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लोगों को लाइसेंस बनवाने में काटना पड़ रहा चक्कर

नवादा सदर : जिला परिवहन कार्यालय से ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में बिचौलियों सक्रिय हैं, आम लोगों को लाइसेंस बनाने में पसीने छूट रहे हैं. एक लाइसेंस के लिए दो महीने से अधिक समय तक कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है. फिर भी लाइसेंस हाथ नहीं लगता है. सबसे बड़ी बात है कि कार्यालय में लाइसेंस […]

नवादा सदर : जिला परिवहन कार्यालय से ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में बिचौलियों सक्रिय हैं, आम लोगों को लाइसेंस बनाने में पसीने छूट रहे हैं. एक लाइसेंस के लिए दो महीने से अधिक समय तक कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है. फिर भी लाइसेंस हाथ नहीं लगता है. सबसे बड़ी बात है कि कार्यालय में लाइसेंस बनाने के लिए जितना सरकारी शुल्क नहीं लगता है, उससे ज्यादा नाजायज राशि का भुगतान करना पड़ता है. दिन प्रति दिन काले धन के खिलाफ होनेवाले चोट के बाद भी सरकारी विभागों में नाजायज रुपये लेने का सिलसिला जारी है.
जिला परिवहन कार्यालय में कुछ ऐसा ही नजारा ड्राइविंग लाइसेंस बनाने आये लोगों को भुगतना पड़ता है. बताया जाता है कि नाजायज राशि नहीं देने पर जान बूझ कर आवेदन को गायब कर दिया जाता है. कुछ आवेदकों ने बताया कि बाइक चलाने को लेकर पुलिस लाइन में सप्ताह में एक दिन ट्रायल लिया जाता है. पैसे देने वालों को बिना ट्रायल दिये ही परीक्षा में पास कर दिया जाता है, जबकि पैसे नहीं देने वाले को फेल कर दिया जाता है. हिसुआ के एक आवेदक आलोक कुमार ने बताया कि बाइक का ट्रायल नहीं देनेवाले से तीन हजार रुपये लेकर लाइसेंस बनाकर दिया जाता है. सिरदला के रामचंद्र प्रसाद ने बताया कि लाइसेंस बनाने के लिए ऑफिस के पास स्थित एक बिचौलिया ने अस्थायी व स्थायी तौर पर बने ड्राइविंग लाइसेंस के लिए 28 सौ से तीन हजार रुपये तक लिए जा रहे हैं. नारदीगंज के अशोक ने बताया कि दो महीने से लाइसेंस के लिए चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन अब तक नहीं बना है.
शुल्क से दो गुणा अधिक ली जाती है राशि : जिला परिवहन कार्यालय में नाजायज राशि कमाने का गोरखधंधा तेजी से फैल रहा है. इस कार्यालय में सरकारी शुल्क से ज्यादा नाजायज शुल्क लिया जाता है. एक आवेदक ने बताया कि एमवीआइ के नाम पर, ऑफिस के नाम पर अलग से शुल्क लिया जाता है. शुल्क नहीं दिये जाने पर ऑफिस द्वारा परेशान किया जाता है, जो लोग तीन हजार दे देते हैं उन्हें कुछ ही दिनों में लाइसेंस बनाकर दे दिया जाता है, बिचौलियों की आड़ में ऑफिस वाले ही लोगों का आर्थिक शोषण कर रहे हैं.

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