22.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जेनरिक दवाएं: सपना बनीं सस्ती दवाएं

मुजफ्फरपुर: विभिन्न रोगों के इलाज के लिए सस्ते दर पर दवाएं रहने के बावजूद मरीजों को मुहैया नहीं हो पा रही है. मरीज महंगे कीमत वाली दवाएं खरीद रहे हैं. उन्हें तो यह पता भी नहीं है कि जिस दवा को वे महंगी कीमत पर खरीद रहे हैं. उसी कंपोजीशन व गुणवत्त्ता की जेनरिक दवाएं […]

मुजफ्फरपुर: विभिन्न रोगों के इलाज के लिए सस्ते दर पर दवाएं रहने के बावजूद मरीजों को मुहैया नहीं हो पा रही है. मरीज महंगे कीमत वाली दवाएं खरीद रहे हैं. उन्हें तो यह पता भी नहीं है कि जिस दवा को वे महंगी कीमत पर खरीद रहे हैं. उसी कंपोजीशन व गुणवत्त्ता की जेनरिक दवाएं भी बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन डॉक्टरों की ओर से जेनरिक दवाएं नहीं लिखने के कारण मरीज महंगी दवाएं खरीदने पर मजबूर हैं. दवा बाजार के सूत्रों की माने तो अधिकतर कंपनियां दो तरह की दवाएं बनाती है. एक ही कंपोजीशन की इथीकल दवाएं महंगी कीमत पर आती है तो जेनरिक दवाएं सस्ती. अंतर इतना है कि सिप्रो एंटीबायोटिक के दस टैबलेट का पत्ता 60 में आता है तो जेनरिक 22 रुपये में.

जेनरिक दवाओं में नहीं मिलता कमीशन

जेनरिक दवा को थोक विक्रेता बताते हैं कि जेनरिक दवाओं के लिए कंपनियां एमआर नहीं रखती. इन दवाओं के कमीशन में बहुत कम अंतर होता है. डॉक्टरों को भी ऐसी दवाएं लिखने से कोई फायदा नहीं होता. इसलिए वे इथीकल दवाएं ही लिखते हैं. इसका दूसरा कारण यह भी है कि कई दवा दुकानदार अपने यहां डॉक्टर को प्रैक्टिस की जगह देते हैं. वे अगर जेनरिक दवा लिखेंगे तो दवा दुकानदारों को भी बहुत कम फायदा होगा.

जेनरिक की एक भी खुदरा दुकान नहीं

शहर में जेनरिक दवाओं की थाेक दुकानें तो करीब 20 हैं, लेकिन जेनरिक की खुदरा दुकानें नहीं है. दवा दुकानदार इथीकल दवाओं के साथ कुछ जेनरिक दवाएं भी रखते हैं. जेनरिक दुकानें नहीं होने का कारण यह है कि उसकी बिक्री कम होती है. ऐसे में सिर्फ जेनरिक दवा दुकानें खोलने से उनका काम नहीं चलेगा.

स्वास्थ्य विभाग भी नहीं करता पहल

स्वास्थ्य विभाग भी शहर मे जेनरिक दवा दुकाने खोले जाने की पहल नहीं करता. एक वर्ष पूर्व मुख्यालय की ओर से सदर सहित सभी सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवा दुकानें खोले जाने की स्वीकृति दी थी. लेकिन उसके बाद विभाग की ओर से कोई पहल नहीं हुई. नतीजा मरीजों को सस्ते दर पर दवा उपलब्ध कराने की सरकारी योजना फेल हो गयी.

जेनरिक दवाएं कुछ रिटेलर दुकानदार खरीद कर ले जाते हैं. इसका सेल काफी कम है. डॉक्टर जेनरिक दवाएं बहुत कम लिखते हैं. दवाओं का सेल कम होने के कारण मुझे जेनरिक के साथ सर्जिकल आइटम रखना पड़ रहा है.

वीरेंद्र कुमार, होलसेल विक्रेता, जेनरिक दवा

जेनरिक दवा का स्टॉल खोलने के लिए एक बार मुख्यालय का पत्र आया था. अस्पताल परिसर में जगह भी चिह्नित कर लिया गया है, लेकिन उसके बाद कोई निर्देश नहीं आया.

डॉ ललिता सिह, सिविल सर्जन

सभी तरह की जेनरिक दवाएं लिखना मुश्किल है. उसके लिए डॉक्टरों को पुरजे पर दवा का कंपोजीशन लिखना होगा. कोई मलहम तीन तरह की दवा से मिलकर बना है, जबकि जेनरिक दवाओं में तीन दवा अलग-अलग नाम से है. इसमें प्रैक्टिकल कठिनाई आती है. पूरे देश में कहीं भी जेनरिक दवाएं नहीं लिखी जा रही है. डॉ रंधीर कुमार, सचिव, आइएमए

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें