मुजफ्फरपुर : पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत दलित, आदिवासी व पिछड़ों के लिए केंद्रीय व राज्य सेवाओं में प्राप्त आरक्षण संविधान के अनिवार्य अंग के रूप में स्थापित है. इसे विवादास्पद बनाना अनुचित है. डॉ मिश्र ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य के आरक्षण संबंधी बयान […]
मुजफ्फरपुर : पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत दलित, आदिवासी व पिछड़ों के लिए केंद्रीय व राज्य सेवाओं में प्राप्त आरक्षण संविधान के अनिवार्य अंग के रूप में स्थापित है. इसे विवादास्पद बनाना अनुचित है. डॉ मिश्र ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य के आरक्षण संबंधी बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने दलितों व पिछड़ों को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने की बात नहीं कही है.
केवल धार्मिक आधार पर आरक्षण दिए जाने के विरूद्ध अपनी भावना व्यक्त की है.
डॉ मिश्र ने कहा कि सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन के लिए आरक्षण संविधान का अभिन्न अंग है. सभी राजनैतिक दल आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है. कहा कि आरक्षण को पुन: विवाद का मुद्दा बनाना किसी भी तर्क की कसौटी पर उचित नहीं है. अनावश्यक रूप से राजनैतिक उद्देश्य से लोगों को भ्रमित करने के लिए आरक्षण विवाद विधान सभा चुनावों के समय उछाला जाना उचित नहीं है. किसी के व्यक्तिगत विचार को अहमियत देना उचित नहीं है. आरक्षण आर्थिक, राजनीतिक व शैक्षणिक परिवर्तन का उपकरण है. डॉ मिश्र ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने प्रतिवेदन में कहा था कि केंद्र सरकार व सार्वजनिक प्रतिष्ठानों में लगभग 10 लाख पद रिक्त है. इन पदों पर नियुक्ति होनी चाहिए. 1993 के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के लिए केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण है. 2006 से केंद्र सरकार के शिक्षा संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण लागू हो गया. राज्यों के स्तर पर ओबीसी का आरक्षण लागू है. कहा कि देश में आरक्षण नीति व उसके असर की समीक्षा की जानी चाहिए. यह देखना होगा कि यह नीति अपने उद्देश्य में कहां तक सफल है.