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आंबेडकर छात्रावास में 35 कमरे, रहते हैं 300 छात्र
पढ़ाई करने जिला मुख्यालय आनेवाले विद्यार्थियों के लिए लॉज या छात्रावास ही बसेरा बनता है. छोटे से कमरे में रह कर पढ़ाई करते हैं़ सरकारी स्तर पर दलित व अल्पसंख्यक परिवारों के बच्चों के लिए छात्रावास की व्यवस्था की गयी है. लेकिन, सुविधाएं नहीं हैं नवादा (नगर) : भविष्य के सपनों को आकार देने के […]
पढ़ाई करने जिला मुख्यालय आनेवाले विद्यार्थियों के लिए लॉज या छात्रावास ही बसेरा बनता है. छोटे से कमरे में रह कर पढ़ाई करते हैं़ सरकारी स्तर पर दलित व अल्पसंख्यक परिवारों के बच्चों के लिए छात्रावास की व्यवस्था की गयी है. लेकिन, सुविधाएं नहीं हैं
नवादा (नगर) : भविष्य के सपनों को आकार देने के लिए विद्यार्थियों का आशियाना शहर में छात्रावास या लॉज बनते हैं. गांव से आकर जिला मुख्यालय में रहकर कोर्स अथवा प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करनेवाले सभी विद्यार्थी अपने साथ यादों का बड़ा संसार ले जाते हैं. सफलता या असफलता के सफर को तय करने में लॉज या छात्रावास ही इनका ठिकाना बनता है. शहर के कई मुहल्लों में डेरा लेकर छात्र पढ़ाई करते हैं.
अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए बने आंबेडकर छात्रावास के 35 कमरों में लगभग तीन सौ छात्र रहते हैं. छात्रावास के नये व पुराने भवन में छात्र रहते हैं. सुविधाओं के सुधार कि बात तो कही जाती है. लेकिन, धरातल पर यह स्थिति नहीं दिखती है. शौचालय, पेयजल आदि की समस्या है. रसूल नगर मुहल्ले में नया अल्पसंख्यक छात्रावास बना है. इसकी विधिवत शुरुआत नहीं हो पायी है. केएलएस कॉलेज के डॉ एमजेड शहजादा को छात्रावास प्रभारी बनाया गया है. अनुसूचित जाति की लड़कियों के लिए भी 10वीं तक के लिए छात्रावास सह विद्यालय संचालित है, जहां अक्सर जांच के लिए अधिकारी पहुंचते है. जिले में व्यवस्थित तरीके से लॉज संचालित करने का मापदंड अभी नहीं बन पाया है. कुछ मकान मालिक विद्यार्थियों को मनमाने दर पर सुविधाविहीन भवनों को किराये पर लगाते हैं. वर्तमान में यही मानदंड जिला मुख्यालय में देखने को मिल रहा है.
सुविधाओं का है अभाव : प्राइवेट लॉजों में सुविधाओं का घोर अभाव है. नगर के मिर्जापुर, मालगोदाम, न्यू एरिया, शिव नगर आदि क्षेत्रों में सैकड़ों ऐसे मकान हैं जहां किराये पर विद्यार्थी रहते हैं. प्राइवेट लॉजों में पेयजल, शौचालय, रोशनी व सफाई आदि का घोर अभाव रहता है. मकान मालिक महंगे किराये लेकर सुविधाविहीन कमरों को भाड़े पर लगाते है.
लॉज या छात्रावास बना कर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की होड़ रहती है. कुछ स्थानों पर पुराने मकान के डेंटिग-पेंटिग कर लॉज के रूप में चलाया जा रहा है, तो कई स्थानों पर स्पेशल लॉज के कॉन्सेप्ट से छोटे-छोटे कमरे बनाये गये हैं, जिसे मनमाने दर पर किराये पर लगाया जा रहा है. सभी स्थानों पर यही स्थिति देखने को मिलती है.
रजिस्ट्रेशन की नहीं है व्यवस्था : लॉज या छात्रावास के रजिस्ट्रेशन की कोई व्यवस्था जिले में नहीं है. यही कारण है कि अधिकतर घरों में विद्यार्थियों को डेरा नहीं मिल पाता है. रजिस्ट्रेशन नहीं होने के कारण विद्याथियों के डाटा भी उपलब्ध नहीं है. कई बार बड़ी घटना के बाद लॉज में छापेमारी करनी पड़ती है. इसमें कई बार अपराधियों को पकड़ा भी गया है. प्रशासन के पास डाटा नहीं होने के कारण कितनी संख्या में विद्यार्थी रह रहे हैं इसका आकलन नहीं हो पाता है.
अनुमान के मुताबिक हजारों छोटे बड़े लॉज, छात्रावास, डेरा है जहां लगभग 20 हजार से अधिक विद्यार्थी रहकर पढ़ाई करते हैं. यदि परिचय पत्र के साथ रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था प्रशासन द्वारा की जाये तो प्रशासन के पास आंकड़े भी उपलब्ध होंगे व विद्यार्थियों को भी बेहतर सुविधा मिलने की आश जग पायेगी.
जाति आधारित चलाये जा रहे लॉज : कई जाति विशेष के लॉज व छात्रावास संचालित है. न्यू एरिया में दांगी छात्रावास, मिर्जापुर में यादव छात्रावास, कुशवाहा लॉज,साहू भवन जैसे जाति विशेष के लॉजों में एक जाति विशेष के विद्यार्थियों के लिए यह व्यवस्था की गयी है. इन लॉजों में भी सुविधाओं का अभाव दिखता है. लेकिन, इसकी देख-रेख जाति से जुड़े समाज के लोगों द्वारा किया जाता है.
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