संसार में परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं : प्रभंजनानंद वारिसलीगंज. भक्तों के जीवन में भगवान के प्रति पूरी तरह लगाव व श्रद्धा होना नितांत आवश्यक है. क्योंकि, न जाने भगवान का दर्शन भक्त को किस वेश में हो, कहना मुश्किल है. भगवान को अपने समक्ष पाने के लिए लगातार प्रयासरत होने की जरूरत है. भगवान भक्त के पास आते नहीं, बुलाये जाते है. यह बातें नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन सूर्य मंदिर शांतिपूरम् स्थित मैदान में सियाराम किला के संत प्रभंजनानंद जी महाराज ने मंगलवार को कहीं. उन्होंने कहा कि अवतार शब्द अवतरणी से बना है. अवतार का मतलब उतरना होता है. भक्तों से भगवान अपना संबंध सुधार लिया, उसी का नाम अवतार है. अवतार का एक मात्र उद्देश्य भक्तों का कल्याण करना है, न कि राक्षसों का विनाश. भगवान का पदार्पण हमारे जीवन में भी संभव है. उसके लिए हमें अंदर के विकार को निकाल कर अनुकूल वातावरण बनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इसके लिए भौतिकता, ममता, लोलुप्ता आदि से लगाव खत्म करना होगा. इस संसार में सबसे बड़ा धर्म परोपकार करना है. जिस मनुष्य के पास परोपकार की भावना आ जाये, उसके लिए भगवान का दर्शन दुर्लभ नहीं. जिस प्रकार महर्षि दधीचि ने देवताओं के लिए अपना शरीर दान किया. जटायु माता-पिता की रक्षा के लिए शरीर का परित्याग किया और भगवत की प्राप्ति की. श्रीराम कथा को लेकर व्यवस्था में लगे संयोजक डॉ गोविंद जी तिवारी, डाॅ हरेराम, अरुण सिंह, शंकर कुमार, अमन कुमार आदि ने कार्यक्रम को व्यवस्थित करने में व्यस्त दिखे.
संसार में परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं : प्रभंजनानंद
संसार में परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं : प्रभंजनानंद वारिसलीगंज. भक्तों के जीवन में भगवान के प्रति पूरी तरह लगाव व श्रद्धा होना नितांत आवश्यक है. क्योंकि, न जाने भगवान का दर्शन भक्त को किस वेश में हो, कहना मुश्किल है. भगवान को अपने समक्ष पाने के लिए लगातार प्रयासरत होने की जरूरत है. […]
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