पूर्वी चंपारण जिले के गोविंदपुर निवासी उत्पल आनंद ने एमएस कॉलेज मोतिहारी से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद एमएस लॉ कॉलेज में सत्र 2008-09 में नामांकन लिया. तीन साल में तीनों पार्ट की परीक्षा दी और उत्तीर्ण भी हुआ. विवि की ओर से उसे डिग्री भी जारी की गयी. डिग्री के आधार पर उत्पल आनंद ने स्टेट बार कौंसिल में वकालत के लाइसेंस के लिए आवेदन दिया, लेकिन उसका आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया.
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वीसी सहित पांच पर ढाई लाख जुर्माना
मुजफ्फरपुर: बिना मान्यता के ही कोर्स चलाने व छात्रों को डिग्री जारी करने के मामले में उपभोक्ता फोरम ने बीआरए बिहार विवि के कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक सहित पांच लोगों पर ढाई लाख रुपये का जुर्माना ठोंका है. जुर्माने की राशि एक महीने के अंदर वादी को उपलब्ध करानी होगी. ऐसा नहीं करने पर जितनी […]
मुजफ्फरपुर: बिना मान्यता के ही कोर्स चलाने व छात्रों को डिग्री जारी करने के मामले में उपभोक्ता फोरम ने बीआरए बिहार विवि के कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक सहित पांच लोगों पर ढाई लाख रुपये का जुर्माना ठोंका है. जुर्माने की राशि एक महीने के अंदर वादी को उपलब्ध करानी होगी. ऐसा नहीं करने पर जितनी देरी होगी, उतने समय के लिए नौ प्रतिशत ब्याज देना होगा. मामला मुंशी सिंह लॉ कॉलेज से जुड़ा है.
पूर्वी चंपारण जिले के गोविंदपुर निवासी उत्पल आनंद ने एमएस कॉलेज मोतिहारी से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद एमएस लॉ कॉलेज में सत्र 2008-09 में नामांकन लिया. तीन साल में तीनों पार्ट की परीक्षा दी और उत्तीर्ण भी हुआ. विवि की ओर से उसे डिग्री भी जारी की गयी. डिग्री के आधार पर उत्पल आनंद ने स्टेट बार कौंसिल में वकालत के लाइसेंस के लिए आवेदन दिया, लेकिन उसका आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया.
2006 में ही खत्म हो चुकी है कॉलेय की मान्यता
स्टेट बार कौंसिल ने बताया कि वर्ष 2006 के बाद एमएस लॉ कॉलेज में विधि कोर्स की मान्यता खत्म हो चुकी है. इसके बाद उत्पल ने पूर्वी चंपारण जिला स्थित उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज कराया. इसमें कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक के अलावा एमएस लॉ कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य व एमएस कॉलेज मोतिहारी के तत्कालीन प्राचार्य को आरोपित बनाया गया. छात्र ने इन सभी पर मानसिक व आर्थिक शोषण का आरोप लगाते हुए दस लाख रुपये का दावा किया. मामले में फोरम ने आरोपितों को अपना पक्ष रखने को कहा, लेकिन बार-बार समय देने के बावजूद विवि की ओर से कोई पक्ष नहीं रखा गया. इसके बाद फोरम ने एकतरफा फैसला लेते हुए आरोपितों पर ढाई लाख रुपये जुर्माना लगाने का फैसला लिया. फैसले की कॉपी सभी संबंधित लोगों को भेजी गयी है.
विवि को देना पड़ा था 12.5 लाख जुर्माना
वर्ष 2006 में विवि प्रशासन ने बार कौंसिल ऑफ इंडिया को कॉलेज की संबद्धता के लिए डेढ़ लाख रुपये का प्रस्ताव भेजा, लेकिन वहां से टीम विजिट करने नहीं आयी. वर्ष 2014 में बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने अचानक कॉलेज को संबद्धता प्राप्त नहीं होने के कारण वहां के पास आउट छात्रों का अपने यहां पंजीयन से इनकार कर दिया. इसके बाद विवि प्रशासन ने 12.5 लाख रुपये का जुर्माना भर इस खतरे को दूर किया. यही नहीं, इसी माह विवि की ओर से राज्य सरकार को एमएस लॉ कॉलेज में स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति व शिक्षकों के नये पद सृजित करने का प्रस्ताव भेजा गया है, ताकि कॉलेज को स्टेट बार कौंसिल से मान्यता दिलायी जा सके. नियमों के तहत यह जरूरी है.
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