विभाग ने दिये बर्तन, पर अनाज नहीं
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बुझा था चूल्हा, भूख से धधक रही थी पेट की आग
विभाग ने दिये बर्तन, पर अनाज नहीं चार दिन तक भूखे रहने पर लोगों को आयी दया तो किया एक समय के खाने का इंतजाम मधुबनी : बिस्फी महादलित टोला के समुदाय के लोगों के खाना के लिये शिक्षा समिति द्वारा बर्तन उपलब्ध करा दिया गया. चुल्हा भी कोसी नहर के शाखा पर ही खुद […]
चार दिन तक भूखे रहने पर लोगों को आयी दया तो किया एक समय के खाने का इंतजाम
मधुबनी : बिस्फी महादलित टोला के समुदाय के लोगों के खाना के लिये शिक्षा समिति द्वारा बर्तन उपलब्ध करा दिया गया. चुल्हा भी कोसी नहर के शाखा पर ही खुद गया. पर यह चुल्हा बुझी था. ना तो दूर दूर तक इसके जलने के कोई आसार थे ना कोई इंतजाम. पर इससे क्या होता है. चुल्हा जले ना जले. लोगों के पेट की आग तो भूख से धधक रहे थे. भूख से बच्चे बिलबिला रहे थे. महिलाएं रह रह कर गांव की ओर नजर उठा उठा कर देखती कि शायद अब कहीं से इस बुझे चुल्हा के जलने का कोइ इंतजाम हो जाये. बगल के ही एक तंबू से बच्चे की रोने की आवाज आती है. हमें लगा कि शायद बच्चे को किसी ने मारपीट किया हो.
हम उस तंबू की ओर ही बढे जहां से बच्चे की चीखने की आवाज आ रही थी. अजब दृश्य था. इस पर खुश हों या गम करें यह निर्णय नहीं कर सका. तंबू में एक थाली में कुछ भात और सब्जी थे. इसे सब्जी कहना भी अतिश्योक्ति ही था. सब्जी के नाम पर केवल आलू के टुकड़े ही थे. इसी थाली के चारों ओर तीन चार बच्चे थे. सभी थाली से चावल और आलू के टुकड़े को निकाल निकाल कर खा रहे थे. हर बच्चे की कोशिश यही थी कि उनके हिस्से में अधिक से अधिक खाना आये. पर यह बच्चों के चीखने का असली कारण नहीं था. कारण यह था कि इन लोगों द्वारा पाला गया बकरी का तीन चार बच्चा भी इन लोगों के थाली में मूंह देकर इनके साथ ही भात खाने की कोशिश करता. कभी बच्चे बकरी के मूंह को थाली से हटाने में कामयाब होते तो कभी बकरी का बच्चा थाली से भात खा लेने में जीत जाता. जब जब बकरी का बच्चा भात खा लेता बच्चे की मूंह से चीख निकलती. हम लोग कुछ बोलते या कुछ समझ पाते तंबू में बच्चे की बैठी मां बच्चों के बीच आयी और थाली से भात निकाल कर अपने हाथों से बकरी के बच्चे को भात खिलाने लगी. महिला का नाम रीता देवी था. रीता ने बताया कि उसके तीन बच्चे हैं. मनीषा, अमित और सोनी. दिन में बारह बजे तक जब कहीं से खाना का जुगाड़ नहीं हुआ और बच्चे को भूख से बिलबिलाते देखा तो रहा नहीं गया. बगल के परसौनी गांव गयी. लोगों के आगे थाली फैलाया तो किसी ने थाली में थोड़ा सा भात व सब्जी दिये. कोई देने वाला भला अपने हिस्से का इन दिनों कितना खाना देते. वह थाली लिये वापस तंबू आ गयी. वही खाना इन बच्चों के बीच में है. सभी को एक ही थाली में खाने को कह दिया. खुद पानी पीकर है.
एक समय ही बनता है खाना : रीता देवी ने बताया कि जिस दिन से बाढ आयी और ये लोग इस बांध पर आकर रहने लगी हैं. एक ही समय का खाना मिलता है. दिन भर लोग इंतजार में रहते हैं कि कभी कहीं से खाना आ जाये. लोगों ने बताया कि बांध पर आने के बाद कहीं से बर्तन तो भेज दिया गया. पर आज तक अनाज या खाने का कोई सामान नहीं भेजा गया. जब तीन दिनो तक आस पास के लोगों ने भूखे देखा तो किसी को दया आयी तो कभी खाना बनाने का सामान दिया, कभी किसी और ने. सामान मिलने के बाद दोपहर में चुल्हा जलता है और रात होते होते सभी को खाना दिया जाता है. करीब तीन सौ लोगों का खाना एक ही जगह बन रहा है. यह हाल बीते चार पांच दिनों से है.
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