फोटो संख्या : 14फोटो कैप्सन : कचड़ा बीनते बच्चे प्रतिनिधि, जमालपुर आजादी के 67 वर्ष बीतने और इस दौरान अरबों रुपया खर्च कर बाल श्रम पर नियंत्रण पाने का प्रयास अबतक निरर्थक साबित हुआ है. अब भी बचपन कुड़ों की ढ़ेर पर बीतता है और इसी ढ़ेर पर नौनिहाल वयस्क नागरिक के रुप में निर्मित होता है. बाल श्रम पर नियंत्रण के सारे उपाय अब भी कारगर नहीं हो पा रहा. जमालपुर थाना के निकट कचड़े की ढ़ेर पर अपनी जिंदगी को तलाशते बच्चे अनायास ही मिल जाते है. ये बच्चे अपने झुंड में वहां एकत्रित कचड़े को बीनते है. ये कचड़ें उन्हीं के समूह में शामिल अन्य बच्चों या महिलाओं द्वारा शहर के विभिन्न भागों से चुन कर वहां लाये जाते है. यहां से अलग-अलग सामग्रियों को अलग-अलग बोरों में लेकर दरियापुर स्थित कचड़ों के कारोबारी के पास पहुंचाया जाता है. दिन भर की कड़ी मशक्कत के बाद जो कुछ भी मुद्रा उपलब्ध होता है. उसी से उसका रोजी-रोटी चलता है. प्रतिदिन का यह रूटीन इन बच्चों द्वारा नियम पूर्वक निभाया जाता है. बच्चों को देखने से लगता है सरकार द्वारा चलायी जा रही वंचित बच्चों को स्कूल अथवा आंगनबाड़ी से जोड़ने की योजना सिर्फ कागजों पर ही सिमट कर रह गयी है. वैसे डीपीओ राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि आइसीडीएस के अंतर्गत ऐसे बच्चों के कल्याण या पुनर्वास के लिए कोई योजना नहीं है.
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कचड़े में भविष्य तलाशते बच्चे
फोटो संख्या : 14फोटो कैप्सन : कचड़ा बीनते बच्चे प्रतिनिधि, जमालपुर आजादी के 67 वर्ष बीतने और इस दौरान अरबों रुपया खर्च कर बाल श्रम पर नियंत्रण पाने का प्रयास अबतक निरर्थक साबित हुआ है. अब भी बचपन कुड़ों की ढ़ेर पर बीतता है और इसी ढ़ेर पर नौनिहाल वयस्क नागरिक के रुप में निर्मित […]
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