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डायरिया से बच्ची की हो गयी मौत

पोषण पखवारे को आईना. पहले से कुपोषित बच्चे पर महकमे की नहीं पड़ी नजर एक ओर राष्ट्रीय पोषण पखवारा मनाया जा रहा है़ वहीं दूसरी ओर बदहाल सिस्टम के कारण कुपोषित बच्चों की मौत हो रही है़ यूं तो स्वास्थ्य विभाग जननी बाल सुरक्षा कार्यक्रम को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हैं, किंतु हकीकत से सामना […]

पोषण पखवारे को आईना. पहले से कुपोषित बच्चे पर महकमे की नहीं पड़ी नजर

एक ओर राष्ट्रीय पोषण पखवारा मनाया जा रहा है़ वहीं दूसरी ओर बदहाल सिस्टम के कारण कुपोषित बच्चों की मौत हो रही है़ यूं तो स्वास्थ्य विभाग जननी बाल सुरक्षा कार्यक्रम को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हैं, किंतु हकीकत से सामना होते ही तस्वीरें बदल जाती है़ बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल को लेकर न सिर्फ राज्य स्तर पर बल्कि केंद्रीय स्तर भी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी योजनाएं चलायी जा रही है़ं किंतु असल में इस योजना की महज खानापूर्ति हो रही है़ जिसके कारण आये दिन बच्चों की मौत हो रही है़
मुंगेर : बुधवार को सदर प्रखंड के छोटी महुली गांव निवासी एक कुपोषित बच्ची की डायरिया से मौत हो गयी. पंकज तांती की एक वर्षीय पुत्री शिवानी कुमारी तथा दो वर्षीय पुत्री गौरी कुमारी को बुधवार की अहले सुबह से ही दस्त व उल्टी हो रही थी. पंकज ने दोनों पुत्री को इलाज के लिए सदर अस्पताल में भरती कराया़ जहां कुछ ही देर बाद इलाज के दौरान शिवानी की मौत हो गयी़ चिकित्सक ने बताया कि बच्चा कुपोषित था तथा काफी गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था. जिसके कारण उसे बचाना मुश्किल हो गया़ वहीं पंकज की दूसरी पुत्री गौरी का अभी भी इलाज चल रहा है, जिसकी स्थिति गंभीर है.
सिस्टम पर खड़ा हुआ सवाल : छोटी महुली गांव में डायरिया से एक बच्ची की मौत के बाद सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है़ राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत आंगनबाड़ी से लेकर सरकारी विद्यालयों तक मेडिकल टीम द्वारा घूम-घूम कर कुपोषित बच्चों व अन्य बीमारियों से ग्रसित बच्चों को चिह्नित कर उसे इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल में भेजे जाने का प्रावधान है़ किंतु शिवानी के मौत ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के हकीकत की पोल खोल कर रख दी है़ मालूम हो कि मेडिकल टीम द्वारा न तो शिवानी को कभी ट्रैक किया गया और न ही उसका स्वास्थ्य कार्ड ही जारी किया गया, जो कि काफी गंभीर विषय है़ यदि मेडिकल टीम द्वारा पूर्व में शिवानी को ट्रैक किया गया होता व उसका स्वास्थ्य कार्ड जारी कर दिया गया होता तो इलाज के बाद शिवानी के कुपोषण को दूर किया जा सकता था. जिससे शायद शिवानी को कुपोषण के जद में आ कर मौत का सामना नहीं करना पड़ता़
कागज पर चल रहा बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम: कहने को तो जिले भर में बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के नाम पर आंगनबाड़ी केंद्रों पर मेडिकल टीम द्वारा लगातार कुपोषित बच्चों पर नजर रखी जा रही है़ किंतु इसकी असलियत काफी खोखली है़ मेडिकल टीम में शामिल चिकित्सक व एएनएम आंगनबाड़ी केंद्रों पर पहुंच कर महज एक खानापूर्ति भर कर लेते हैं. जबकि आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका, सहायिका तथा आशा कार्यकर्ताओं का यह दायित्व है कि वे पोषक क्षेत्र के कुपोषित बच्चों को मेडिकल टीम के सामने लायें या फिर उसे इलाज के लिए अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करें. किंतु असल में यह सब सिर्फ कागजों पर ही चलता है तथा विभाग भी इस मामले में उदासीन बनी हुई है़
कहते हैं जिला समन्वयक
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की जिला समन्वयक डॉ बिंदु ने बताया कि मेडिकल टीम डोर-टू-डोर जा कर बच्चों को ट्रैक नहीं कर सकती़ टीम आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाती है़ हो सकता है कि वहां की सेविका द्वारा इस तरह के कुपोषित बच्चों की जानकारी नहीं दी गयी होगी़ इस कारण बच्ची अनट्रैक रह गयी़

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