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45 मिनट पहले मिलेगी आपदा की सूचना

सुरक्षा की पहल. आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा वज्रपात पर कार्यशाला का किया गया आयोजन पटना : बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन मंत्री प्रो चंद्रशेखर ने कहा है कि सुरक्षित बिहार बनाने की दिशा में राज्य आपदा प्रबंधन विभाग डिजास्टर रिस्क रोडमैप (डीआरआर) 2015-30 पर काम कर रहा है. इसमें 27 विभागों के साथ मिलकर एक […]

सुरक्षा की पहल. आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा वज्रपात पर कार्यशाला का किया गया आयोजन
पटना : बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन मंत्री प्रो चंद्रशेखर ने कहा है कि सुरक्षित बिहार बनाने की दिशा में राज्य आपदा प्रबंधन विभाग डिजास्टर रिस्क रोडमैप (डीआरआर) 2015-30 पर काम कर रहा है.
इसमें 27 विभागों के साथ मिलकर एक प्लान तैयार किया जा रहा है. प्रयास किया जा रहा है कि किसी भी आपदा के कम से कम आधा-पौने घंटा पहले उसकी चेतावनी की सूचना आमलोगों तक पहुंचायी जा सके. इसमें वज्रपात, बाढ़, भूकंप, आंधी आदि शामिल हैं. वे बुधवार को आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा वज्रपात पर आयोजित एक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे. आपदा प्रबंधन मंत्री ने कहा कि इसका मकसद यह है कि लोगों को आपदा पूर्व सूचना मिल जाये और वे समय रहते अपनी सुरक्षा का उपाय कर लें.
इससे कम से कम जानमाल की क्षति होगी. साल 2014 की एक घटना का हवाला देते हुये उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र सुपौल जिले में एक महादलित बस्ती के चार घरों पर वज्रपात हुआ. उसमें चारों घर तबाह हो गये और दो लोगों की मौत हो गयी. संयोग था कि यह घटना दिन के समय हुई रात में होने पर लोग घरों में सो रहे होते और ज्यादा लोगों की जान जा सकती थी.
वज्रपात से हर साल प्रदेश में करीब 100 लोगों की हो जाती है मौत : उन्होंने कहा कि आपने अखबारों में पढ़ा होगा कि गाड़ी से लोग जा रहे थे और रास्ते में ही उस गाड़ी पर वज्रपात हो गया. इस घटना में सभी लोगों की मौत हो गयी.
एक अनुमान के मुताबिक राज्य में वज्रपात से हर साल करीब 100 लोगों की मौत हो जाती है. उनके परिजनों को सरकार करीब चार करोड़ रुपये मुआवजा देती है, लेकिन इंसान के जीवन के बदले यह पैसे मायने नहीं रखते. कोई व्यक्ति पैसे लेने के लिए मरना नहीं चाहेगा. इंसान का जीवन अमूल्य है. इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए प्रदेश सरकार काम कर रही है.
मंत्री ने कहा कि किसी भी काम के लिए समर्पण होना आवश्यक है. कहा जाता है कि 100 पहले तकनीक का उतना विकास नहीं हुआ था जितना आज है. सोचने की बात यह है कि जो पुल उस समय बना था वह आज भी सुरक्षित है. वहीं आज के जमाने में बने गांधी सेतु और वीपी मंडल सेतु डैमेज हो गये हैं. 17 करोड़ की लागत से बीपी मंडल सेतु के पास बना एक पुल 17 दिन भी नहीं चला. उसका पाया धंस गया और वह डैमेज हो गया. वहीं जुगाड़ टेक्नोलोजी से बने पीपा पुल खूब काम कर रहे हैं. इसका कारण यही है कि 100 साल पहले काम करने वालों में समर्पण की भावना थी जो जुगाड़ टेक्नोलोजी के काम में भी दिखती है. काम में समर्पण हो तो चीन की चुनौती और अमेरिका की दादागिरी धरी की धरी रह जायेगी.
कार्यशाला को संबोधित करते हुये बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व्यासजी ने कहा कि वज्रपात से होने वाले नुकसान के मामले में देश में बिहार का छठा स्थान है.
पहला स्थान महाराष्ट्र का है. वहां 19 ऐसे सेंसर लगाये गये हैं जिनसे वज्रपात होने से करीब आधा घंटा पहले लोगों को सूचना दे दी जाती है. बिहार के 45 हजार गांवों में सूचना भेजने की तैयारी हो रही है. यही काम आंध्र प्रदेश में भी हुआ है. दोनों जगह यह योजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम कर रही है. आइआइटीएम बिहार में इसी साल तीन ऐसे सेंसर लगायेगी. हर सेंसर 150 किमी का एरिया कवर करेगा. उससे सूचना मिलते ही लोगों को एसएमएस से जानकारी दी जाएगी.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
आइआइटीएम पुणे के वैज्ञानिक डॉ वी गोपालकृष्णन ने कहा कि उनका संस्थान सेंसर में लगे रडार से वज्रपात का पूर्वानुमान करता है. यह घटना इतनी जल्द घटती है कि पता भी नहीं चलता. वहीं आंध्र प्रदेश सरकार के लिए वज्रपात रोकने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे
एक्सपर्ट संजय श्रीवास्तव ने कहा कि बिहार में वज्रपात एक पहेली बन गयी है. आमतौर पर यहां घटना दोपहर बाद होती है. दिसंबर और जनवरी महीने को छोड़कर हर महीने यह घटना हो रही है. इससे ग्रामीण इलाके के 95 फीसदी लोग प्रभावित हैं. इनमें से 80 फीसदी से ज्यादा महिलाएं और बच्चे इसकी चपेट में आ जाते हैं. बाढ़ और सूखा की तुलना में इसे कम तवज्जो दिया जाता है. इससे बचाव के लिए लाइटनिंग डिटक्टिंग डिवाइस की जरूरत है.

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