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मानव में इनसानियत के भाव को जगाता है रमजान

पटना : अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डॉ अब्दुल ग़फूर के आवास पर दावत-ए-इफ्तार का आयोजन किया गया. इस आयोजन में सूबे के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी, नाजिम इमारते शरिया अनीसुर्रहमान क़ासमी, पूर्व चेयरमैन नेहालउद्दीन के साथ कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल के प्रदेश अध्यक्ष मिन्नत रहमानी भी शरीक हुए. डॉ अब्दुल गफूर ने बताया कि रोजा रखने […]

पटना : अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डॉ अब्दुल ग़फूर के आवास पर दावत-ए-इफ्तार का आयोजन किया गया. इस आयोजन में सूबे के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी, नाजिम इमारते शरिया अनीसुर्रहमान क़ासमी, पूर्व चेयरमैन नेहालउद्दीन के साथ कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल के प्रदेश अध्यक्ष मिन्नत रहमानी भी शरीक हुए. डॉ अब्दुल गफूर ने बताया कि रोजा रखने की वजह से सारी खराब आदतें छूट जाती हैं. हम बुराई करना, चोरी करना जैसी हर खराब बला से दूर हो जाते हैं. मिन्नत रहमानी ने कहा कि मानवता को मजबूत बनाने में इस पाक महीने का बड़ा रोल होता है. रोजा हमदर्दी का महीना इसी कारण भी कहा जाता है. हममें इनसानियत के भाव को यह पाक महीना जगाता है. हम गरीबों के लिए भी अपना हिस्सा रखते हैं.
पूरे महीने में उनकी हिस्सेदारी तय होती है. ईद के मौके पर जकात दिया जाता है. यह गरीबों के प्रति अपना समर्पण दिखाने का भी मौका होता है.
फुलवारीशरीफ. हाजी मुश्ताक अहमद उर्फ हनी ने कहा कि जरूरतमंदों की मदद करने से बड़ा नेक काम नहीं हो सकता है.रमजान का माह जरूरतमंदों की मदद के लिए तत्पर रहने की प्रेरणा देता है. जरूरतमंदों की मदद सबसे बड़ी इबादत है. रोजा हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है. हर रोजेदार को अपने अन्‍य रोजेदार भाइयों के बीच बराबरी का एहसास होता है.
इसमें अमीर-गरीब हर तबके के लोगों में ऊंच-नीच और छोटे-बड़े का भेद मिट जाता है, जो इनसानियत और सौहार्दपूर्ण समाज के लिए सबसे जरूरी चीज है. जरूरतमंद लोगों की मदद में जुटी रहनेवाली संस्था अल खैर के संस्थापक सदस्य हाजी मुश्ताक ने कहा कि एक दूसरे के काम आना भी एक तरह की इबादत समझी जाती है. जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है, तो हमें कंजूसी नहीं करनी चाहिए. अल्लाह की राह में खर्च करना अफजल माना जाता है. गरीब कोई भी हो चाहे वह अन्य धर्म का क्यों न हो, उसकी मदद करने की शिक्षा रमजान में दी गयी है. जकात, सदका, फित्रा, खैर खैरात, गरीबों की मदद, दोस्त अहबाब में जो जरूरतमंद हैं, उनकी मदद करना ही रमजान का असली मकसद है. पवित्र रमजान के आधे रोजे खत्म हो गये हैं. शेष आधे रोजे बचे हैं. बचे हुए रोजे का हर क्षण इबादत में गुजारें और अधिक-से-अधिक कुरान का पाठ करें.
शबे कद्र की फसीहलत बयान करते हुए मौलाना ने कहा कि इस रात की इबादत हजारों रात की इबादत के बराबर है. इस रात को अल्लाह ताला अपने फरिश्ते को आसमान से जमीन पर भेजते हैं. इसी रात में मांगीं जानेवाली सभी दुआएं पूरी होती हैं.

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