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दो कमरे में पांच तक की पढ़ाई

मुंगेर सदर : विद्यालय को मंदिर का दर्जा दिया गया है. मंदिर का मतलब ही पवित्रता होता है. लेकिन मंदिर को जब अपवित्र कर दिया जाये तो उसे फिर पवित्र करना बेहद जरूरी हो जाता है. अन्यथा मंदिर का अस्तित्व ही समाप्त होने लगता है. नौवागढ़ी उत्तरी पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय महादेवपुर में 153 छात्र-छात्रएं […]

मुंगेर सदर : विद्यालय को मंदिर का दर्जा दिया गया है. मंदिर का मतलब ही पवित्रता होता है. लेकिन मंदिर को जब अपवित्र कर दिया जाये तो उसे फिर पवित्र करना बेहद जरूरी हो जाता है. अन्यथा मंदिर का अस्तित्व ही समाप्त होने लगता है. नौवागढ़ी उत्तरी पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय महादेवपुर में 153 छात्र-छात्रएं नामांकित हैं.

बच्चों को पढ़ाने के लिए पांच शिक्षक भी नियुक्त हैं. लेकिन कक्षा एक से 5 तक की पढ़ायी मात्र दो कमरे में ही की जाती है. कक्षा 4 व 5 के छात्र तो बेंच डेस्क पर बैठ कर पढ़ायी करते हैं. परंतु पहली, दूसरी व तीसरी कक्षा के छात्र जमीन पर बैठ कर ही पढ़ते हैं.

जुआरियों का कब्जा

प्राथमिक विद्यालय महादेवपुर इन दिनों जुए के अड्डे में तब्दील हो चुका है. शायद पुलिस प्रशासन इस बात से बिल्कुल बेखबर है. इसके कारण दिन प्रतिदिन विद्यालय में जुआरियों का जमघट बढ़ता ही जा रहा है. विद्यालय कार्य अवधि के बाद देर शाम तक जुए का खेल चलता रहता है. आस पड़ोस के ग्रामीण भी उन जुआरियों से निबटने में सक्षम नहीं हो रहे. मालूम हो कि यह विद्यालय मुफस्सिल थाना क्षेत्र में है.

पेयजल की व्यवस्था नहीं

इस तपती गरमी में प्यास के मारे बड़े बड़ों का हालत खराब हो जाता है. तो फिर बच्चों का क्या हाल होगा. विद्यालय में एक डीपीटी चापाकल लगा हुआ है. लेकिन दुर्भाग्य है कि बीते एक वर्ष से यह खराब पड़ा हुआ है. जिसकी मरम्मती आज तक नहीं हुई है. पेयजल के अभाव में छोटे-छोटे मासूम बच्चों को बार-बार घर जाना पड़ता है. इतना ही नहीं मध्याह्न् भोजन के लिए रसोइया को अपने घर से ही पानी लाना पड़ा है.

नहीं है शौचालय

विद्यालय भवन निर्माण के समय शौचालय का भी निर्माण कराया गया था. लेकिन स्थानीय शरारती तत्वों द्वारा शौचालय को शौच करने लायक नहीं रहने दिया गया है.

विद्यालय के प्रभारी द्वारा कई बार उसकी सफाई करवायी गयी. लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है. शौचालय के अभाव में स्कूली बच्चों को शौच के लिए जहां अपना-अपना घर जाना पड़ता है. वहीं शिक्षक व शिक्षिकाओं को पड़ोस के घर वालों का शरण लेना पड़ता है.

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