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600 बच्चों को पढ़ाने के लिए चार शिक्षक

मधवापुर : किसी जमाने में कई नामचीन हस्तियों, बल्कि पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में कई शीर्षस्थ पदों के अलावे मंत्री तक का पद सुशोभित कर परचम लहराने वाले छात्रों को शिक्षा देने में अव्वल मुख्यालय का श्री लक्ष्मी जनता प्लस टू उच्च विद्यालय आज हर मौलिक सुविधाओं से वंचित है. उस जमाने में विषय बार विद्वान […]

मधवापुर : किसी जमाने में कई नामचीन हस्तियों, बल्कि पड़ोसी राष्ट्र नेपाल में कई शीर्षस्थ पदों के अलावे मंत्री तक का पद सुशोभित कर परचम लहराने वाले छात्रों को शिक्षा देने में अव्वल मुख्यालय का श्री लक्ष्मी जनता प्लस टू उच्च विद्यालय आज हर मौलिक सुविधाओं से वंचित है.

उस जमाने में विषय बार विद्वान शिक्षकों और अनुशासित छात्रों की वजह से कई कीर्तिमान स्थापित करने में भारतीय को कौन कहे नेपाली छात्रों और अभिभावकों के लिए भी यह स्कूल आकर्षण का केंद्र बना रहता था. वहीं, आज के वैज्ञानिक युग में यह भवन, शिक्षक, लिपिक, आदेशपाल, चापाकल, चहारदीवारी, खेल का मैदान, कॉमन रूम फर्नीचर, उपस्कर, पुस्तकालय, आदि के अभाव में वर्षों से यह स्कूल अपने छात्रों को समुचित शिक्षा देने की बात तो दूर रही बैठने के लिए वर्ग कक्ष की व्यवस्था करने में भी विफल साबित हो रही है. स्थानीय बुद्धिजीवियों के सहयोग से वर्ष 1952 में मुख्यपथ किनारे स्थापित यह स्कूल भवन अब राहगीरों को चिढ़ा रही है.
हर दृष्टि से इस पिछड़े इलाके के गरीब बच्चों को समुचित उच्च शिक्षा घर के करीब मिलने की संभावना अब छिन्न दिख रही है. जब तक स्कूल का प्रबंधन स्थानीय लोगों के हाथों में रही यहां का सुसज्जित परिसर, कठोर अनुशासन, अध्ययन अध्यापन से चौबीस घंटे गूंजता रमणीय बंशी छात्रावास और रूटीन पठन-पाठन इलाके में चर्चा का विषय बना
रहता था.
आज स्थिति यह है कि तत्कालीन स्कूल और छात्रावास भवन धराशयी होकर खंडहर में तब्दील हो गये है. लगभग छह सौ से अधिक छात्रों को पढ़ाने के लिए यहां मात्र चार शिक्षक और इतने ही वर्ग कक्ष हैं. जिन्हें कमरे से बरामदे तक किसी तरह उपस्थिति के लिए बैठाया जाता है. फिर भी जगह कम पड़ते हैं. जगह और शिक्षक की कमी को देखते हुए स्कूल प्रबंधन ने इस बार इंटर में नामांकन लेना बंद कर दिया है. मौसम की परवाह किये बगैर यहां के छात्रों को उबड़-खाबड़ मैदान में बैठाकर ही पढ़ाया जाता है. क्योंकि उपलब्ध कमरों और शिक्षकों के सहारे सभी बच्चों का समावेश एक साथ वर्ग कक्ष में नहीं हो सकता.
जबकि, स्कूल के पास ढाई एकड़ जमीन है. शिक्षक व भवन के लिए बार बार स्मारित कराने के बाद भी विभागीय अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
इसके कारण सैकड़ों छात्रों का भविष्य चौपट हो रहा है. अवकाश और स्थानांतरण से रिक्त विषयों में शिक्षकों का पदस्थापन नहीं होने के कारण समृद्ध परिवार के बच्चे तो अन्यत्र पढ़ रहे हैं, लेकिन गरीब बच्चों की मजबूरी आज भी इसे आकर्षण का केंद्र बनाये हुए है. यहां संस्कृत, अंग्रेजी, भौतिकी, रसायन, जीव विज्ञान, राष्ट्रभाषा हिंदी, द्वितीय राजभाषा उर्दू, मातृभाषा मैथिली, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, भूगोल, राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान, गृह विज्ञान आदि विषयों के शिक्षक के अलावा लिपिक एवं रात्री प्रहरी का पद वर्षों से रिक्त है. इस कारण नामांकित बच्चे पढ़ाई के लिए पूरी तरह ट्यूटर और निजी कोचिंग संस्थान पर आश्रित हैं.
क्या कहते हैं एचएम
एचएम भवेश झा ने बताया कि यहां की मौलिक समस्याओं से बच्चों व शिक्षकों के साथ साथ विभागीय आला अधिकारी, जनप्रतिनिधि, अभिभावक वर्षों से अवगत हैं. बावजूद समाधान नहीं हो रहा है.

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