17.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बिहार : 17 साल बाद दवा घोटाले में डॉ सहजानंद सहित तीन डॉक्टर दोषी…जानें पूरा मामला

पटना : राज्य के जाने-माने सर्जन डॉ. सहजानंद प्रसाद सिंह समेत तीन डॉक्टर अस्पताल से दवा और सरकारी मशीनों के गबन के मामले में फंस गये हैं. निगरानी ब्यूरो की जांच में 18 साल बाद इन्हें दोषी पाया और तीनों डॉक्टरों को नामजद अभियुक्त बनाते हुए एफआइआर दर्ज की गयी है. फुलवारीशरीफ स्थिति बीमा अस्पताल […]

पटना : राज्य के जाने-माने सर्जन डॉ. सहजानंद प्रसाद सिंह समेत तीन डॉक्टर अस्पताल से दवा और सरकारी मशीनों के गबन के मामले में फंस गये हैं. निगरानी ब्यूरो की जांच में 18 साल बाद इन्हें दोषी पाया और तीनों डॉक्टरों को नामजद अभियुक्त बनाते हुए एफआइआर दर्ज की गयी है. फुलवारीशरीफ स्थिति बीमा अस्पताल से दवा समेत अन्य सभी सरकारी जांच मशीनों के गबन से जुड़ा हुआ है. यह मामला फरवरी 2000 को निगरानी ब्यूरो में आया था.
इसके बाद यह मामला एकदम ठंडे बस्ते में चला गया और इसके जांच की रफ्तार बेहद धीमी हो गयी थी. अब इसके जांच की रफ्तार में तेजी आयी और इससे जुड़ी पूरी हकीकत सामने आ गयी है. निगरानी ने एफआइआर दर्ज करने के बाद इससे जुड़े मामलों की गहन जांच शुरू कर दी गयी है. अब इस मामले में आगे की कार्रवाई करने की तैयारी चल रही है. इस बात की भी पूरी संभावना है कि तीनों आरोपी डॉक्टरों को सरकारी रुपये के गबन, भ्रष्टाचार, पद का दुरुपयोग समेत अन्य आरोपों में गिरफ्तारी भी हो सकती है.
फुलवारीशरीफ बीमा अस्पताल का मामला
फुलवारीशरीफ स्थित बीमा अस्पताल जिस भवन परिसर में चलता है, वहां केंद्रीय औषधि भंडार और बीमा चिकित्सालय भी मौजूद है. तीनों संस्थान एक ही भवन परिसर में हैं. 13 नवंबर 1997 में तत्कालीन श्रम मंत्री रामदास राय और पटना की डीएम राजबाला वर्मा ने इन संस्थानों का औचक निरीक्षण किया था. उस समय यहां से काफी स्तर पर गड़बड़ी की व्यापक शिकायतें मिल रही थी, जिसके बाद यह निरीक्षण किया गया.
निरीक्षण के दौरान करीब साढ़े चार लाख की दवाएं गायब मिली थीं. इसके बाद तत्कालीन अधीक्षक डॉ. सहजानंद प्रसाद सिंह, डॉ. अरुण कुमार सिंह, डॉ. अशोक कुमार वर्मा समेत अन्य कर्मियों को दोषी पाया गया था. पूछताछ के बाद अधीक्षक समेत अन्य आरोपियों ने अपने को बचने के लिए यह बताया कि कुछ दवाईयां कमरा नं- 12 में रखी हुईं थीं, जिनकी जांच नहीं की गयी और इन्हें गायब बता दिया गया. इसके बाद इस मामले की विस्तृत जांच के लिए इसे फरवरी 2000 में निगरानी ब्यूरो में ट्रांसफर कर दिया गया था.
निगरानी जांच में कई गड़बड़ियां आयीं सामने
निगरानी ब्यूरो की जांच में कई स्तर पर गड़बड़ी सामने आयी है. इसमें साढ़े चार लाख की दवाओं के अलावा एक्स-रे फिल्म, फिक्चर, इसीजी रौल एवं मशीन समेत 10 उपकरण भी गायब पाये गये. जांच में पता चला कि इन उपकरणों का उपयोग डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में कर रहे हैं. जिस कमरा नंबर-12 में दवाओं के रखने की बात कही गयी थी, वहां मौजूद दवाओं को बाद में लाकर रखा गया था. इनका कोई उल्लेख अस्पताल की इंवेंट्री या दवा रजिस्टर में है ही नहीं.
इससे यह स्पष्ट होता है कि बचने के लिए यह चाल चली गयी थी. निगरानी ने जांच में यह भी पाया कि यहां के अधीक्षक पिछले 13 साल, भंडारपाल आठ और चिकित्सक छह साल से इसी स्थान पर जमे हुए थे. जबकि नियमानुसार, भंडारपाल को एक साल, चिकित्सक और अधीक्षक को अधिकतम छह वर्ष तक यहां होना चाहिए था. ये तीनों सालों से यहां मौजूद थे और अपनी मनमर्जी से इसे चलाते थे. इस तरह से अन्य कई सबूत इनके खिलाफ पाये गये हैं. इनके आधार पर ही डॉक्टरों पर कार्रवाई हुई है.
ये पाये गये दोषी
– तत्कालीन अधीक्षक डॉ सहजानंद प्रसाद सिंह
– डॉ अरुण कुमार सिंह
– डॉ अशोक कुमार वर्मा.
एफआईआर के बारे में मुझे जानकारी नहीं है. अगर मामला सही है, तो मुझे फंसाने की साजिश हो रही है, क्योंकि इस केस में मैं निर्देश साबित हो चुका हूं. इतने साल बाद मामले को उजागर कर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.
डॉ सहजानंद प्रसाद सिंह, अध्यक्ष,
आईएमए, बिहार

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें