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गांधी ने कहा, बाल मांओं की सेहत तबाह होते देखी

स्त्री जीवन और उसकी सेहत : बापू के समय बाल विवाह, विधवा विवाह बड़ी समस्या के रूप में सामने थी, इसे खत्म करने की मजबूत दलील भी दी नासिरूद्दीन बाल विवाह की प्रथा, नैतिक और शारीरिक दोनों दृष्टियों से हानिकारक है… एक पाश्विक प्रथा की धर्म से पुष्टि करना धर्म नहीं, अधर्म है… मैंने अनेक […]

स्त्री जीवन और उसकी सेहत : बापू के समय बाल विवाह, विधवा विवाह बड़ी समस्या के रूप में सामने थी, इसे खत्म करने की मजबूत दलील भी दी
नासिरूद्दीन
बाल विवाह की प्रथा, नैतिक और शारीरिक दोनों दृष्टियों से हानिकारक है… एक पाश्विक प्रथा की धर्म से पुष्टि करना धर्म नहीं, अधर्म है… मैंने अनेक बाल मांओं की सेहत तबाह होते देखी है… ये महात्मा गांधी के शब्द हैं.
चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पर हम गांधी को खूब याद कर रहे हैं. मगर सवाल है कि क्या हम गांधी की राह पर चलने को तैयार हैं. गांधी को याद करने का मतलब तो यही है कि उनकी बातों पर अमल भी किया जाये. गांधी एक ऐसे भारतीय नेता हैं, जो अपने दौर की हर तरह की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक सवाल पर गौर करते हैं.
आज जब बिहार ने इस बाल विवाह/जल्दी शादी पर खास ध्यान देना शुरू किया है तो चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी के मौके पर गांधी के इस बारे में विचार से रू-ब-रू होने में कोई हर्ज नहीं है. गांधी के समय बाल विवाह, विधवा विवाह बड़ी समस्या के रूप में सामने थी. गांधी ने न सिर्फ इस पर गौर किया बल्कि इसे खत्म करने की मजबूत दलील भी दी. ध्यान रहे, गांधी इस समस्या पर 90-100 साल पहले गौर कर रहे थे और हम आजादी के सत्तर साल बाद भी इसे रोक नहीं पाये हैं.
शरीर और शादी की उम्र
गांधी आत्मकथा में लिखते हैं, तेरह साल की उम्र में मेरा विवाह हुआ था… तेरहवें वर्ष में हुए अपने विवाह के समर्थन में मुझे एक भी नैतिक दलील सूझ नहीं सकती. शादी कितनी उम्र में हो- 1926 से 1929 के दौरान गांधी अलग-अलग मौकों पर इसकी चर्चा करते हैं. 1926 में वे कहते हैं, साधारणत: 18 साल से कम उम्र की लड़की का विवाह कभी किया ही नहीं जाना चाहिए.
मार्च,1928 में मद्रास में पढ़ने वाले लड़कों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि तुम्हें अपने ऊपर इतना अधिकार होना चाहिए कि 16 वर्ष से कम की लड़की से विवाह न करो. यदि मुमकिन होता तो मैं निचली सीमा 20 साल रखता. हम आज बाल विवाह या कम उम्र की शादी की चर्चा कर रहे हैं.
जबकि, गांधी अरसे पहले, 25 साल से पहले किये गये हर विवाह को कम उम्र की शादी की श्रेणी में रखते हैं. संतान पैदा करने लायक शरीर नहीं : गांधी, सन 1926 के यंग इंडिया के एक अंक में मद्रास में हुई एक घटना का जिक्र करते हैं. मद्रास में तेरह साल की लड़की ने जब यौन इच्छा पूरी नहीं की तो पति ने उसे मार डाला था. गांधी जी इस घटना के आधार पर लड़कियों की जिंदगी पर बाल विवाह के असर का जिक्र करते हैं. वे लिखते हैं, जिसे आत्मसंयम से कुछ भी सरोकार न हो और जो पाप में डूबा हो, वही यह कह सकता है कि कन्या के रजस्वला होने के पहले ही उसका विवाह कर देना चाहिए और ऐसा न करना पाप है.
होना तो यह चाहिए कि रजस्वला होने के बाद भी कई बरसों तक लड़की का विवाह करना गुनाह हो. उसके पहले तो विवाह का ख्याल भी नहीं किया जा सकता. किंतु लड़की रजस्वला होते ही संतान पैदा करने लायक नहीं हो जाती. बाल विवाह की यह प्रथा, नैतिक और शारीरिक दोनों दृष्टियों से हानिकारक है. गांधी बाल विवाह होने के पीछे के सामाजिक-रीति रिवाज और धार्मिक वजहों से मुंह नहीं चुराते हैं. वे उन मान्यताओं पर तर्कबुद्धि से सवाल खड़े करते हैं. वे बाल विवाह को बड़े फलक पर देखते हैं और इसे स्वराज्य से जोड़ते हैं. यानी अगर बाल विवाह जैसी चीजें समाज में बरकरार हैं तो यह स्वराज्य की निशानी नहीं हो सकती है. कम से कम लड़कियों के लिए तो स्वराज्य नहीं है.
गांधी जी के इस लेख पर कुछ लोगों ने तीखी राय जाहिर की और बाल विवाह के समर्थन में लिखा. इसके जवाब में उन्होंने लिखा, उस लड़की की उम्र तो खेलने-खाने और पढ़ने की थी, पत्नी का बरताव करने की और अपने नाजुक कंधों पर गृहस्थी की चिंता का भार उठाने की या अपने स्वामी की गुलामी करने की नहीं. गांधी के मुताबिक, बच्चे की शादी पाप कर्म है. मेरे हाथ में सत्ता हो या मेरी कलम में यथेष्ट ताकत हो तो मैं उनका उपयोग प्रत्येक बाल विवाह को रोकने में करूं. गांधी जी ने 26 अगस्त, 1926 को यंग इंडिया में एक लेख का हवाला के कुछ अंश छापे. वे उससे अपनी स‍हमति जताते हैं. उसमें बताया गया है कि किस तरह बाल विवाह से प्रतिवर्ष हजारों कमजोर बच्चे व लड़के-लड़कियां पैदा होते हैं.
यह हमारे समाज में व्याप्त भयानक बाल मृत्यु संख्या का तथा मृत प्रसव की एक मजबूत वजह है. इसके फलस्वरूप समाज में हर साल हजारों बालिकाएं विधवा होती हैं. गांधी जी बहुत अच्छी तरह समझ रहे थे कि बाल विवाह की सामाजिक-धार्मिक-सांस्कृतिक जड़ें गहरी हैं. इसलिए वे कहते हैं, कानून से ऐसी कोई सामाजिक कुप्रथा नहीं रोकी जा सकती है. इसे तो केवल जाग्रत लोकमत ही रोक सकता है.
अगर हम आज भी बाल विवाह को खत्म ही नहीं कर पाए हैं बल्कि बिहार में दस में से लगभग चार लड़कियों की शादी कानूनी उम्र से पहले हो रही है, तो जाहिर है समाज ने ऐसी गैरकानूनी शादी को मान्यता दे रखी है. समाज की सोच ही लड़कियों को कच्ची उम्र में जिंदगी के खतरों से जूझने के लिए झोंक देता है. गांधी जी के विचार को इस रोशनी में देखें और हम अपनी बेटियों के बारे में सोचें. उन्हें शादी की गुड़िया नहीं बनाएं. लोकमत बनाएं. इसकी शरुआत हम अपने घर से ही करें. नया बिहार बनाएं.
बिहार : स्त्री जिंदगी की कहानी कहते आंकड़े
मातृत्व मृत्यु अनुपात (एमएमआर)- 208 (प्रति लाख जीवित प्रसव पर होने वाली मौतें. इनमें ज्यादातर कच्ची उम्र की माएं होती हैं)
जिन लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गयी – 39.1 फीसदी
15 से 19 साल की उम्र में मां बन जाने या गर्भवती होने वाली लड़कियां- 12.2 फीसदी
15-49 साल की वे स्त्रियां जिनमें खून की कमी है- 60.3 फीसदी
महिला साक्षरता दर- 51.5 फीसदी

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