मुंगेर : देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है. इन संसाधनों में जल, जंगल और जमीन है. मुंगेर की आबादी चाहे वह भीमबांध का क्षेत्र हो या धरहरा का. वहां के आस-पास के लोग वन पर ही आश्रित हैं. ये लोग वन के संसाधनों का उपयोग कर जीते हैं.
हाल के दिनों में वन विभाग ने छोटे-मोटे संसाधनों के उपयोग करने पर वन विभाग के कानून के तहत पाबंदी लगा दी है. इसके उल्लंघन की वजह से सिर्फ मुंगेर के धरहरा, लड़ैया टांड, खड़गपुर, गंगटा एवं टेटियाबंबर थाने में 5000 आपराधिक मामले दर्ज हैं. आपराधिक मुकदमे दर्ज होने की वजह से ये लोग भागे-भागे फिर रहे हैं. वन अधिनियम के तहत न्यूनतम जुर्माने की राशि 2 हजार है. मुंगेर के पुलिस अधीक्षक वरुण कुमार सिन्हा इस मामले के प्रति काफी गंभीर है.
जब लोक अदालत को लेकर उच्च न्यायालय द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की जा रही थी तो उन्होंने इस ओर माननीय उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एवं अन्य लोगों का ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने कहा कि नियम और कानून लोगों को राहत प्रदान करने के लिए हैं न कि उनके उत्पीड़न के लिए. जुर्माने की रकम जो नियम के तहत निर्धारित है वह वे लोग देने लायक हैं ही नहीं.
तो फिर इस दिशा में क्या सकारात्मक पहल किया जा सकता है. इस संदर्भ में उन्होंने वन विभाग के पदाधिकारियों से भी बात की है. गौरतलब है कि जिन क्षेत्रों के लोग वन विभाग के मुकदमे से पीडि़त हैं वह मुंगेर जिले का नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. पुलिस ने अपने निरंतर प्रयास से यह स्थिति उत्पन्न कर दी है कि नक्सलियों को आम लोगों का सहयोग नहीं मिले.
तो फिर वन पर आश्रित समुदाय ऐसे मुकदमे को झेलने के लिए विवश है. जिन लोगों पर मुकदमे हैं वे लोग लकड़ी-पत्ता चुन कर आजीविका का निर्वहन करते हैं. वहीं वन विभाग की नजर बड़े-बड़े माफियाओं पर नहीं है जो रोजाना ट्रक से महंगे वृक्ष को काट कर वन क्षेत्र को वीरान कर रहे हैं.
पुलिस अधीक्षक वरुण कुमार सिन्हा ने बताया कि राष्ट्रीय लोक अदालत में यदि ऐसे मामलों का निष्पादन होता है और बड़ी संख्या में अंतिम तबके के व्यक्ति को राहत मिलती है तो एक सकारात्मक संदेश जायेगा.