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बिहार : निजी स्कूलों में तनावग्रस्त बच्चे पांच गुने अधिक

चिंता : सीबीएसई टेली कॉल सेंटर के आंकड़ों से खुलासा आनंद मिश्र पटना : सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में तनावग्रस्त बच्चों की संख्या अधिक है. सीबीएसई के टेली कॉल सेंटर को मनोवैज्ञानिक परामर्श (साइकोलॉजिकल काउंसेलिंग) के लिए प्राप्त कॉल्स के आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है. आंकड़ों के अनुसार परामर्श के लिए सेंटर […]

चिंता : सीबीएसई टेली कॉल सेंटर के आंकड़ों से खुलासा
आनंद मिश्र
पटना : सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में तनावग्रस्त बच्चों की संख्या अधिक है. सीबीएसई के टेली कॉल सेंटर को मनोवैज्ञानिक परामर्श (साइकोलॉजिकल काउंसेलिंग) के लिए प्राप्त कॉल्स के आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है. आंकड़ों के अनुसार परामर्श के लिए सेंटर में कॉल करने वाले विद्यार्थियों की संख्या सत्र 2015-17 की तुलना में 15% अधिक है.
सत्र 2016-17 में सेंटर में कुल 30 हजार 62 कॉल आये. इनमें मनोवैज्ञानिक परामर्श के लिए आये 4,329 कॉल में से 3,520 बच्चे निजी स्कूलों के बच्चों से संबंधित थे, जबकि सरकारी स्कूलों के बच्चों के 809 कॉल थे. सरकारी स्कूलों से सेंटर को कॉल करने वाले विद्यार्थियों की संख्या औसतन 17% रही.
मदद लेनेवालों में 21% छात्राएं : तनाव मुक्ति और साइकोलॉजिकल काउंसेलिंग के सेंटर को प्राप्त कॉल्स में 79% छात्र और 21% छात्राओं से संबंधित थे. इस तरह तनावग्रस्त 4,329 विद्यार्थियों में छात्रों की संख्या 3,418 और छात्राओं की संख्या 911 बतायी जाती है. इनमें नौवीं से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थी शामिल थे. काउंसेलिंग से बच्चों ने तनाव से राहत महसूस की है.
बच्चों पर दबाव न डालें, रुचिकर विषय का ही चयन बेहतर
काउंसेलर अनुपमा कुमारी भी मानती हैं कि बच्चों पर माता-पता अथवा अभिभावकों के दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता. यदि किसी बच्चे के माता-पिता दबाव नहीं भी डालते हैं, तो किसी सहपाठी द्वारा दबाव संबंधी चर्चा का भी उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
इसके लिए जरूरी है कि बच्चे की रुचि को देखते हुए विषयों का चयन करने को उन्हें स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए, क्योंकि बच्चे मेहनत तो करते ही हैं, लेकिन सभी बच्चों का आईक्यू लेवल एक समान नहीं होता. दूसरी ओर पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में स्कूल ही माता-पिता अथवा अभिभावकों की काउंसेलिंग करें. इसके अलावा बच्चों की भी काउंसेलिंग की जाये. स्कूलों में काउंसेलर की व्यवस्था हो, तो और बेहतर है अन्यथा शिक्षक-शिक्षिकाएं भी यह कार्य कर सकते हैं.
परीक्षा व अभिभावकों का दबाव
आंकड़ों और रिपोर्ट के अनुसार बच्चों पर माता-पिता अथवा अभिभावकों का दबाव होता है, ताकि वे परीक्षा में उनके अंक अधिक-से-अधिक हों. विशेषकर 12वीं बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वाले विद्यार्थियों में इस परीक्षा के अलावा इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य प्रतियोगिता परीक्षाओं का भी दबाव होता है, जबकि काउंसेलर्स की मानें, तो यह उचित नहीं है. बच्चों की प्रतिभा को पहचान कर प्रोत्साहित करने की जरूरत है.
मनोवैज्ञानिक परामर्श को कॉल करने वाले विद्यार्थी
वर्ष संख्या
2012-13 2,090
2013-14 2,668
2014-15 1,354
2015-16 4,028
2016-17 4,329

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