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दरख्तों पे बुलबुल अब आते नहीं हैं …

दरख्तों पे बुलबुल अब आते नहीं हैं … मुंगेर. गंगोत्री के तत्वावधान में बंगाली टोला बेलन बाजार में भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता व्यंग्कार सह चिकित्सक डॉ केके वाजपेयी ने की. मौके पर सांस्कृतिक क्रांति संदेश बुलेटिन ” दिव्य शंखनाद ” का वर्षांत अंक का लोकार्पण किया गया. काव्य गोष्ठी का […]

दरख्तों पे बुलबुल अब आते नहीं हैं … मुंगेर. गंगोत्री के तत्वावधान में बंगाली टोला बेलन बाजार में भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. उसकी अध्यक्षता व्यंग्कार सह चिकित्सक डॉ केके वाजपेयी ने की. मौके पर सांस्कृतिक क्रांति संदेश बुलेटिन ” दिव्य शंखनाद ” का वर्षांत अंक का लोकार्पण किया गया. काव्य गोष्ठी का शुभारंभ गीतकार शिवनंदन सलिल की स्वर लहरी से हुई. उन्होंने कहा कि भला बुरा कहने सुनने में बीत गया यह साल, रे मितवा बीत गया यह साल. डॉ शिवचंद्र प्रताप ने कहा कि ” ऐसा मत कह ऐ गीत! मुझे, तुम से पहले सा प्यार नहीं, सपने स्वर पा जाने भर को, अब भी वीणा पर ठहरे है ” सुनाया. डॉ पूनम रानी ने सुमधुर स्वर लहरी प्रस्तुत करते हुए कहा ” दरख्तों पे बुलबुल अब आते नहीं है, नगमें मुहब्बत के गाते नहीं है, सहमती हैं किरणें उतरते सुबह की, कलियों को अब गुदगुदाती नहीं है ”. कवि कैलाश राम रमण ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा ” अब नहीं चुभती जमाने की नजर, अब नहीं बदनाम होने की फिकर ” . अंगिका साहित्य के महाकवि विजेता मुद्गलपुर ने अपनी सद्य: प्रकाशित पुस्तक गीत-गीता की बानगी प्रस्तुत करते हुए कहा ” संजय रण के हाल बतावै, दूर्योधन के व्यूह रचल पर दृष्टि पात करवावै ”. केके वायपेयी ने कहा कि ” चोर मचाये शोर कि मुझ पर जुलुम हुआ घनघोर, थानेदार ने पकड़ा रंगे हाथ, कोई नहीं देता अब साथ ”. आचार्य नारायण शर्मा, प्रो. कुंदन कुमार, ज्योति कुमार सिन्हा, श्याम सुंदर प्रसाद, गुरुदयाल त्रिविक्रम ने भी अपनी-अपनी कविता का पाठ किया.

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