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नीली क्रांति का अगुवा बनें शिवनंदन, बनायी पहचान

बिहारशरीफ : जब कोई स्वरोजगार के लिए कदम बढ़ा लेता हैं,तो क्रांति की पहली लकीर वहीं से खींच जाती है. अगर यह कदम नीली क्रांति से जुड़ा हो तो बात और भी निराली हो जाती है. नालंदा के मोहनपुर गांव निवासी शिवनंदन प्रसाद आज मछली पालन जैसे स्वरोजगार की राह पकड़ इस क्रांति की धार […]

बिहारशरीफ : जब कोई स्वरोजगार के लिए कदम बढ़ा लेता हैं,तो क्रांति की पहली लकीर वहीं से खींच जाती है. अगर यह कदम नीली क्रांति से जुड़ा हो तो बात और भी निराली हो जाती है. नालंदा के मोहनपुर गांव निवासी शिवनंदन प्रसाद आज मछली पालन जैसे स्वरोजगार की राह पकड़ इस क्रांति की धार बहा रहे हैं.
एक छोटे से गांव से इस व्यवसाय की शुरुआत कर शिवनंदन ने उन लोगों को भी यह संदेश देने का काम किया है कि जो यह सोचते हैं कि व्यवसाय को मुकाम तक पहुंचाने के लिए बड़े शहर या महानगर की दरकार जरूरी है. तारीफे बात यह है कि शिवनंदन इस धंधे से जुड़ सिर्फ खुद ही नहीं बल्कि पंद्रह और लोगों के परिवार के चूल्हे को जला पाने में कामयाब हो रहे हैं. आज से करीब चौबीस वर्ष शुरू हुआ इनका यह व्यवसाय आज बरगद के पेड़ की तरह इस कदर विशालकाय हो गया है कि अब सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि कोलकाता एवं झारखंड प्रदेश के ग्राहक भी इनके यहां जीरा लेने पहुंच रहे हैं.
इस तरह चल निकला व्यवसाय
शिवनंदन प्रसाद बताते हैं कि वर्ष 1990 में इन्होंने मछलीपालन के रुप में इस व्यवसाय की नींव डाली. तब उनके यहां सिर्फ 25 हजार की अल्प पूंजी ही थी. जब उन्होंने इस पेशे को अपनाने की बात परिवार से की तो पहले तो मना कर दिया लेकिन इनकी दृढ़ इच्छा को देख अंतत: इनलोगों ने भी हामी भर दी. इनका हौसला तब और बुलंद हुआ, जब परिवार के सदस्यों ने इस कार्य में रुपये देने की बात भी कही. फिर क्या था, शिवनंदन प्रसाद अपने संकल्प को पूरा करने की राह पर चल निकले और चौबीस वर्र्षो तक दिन- रात ऐसी कड़ी मेहनत की जिससे इनका व्यवसाय बुलंदी तक जा पहुंचा.
जब शिवनंदन प्रसाद घर से निकले थे, तो इस राह में वह अकेले थे. फिर एक -एक कर इनकी कामयाबी में कड़ी जुटते गये.चौबीस वर्ष के इस कारोबारी सफरनामा में हालांकि शिवनंदन की राह में रोड़े तो बहुत आये, लेकिन धुन के पक्के रहे इन्होंने इसकी परवाह नहीं की और फिर कामयाबी की उस सीढ़ी पर जा पहुंचे, जहां कुछेक गिने- चुने लोग ही पहुंच पाते हैं. जब शिवनंदन को सफलता मिलने लगी तो इनके कारवां के साथ और लोग भी जुटते गये और आज आलम यह है कि इनके साथ परोक्ष रुप से पंद्रह लोग जुड़ चुके हैं जिनके घर का चूल्हा इनके व्यवसाय की बदौलत पिछले कई वर्षो से निरंतर जलता आ रहा है.
प्रशिक्षण की हुई दरकार
42 वर्षीय शिवनंदन प्रसाद जूलोजी सब्जेक्ट से पोस्ट ग्रेजुएट हैं. बावजूद इन्होंने किसी सरकारी नौकरी को तब्बजो नहीं दी. जब इन्होंने मछलीपालन कारोबार को अपनाने की ठानी तो औरों की तरह इन्हें भी प्रशिक्षण की दरकार हुई. तब इन्होंने जिला मत्स्यपालन विभाग से चलाये जा रहे दस दिवसीय प्रशिक्षण में शामिल हुए. इस प्रशिक्षण से इन्हें कई महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई, लेकिन यह इतने से संतुष्ट नहीं थे. ऐसी स्थिति में शिवनंदन मछलीपालन व्यवसाय की और बारीकियों को जानने के लिए बंगाल पहुंच गये और वहां दस दिवसीय विशेष प्रशिक्षण शिविर में भाग लेकर जब निकले तो इस व्यवसाय को मानों पंख लग गये. इसके अलावे इन्होंने मछलीपालन से संबंधित कई पुस्तकों को गहन अध्ययन भी किया.
कई तालाबों पर हो रहा व्यवसाय
शिवनंदन मछलीपालन व इसके जीरा के व्यवसाय की शुरुआत पहले अपनी निजी जमीन में बने तालाब से की, लेकिन जब इनका व्यवसाय बढ़ने लगा, तब कई तालाबों को इन्होंने लीज पर ले लिया. आज जीरा के लिए इनके यहां सिर्फ सूबे से ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य झारखंड सहित बंगाल से भी जीरा खरीदने के लिए ग्राहक पहुंच रहे हैं. प्रतिमाह साठ हजार तक मुनाफा कमा रहे शिवनंदन प्रसाद का कहना है कि मछली की बिक्री नगद होती है. उत्पादित मछलियां लॉकल बाजार में ही खप जाया करती है. इसलिए इसकी मार्केटिंग में कोई झंझट नहीं है.
कामयाबी पर नहीं मिला कोई पुरस्कार
भले ही शिवनंदन आज मछलीपालन व्यवसाय को अपना मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में खासा प्रदर्शन कर रहे हो, लेकिन अब तक इन्हें किसी प्रकार का कोई पुरस्कार नहीं मिला है, लेकिन जिले के सैकड़ों लोग लोग आज इनकी सफलता के कायल हैं. इसलिए इस रोजगार के इच्छुक लोग इनके यहां इस व्यवसाय के गुर सीखने के लिए पहुंच रहे हैं.
जिलास्तर पर जब मछलीपालन के लिए प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत होती है, तब शिवनंदन प्रसाद को वहां बतौर मास्टर ट्रेनर आमंत्रित किया जाता है. इनकी काबिलियत को देखते हुए इन्हें हाल ही में सुरक्षित जमा निर्धारण समिति, नालंदा का सदस्य चुना गया है. इसके अलावे शिवनंदन सिलाव मत्स्य सहयोग समिति लिमिटेड में मंत्री का पद संभाल रहे हैं.

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