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ईंट भट्ठा मालिक नहीं सीख सके क्लीनर टेक्नोलॉजी

प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा अब नहीं किया जायेगा रिन्युअल, न ही मिलेगा नया लाइसेंस पटना : बिहार के ईंट भट्ठा मालिक अभी भी क्लीनर टेक्नोलॉजी (स्वच्छतर तकनीक) नहीं सीख सके हैं. अब जब इस महीने से पूरे प्रदेश में पुरानी टेक्नोलॉजी से चलने वाले भट्ठों को अवैध घोषित कर दिया गया है, वैसे में क्लीनर […]

प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा अब नहीं किया जायेगा रिन्युअल, न ही मिलेगा नया लाइसेंस
पटना : बिहार के ईंट भट्ठा मालिक अभी भी क्लीनर टेक्नोलॉजी (स्वच्छतर तकनीक) नहीं सीख सके हैं. अब जब इस महीने से पूरे प्रदेश में पुरानी टेक्नोलॉजी से चलने वाले भट्ठों को अवैध घोषित कर दिया गया है, वैसे में क्लीनर टेक्नोलॉजी के लिए अब प्रशिक्षण देने का फैसला किया गया है.
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने यह साफ कर दिया है कि प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण अब भट्ठे को परिवर्तित नहीं किया गया, तो किसी भी कीमत में न तो संचालन की अनुमति दी जायेगी और न ही उन्हें रिन्युअल मिलेगा. पहले से लगे ईंट-भट्ठों को अब अपनी तकनीक में बदलाव लाना होगा. बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयास करना होगा. प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के सदस्य सचिव ने बताया कि नये ईंट भट्ठों की स्थापना के लिए सहमति भी इसी शर्त पर दी जायेगी कि वे क्लीनर तकनीक से ही उसका संचालित करेंगे.
जानिए क्या थी भट्ठे की पुरानी तकनीक और क्या है नयी?
पुरानी तकनीक : एफसीबीटीके यानी फिक्स्ड चिमनी बुल्स ट्रेंच क्लीन का प्रयोग अभी तक चिमनी में हो रहा था, जो आकार में गोल या बादामी होते हैं. कच्ची ईंटो को भट्ठे में पकने के लिए पायों में सजाया जाता है. भट्ठे में कोयले की झुंकाई चम्मच द्वारा भट्टे की छत पर बने कोल फीडिंग होल से की जाती है. इसमें आमतौर पर दो से तीन लाइनों में कोयले की झुंकाई की जाती है. इसमें कोयले की ज्यादा खपत होती है, जिससे वायु प्रदूषण भी अधिक होता था. इसमें खर्च भी ज्यादा होता था. यही नहीं क्लास वन ईंट भी कम निकल पाती थी. केवल 50 से 60 फीसदी ईंटे ही निकल पाती हैं.
क्या है नयी तकनीक
क्लीनर टेक्नोलॉजी में जिगजैग तकनीक है, जिसका प्रयाेग कर पुराने भट्ठे से 70 से 80 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है और खर्च भी 25 फीसदी तक घट जाता है. क्लास वन ईंटें 80 फीसदी ज्यादा निकलती हैं. जिगजैग भट्टों में हवा का बहाव सीधे होने की बजाय जिगजैग यानी टेढ़ा-मेढ़ा या घुमावदार तरीके से होता है. इन भट्टों में ईंटों की भराई चैंबरों में इस तरह की जाती है कि हवा का बहाव जिगजैग हो. इसमें दो प्रकार के भट्ठे होते हैं. नेचुरल ड्राफ्ट में हवा का खिंचाव चिमनी द्वारा होता है और दूसरे हाई ड्राफ्ट में हवा का खिंचाव एक पंखे की सहायता से किया जाता है.
आज से भट्ठा मालिकों को दिया जायेगा प्रशिक्षण
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा ईंट-भट्ठों से हो रहे वायु प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण के उद्देश्य से राज्य में अवस्थित सभी ईंट-भट्ठों को क्लीनर तकनीक की जानकारी एक बार फिर से विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही है.
इसे बीआइए के तीसरे तल्ले पर दिन में 11 बजे से 2 बजे तक दिया जायेगा. इस कार्यक्रम में पटना, भोजपुर, बक्सर, कैमूर, रोहतास, एवं समस्तीपुर जिले के ईंट भट्ठा मालिकों और संचालकों को प्रशिक्षण दिया जायेगा. यह प्रशिक्षण कार्यशाला नि:शुल्क है. ऐसी जागरूकता कार्यशाला 21 सितंबर को दरभंगा के सीतायन होटल, रेडियो स्टेशन के नजदीक मुजफ्फरपुर के मिठनपुरा में 22 सितंबर को, 23 सितंबर को गया के होटल सूर्या, सिविल लाइंस थाना के नजदीक आयोजित की जायेगी.

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