संतान व सुख के लिए करें आंवले की पूजापकरीबरावां. कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को मनाये जाने वाले पर्व को अक्षय नवमी या कुष्मांडक नवमी भी कहते हैं. माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत द्वापर में हुई थी. इस दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था. इसके रोम से कुष्मांड की वेल निकली थी. इस दिन कुष्मांड में रत्न, सोना चांदी, रुपये आदि रख कर दान करना शुभ माना जाता है. इसी दिन कृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी. इससे जनता में अत्याचारी कंस के प्रति विरोध जगा. इसी कारण अक्षय नवमी को लाखों श्रद्धालु मथुरा व वृंदावन की परिक्रमा करते हैं. इस पर्व को आवला नवमी भी कहा जाता है़ आवले की वृक्ष की पूजा संतान प्राप्ति के लिए की जाती है. इस दिन पूजा-अर्चना करने व परोपकार के काम करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. थाना रोड स्थित संजय पांडेय की माने, तो इस दिन स्नान, पूजन तर्पण व अन्न आदि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. अक्षय, पुष्प, धागा बांध कर कपूर, बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए कम से कम सात परिक्रमा अवश्य करना चाहिए. इस दौरान विष्णु भगवान का ध्यान करें. पूजा अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी व मिष्ठान का भोग संभव हो तो जरूर लगाये. शरीर साथ दे तो आंवले के पेड़ की 108 बार परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है. कई लोग तो आंवला के पास ही भोज का आयोजन भी करते हैं. देखा जाये आंवला पूजन पर्यावरण महत्व को भी दरसाता हैं. आंवला पूजन से विवाहित महिलाओं को परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है और तनाव समाप्त होता है़ आंवला सेवन शरीर को सभी आवश्यक तत्व प्रदान करता है़ वैसे भी शास्त्रों में आंवला को अमृत फल कहा गया है.
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संतान व सुख के लिए करें आंवले की पूजा
संतान व सुख के लिए करें आंवले की पूजापकरीबरावां. कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को मनाये जाने वाले पर्व को अक्षय नवमी या कुष्मांडक नवमी भी कहते हैं. माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत द्वापर में हुई थी. इस दिन ही भगवान विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था. इसके रोम से कुष्मांड की […]
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