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यह भिन्न कार्यशैलियों में टकराव का नतीजा

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे के साथ एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार को लेकर वह एक हद से ज्यादा किसी तरह का समझौता नहीं कर सकते. यह बिहार के अनेक कानूनप्रिय लोगों के लिए सकून भरा दिन माना जा रहा है. उन्होंने ‘मनमोहन […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे के साथ एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार को लेकर वह एक हद से ज्यादा किसी तरह का समझौता नहीं कर सकते. यह बिहार के अनेक कानूनप्रिय लोगों के लिए सकून भरा दिन माना जा रहा है.
उन्होंने ‘मनमोहन सरकार’ की तरह किसी सरकार का अगुआ बनने से इनकार करके वैसे लोगों को राहत दी है, जो लोग इस गरीब राज्य के लिए भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं. इस इस्तीफे के साथ नीतीश ने अपनी छवि भी बचा ली है.
उन्होंने इस्तीफे और भ्रष्टाचार के बीच इस्तीफे को चुना है. इसका सकारात्मक असर बिहार की अगली सरकार पर भी पड़ेगा. अगली सरकार के कोई मंत्री भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने से पहले सौ बार सोचेंगे, ऐसी संभावना बन सकती है. यह शुभ लक्षण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राय भी भ्रष्टाचार को लेकर इसी तरह की है. बिहार के प्रति उनका रुख सकारात्मक दिखाई पड़ रहा है.
सन 2015 में जदयू-राजद-कांग्रेस की महागठबंधन सरकार के गठन के थोड़े दिनों बाद से ही राजद और जदयू के बीच असहज संबंध विकसित होने की खबरें मिल रही थीं. दरअसल यह दो भिन्न राजनीतिक शैलियों का टकराव था. राज्य के सुदूर इलाकों से भी कोई अच्छी खबरें नहीं मिल रही थीं. तरह -तरह की शिकायतें नीतीश कुमार को भी मिलती रहती थीं. आरोप था कि सत्ता से जुड़े कुछ प्रभावशाली लोगों ने वही सब करना शुरू कर दिया है, जैसा बिहार में कुछ दशक पहले होता था.
कुछ लोगों को तो यह भी लग रहा था कि पिछले जंगलराज की आहट आ रही है. कुछ कहते थे कि वह तो आ ही चुका है. याद रहे कि पटना हाइकोर्ट ने नब्बे के दशक में कहा था कि बिहार में जंगलराज चल रहा है.
2015 के विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में दबे स्वर में तरह-तरह की राजनीतिक और अराजनीतिक चर्चाएं चल रही थीं. कुछ लोगों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि नीतीश कुमार कैसे यह सब बर्दाश्त कर रहे हैं. जानकार सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार भी इसको लेकर घुटन महसूस कर रहे थे. अंततः नीतीश कुमार ने जंगलराज के नये संस्करण का नेतृत्व करने से अंततः इनकार कर दिया. याद रहे कि हाल के दिनों में निवर्तमान सरकार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा लालू परिवार के कुछ अन्य सदस्यों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप जब सामने आये, तो तहलका मच गया. राजनीतिक तनाव इसलिए भी बढ़ा कि भ्रष्टाचार को लेकर राजद ने वही रुख इस बार भी अपना लिया, जिस तरह का रुख 1996-97 में था, जब चारा घोटाला सामने आया था.
मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम नीतीश कुमार के लिए यह ऊंट की पीठ पर अंतिम तिनका साबित हुआ.संभावना जाहिर की जा रही है कि राजग के सहयोग से बिहार में फिर नीतीश कुमार की सरकार आसानी से बन जायेगी. स्वाभाविक है कि आक्रामक राजद उसके खिलाफ राजनीतिक जोरदार अभियान शुरू करेगा. राजद की दृष्टि में सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता बड़े मुद्दे रहेेंगे.
देखना है कि राज्य की आम जनता इस राजनीतिक उथल-पुथल और अभियान में किस पक्ष का कितना साथ देती है. हां, यदि नीतीश कुमार को फिर सरकार बनाने की जिम्मेदारी मिलती है, तो उन्हें कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर एक बार फिर कठोर कदम उठाने पड़ेंगे.
न्याय के साथ विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में जारी काम भी और तेज करने होंगे. विकास के रुके-थमे कामों में भी तेजी की उम्मीद लोगबाग तो करेंगे ही. यदि जदयू के भीतर से भी कहीं भ्रष्टाचार की गंध आ रही हो तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई करने से राजद समर्थकों का गुस्सा कम हो सकता है.

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