मुंगेर : यूं तो दीपावली को दीपों का त्योहार कहा गया है. किंतु यह पुरानी कहावत अब महज एक औपचारिकता बन कर रह गयी है. क्योंकि दीपावली में पूजा घर के अलावे अन्य किसी स्थानों पर दीपक शायद ही जलता दिखता है. आधुनिकता के दौर में लोग अपनी संस्कृति को भूल कर पश्चिमी सभ्यता की ओर भाग रहे हैं. जिसके कारण अब दीपावली में दीपक के जगह लोग चाइनीज बल्वों को अधिक महत्व देने लगे हैं. खासकर शहरों में इसका प्रचलन व्यापक पैमाने पर होने लगा है.
चाइनीज बल्वों की रोशनी में धीरे-धीरे दीपक का प्रकाश धीमा ही होते चला जा रहा है. पूजा की वस्तु बन कर रह गया दीयापौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम के चौदह वर्षों के वनवास से वापस लौटने पर अयोध्या नगरी को दीपक से दुलहन की तरह सजाया गया था. जिसके बाद से हर वर्ष लोग इस दिन को दीपावली त्योहार के रूप में मनाने लगे. किंतु समय के साथ-साथ कई परिवर्तन हुए. आज दीपक के जगह चाइनीज बल्वों का उपयोग भी इसी परिवर्तन की एक कड़ी है.
किंतु इस परिवर्तन ने हमारी संस्कृति को गहरा आघात पहुंचाया है. जिसके कारण दीया आज हमारे घरों में महज पूजा की एक वस्तु बन कर रह गयी है. दीपावली में अब दीये का उपयोग मुख्य रूप से पूजा के दौरान ही होते पाया जाता है.हाथों से छिना रोजगारदीपावली में दीये का प्रयोग कम हो जाने से न सिर्फ हमारी संस्कृति पर आघात हुआ है. बल्कि इससे दीये के रोजगार पर भी गहरा असर पड़ा है. पहले देखा जाता था कि दीपावली आने के दो-तीन माह पूर्व से ही कुम्हार समुदाय दीपक तैयार करने में लग जाते थे. त्योहार के मौके पर वे दीये की बिक्री कर अच्छी- खासी कमाई भी कर लेते थे.
किंतु चाइनिज के चकाचौंध में दीये का व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है.चाइनीज बल्वों का बढ़ा डिमांडदुर्गापूजा खत्म होते ही बाजारों में चाइनिज बल्बों का डिमांड काफी बढ़ गया है. दीपावली त्योहार पर चाइनिज व एलइडी बल्बों के डिमांड को लेकर विभिन्न इलेक्ट्रोनिक दुकानों में पहले से ही रंग- बिरंगे झालर मंगाये गये हैं. जिसमें सबसे अधिक चाइनिज लरी व डीजे लाइट की बिक्री हो रही है.