां 65,03,750 घनमीटर गाद इसमें पाया गया है.
वहीं, दरभंगा जिले के हायाघाट पहुंचने पर गाद की मात्रा करीब 45,08,000 घनमीटर रह जाती है. इस तरह लगभग 20 लाख घनमीटर गाद हर साल ढेंग और हायाघाट के बीच फैल जाती है. इस गाद का अधिकांश भाग बाढ़ के पानी के साथ खेतों में फैलता है या फिर नदी की तलहटी में बैठ जाता है. इस मिट्टी को अगर ट्रकों में भरा जाये तो हर साल करीब तीन लाख ट्रकों की जरूरत पड़ेगी.
बागमती की प्रवाह क्षमता हाल के दिनों में करीब 19,700 क्यूसेक रही, जबकि 1975 जैसी बाढ़ में नदी में करीब 1,06,800 क्यूसेक और हायाघाट के पास करीब 92,150 क्यूसेक पानी बहा था
बिहार में इस नदी की कुल लंबाई 394 किलोमीटर और जलग्रहण क्षेत्र करीब 6,500 वर्ग किलोमीटर है. सीतामढ़ी जिले में खोरीपाकर से लेकर दरभंगा जिले के कनौजर घाट (कलंजर घाट) के करीब 106 किलोमीटर की दूरी में नदी की धारा आमतौर पर अस्थिर रहती है. कनौजर घाट के बाद जब यह नदी दरभंगा जिले में हायाघाट पहुंचती है तो वहां इसमें अधवारा समूह की नदियां मिल जाती हैं. इसके बाद इस नदी का नाम करेह हो जाता है. यह नदी अंत में खगड़िया जिले के सोनबरसा घाट के पास कोसी में मिल जाती है.
क्या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविदों का कहना है कि बागमती किनारे के सभी गांव व इलाके कभी खुशहाल रहते थे. इसका कारण यह है कि इस नदी से उन्हें अपनी फसलों की सिंचाई के लिए पानी मिल जाता था. साथ ही बाढ़ के समय जिन इलाकों तक इस नदी की पहुंच होती थी वहां के किसाानों को खेती के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती थी.
नदी द्वारा लायी गयी मिट्टी पर केवल बीजों के छिड़काव से ही बढ़िया पैदावार होती थी. अब बागमती में गाद की समस्या ने इसके प्रवाह को बाधित कर दिया है. इस कारण बाढ़ के समय भी नदी द्वारा लायी गयी मिट्टी में बालू की मात्रा अधिक होने से उर्वरता कम देखी जा रही है. ऐसे में गाद की समस्या ने इस नदी को बुरी तरह प्रभावित किया है.
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