फिलहाल वे इसके लिए विभाग से लेकर विवि परीक्षा विभाग तक चक्कर लगा रहे हैं. वैसे विभागीय सूत्रों की मानें तो इस पर अंतिम फैसला परीक्षा बोर्ड ही ले सकती है. 2011 में विवि के पीजी कोर्स में सेमेस्टर सिस्टम लागू किया गया. इसमें छात्र-छात्रओं को प्रत्येक विषय में 20 अंक आंतरिक मूल्यांकन के तहत मिलने थे. ये अंक परीक्षार्थी को कक्षा में उपस्थिति व उसके आचरण के आधार पर विभागाध्यक्षों को देना था. प्रथम सेमेस्टर में विभाग की ओर से आंतरिक मूल्यांकन का अंक भेज दिया गया, पर अभ्यर्थी थ्योरी पेपर में फेल हो गये. प्रावधान के तहत प्रमोटेड होने के बावजूद उन्हें सेकेंड सेमेस्टर में प्रमोशन मिल गया. बाद में दुबारा उन्होंने पीजी फस्र्ट सेमेस्टर की उक्त विषय की परीक्षा दी. इस बार वे थ्योरी तो पास कर गये, पर उन्हें आंतरिक मूल्यांकन का अंक नहीं मिल सका. विभागाध्यक्षों का कहना है कि आंतरिक मूल्यांकन का अंक वे पहले ही भेज चुके हैं और दुबारा अभ्यर्थी ने क्लास की ही नहीं तो उन्हें अंक कैसे दिये जा सकते हैं. ऐसे में पूर्व का अंक ही मान्य होगा, लेकिन टेबुलेटर इससे इनकार कर रहे हैं.
इस कारण टीआर व अंक पत्र पर आंतरिक मूल्यांकन का अंक नहीं चढ़ सका. कई मामलों में तो खुद विभागाध्यक्षों ने आंतरिक मूल्यांकन के अंक की जगह अबसेंट लिख दिया है या भेजा ही नहीं है. परीक्षा विभाग इस बारे में कई बार विभागाध्यक्षों को पत्र लिख चुकी है. उसका तर्क है कि जब 75 प्रतिशत उपस्थिति के आधार पर छात्र ने परीक्षा फॉर्म भरी है तो उसे आंतरिक मूल्यांकन में अबसेंट कैसे किया जा सकता है, जबकि उपस्थिति पर ही सबसे ज्यादा अंक देना है.