नवादा नगर : सरकार द्वारा गरीबों को रोजगार देकर पलायन रोकने के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे है, लेकिन इसका असर दिख नहीं रहा है. मनरेगा के तहत सौ दिनों के गारंटी वाले रोजगार का हाल भी कागजी दस्तावेज दिखता है. गांवों में मनरेगा द्वारा होनेवाले कामों को अर्थमूवर (जेसीबी मशीन) व अन्य मशीनों से कराया जा रहा है. गरीबों के जॉब कार्ड को इस्तेमाल कर ठेकेदार इसका गलत इस्तेमाल कर रहे है. भदौनी पंचायत के खरीदीबिगहा गांव के कारू मांझी, संजय मांझी आदि ने कहा कि हमें तो जॉब कार्ड मिला भी नहीं है. ईंट भट्ठा पर काम कर रहे थे, पानी के समय आये हैं इसके बाद फिर ईंट भट्ठा पर ही जायेंगे. यहां कोई काम मिलता नहीं है. यदि काम मिलता है तो एक दिन की मजदूरी के लिए पांच दिन दौड़ लगना पड़ता है. बहुत गोलमाल है.
सरकारी दस्तावेजों में दिखता है काम : मनरेगा के तहत दिये गये आंकड़े के अनुसार वर्ष 2015-16 में जिले के 66 हजार 787 परिवारों द्वारा रोजगार मांगा गया, इसमें 56 हजार 562 परिवारों को काम दिया गया. इन परिवारों के किये गये काम में जिले में मनरेगा के 72 करोड़ तीन लाख पैंतीस हजार रुपये खर्च किये गये हैं. विभाग के आंकड़ों से तो दिखता है कि मांगने पर काम मिला है, लेकिन कागजी खेल में गरीबों की हकमारी का असर है कि काम के लिए मजदूर ढूंढे नहीं मिलते हैं. खेती में रोपनी के समय महंगे दामों पर लोगों को मजदूर लाना पड़ा है. सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में जब तक पारदर्शिता नहीं आयेगी पलायन का रोक पाना संभव नहीं है.
मनरेगा का काम है बेहतर : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत वर्ष 2015-16 में 72 करोड़ 3 लाख 35 हजार 7 सौ रुपये का व्यय किया गया है. जिले में लक्ष्य से भी अधिक काम का सृजन किया गया है. 26 लाख 61 हजार श्रम दिवस के मुकाबले 28 लाख 57 हजार श्रम दिवस का सृजन किया गया है. वर्ष 2016-17 में अब तक 21 करोड़ 16 लाख 98 हजार खर्च किये गये हैं.
फर्जी तरीके से होता जॉब कार्ड का गोरखधंधा
जेसीबी, ट्रैक्टर व अन्य उपकरणों से मनरेगा का काम करने के बाद फर्जी तरीके से जॉब कार्ड में काम दिखा कर राशि की निकासी कर ली जाती है. लोगों द्वारा काम किये जाने के बाद अधिकतर को उसी दिन मजदूरी देना चाहिए, जो सरकारी रूप से संभव नहीं है. इस कारण भी मनरेगा के तहत के काम में मजदूर कम जुटते हैं. इसी का लाभ उठाकर ठेकेदार मशीनों से काम कर लेते हैं तथा थोड़े रुपये के लालच में मजदूरों का जॉब कार्ड इस्तेमाल कर लेते हैं.
मनरेगा के माध्यम से होने वाले कामों का लक्ष्य विभागीय स्तर पर पिछले वर्षों के काम के आधार पर तय किया जाता है. सत्र 2015-16 में जिले ने इसमें अच्छा प्रदर्शन किया है. पलायन एक बड़ी समस्या है. इसमें ईंट भट्ठों व अन्य कारखानों में काम करने वाले मजदूर अधिक होते हैं. प्रशासन इस समस्या को रोकने के प्रति गंभीर है. मनरेगा के माध्यम से इसे कम करने का प्रयास होता है.
मनोज कुमार, डीएम